Khandela Sikar Vidhansabha Seat : शेखावाटी के सीकर की खंडेला विधानसभा सीट से मौजूदा वक्त में निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला विधायक हैं. शेखावाटी क्षेत्र भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है, लिहाजा ऐसे में शेखावटी को साधने के लिए भाजपा मेगा प्लान तैयार कर रही है.
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Khandela Sikar Vidhansabha Seat : शेखावाटी के सीकर की खंडेला विधानसभा सीट एक बेहद ही महत्वपूर्ण सीट है. यहां से मौजूदा वक्त में निर्दलीय विधायक महादेव सिंह खंडेला विधायक हैं. शेखावाटी क्षेत्र भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है, लिहाजा ऐसे में शेखावटी को साधने के लिए भाजपा मेगा प्लान तैयार कर रही है. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दौरा किया था. वहीं सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कांग्रेस से इस बार महादेव सिंह खंडेला के प्रधान बेटे गिरिराज सिंह को टिकट देगी. क्योंकि महादेव सिंह ने उम्र अधिक होने के चलते चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया है.
खंडेला विधानसभा सीट 1957 में नीम का थाना में मर्ज कर दी गई थी और यहां से दो विधायक चुने गए थे. इसके बाद इस सीट पर पहले विधानसभा चुनाव 1967 में हुए. जहां से निर्दलीय उम्मीदवार आ र चंद्र ने जीत दर्ज की थी. इस सीट पर सबसे ज्यादा छह बार जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड महादेव सिंह खंडेला के नाम है. महादेव सिंह खंडेला ने साल 1980 में पहली बार जीत हासिल की थी, इसके बाद वह 1985, 1993, 1998, 2003 और 2018 में जितने में कामयाब हुए. वहीं तीन बार गोपाल सिंह ने भी जीत हासिल की. गोपाल सिंह 1972 में पहली बार निर्दलीय ही चुनाव जीते थे, जबकि इसके बाद वह 1977 और 1990 में भी जीतने में कामयाब हुए. वहीं भाजपा के बंशीधर भी ने भी दो बार खंडेला विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की है.
1967 के पहले विधानसभा चुनाव में इस सीट से कांग्रेस ने डी राम को चुनावी मैदान में उतारा तो वहीं निर्दलीय के तौर पर आर चंद्र ने ताल ठोकी. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से एम लाल भी चुनावी मैदान में उतरे. चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को सिर्फ 5,235 मत हासिल हुए तो वहीं कांग्रेस ने 17,169 मत हासिल हुए जबकि निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे आर चंद्र ने को 19,805 मत मिले. इसके साथ ही आर चंद्र खंडेला से पहले विधायक चुने गए.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से गुलाब देवी चुनावी मैदान में उतरी तो वहीं निर्दलीय के तौर पर गोपाल सिंह ने दावेदारी ठोकी. स्वराज पार्टी के देवाराम भी चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में देवाराम अपनी जमानत भी नहीं बचा सके और चुनाव हार गए, जबकि कांग्रेस की गुलाब देवी को 22,001 मत मिले जबकि निर्दलीय ही ताल ठोक रहे गोपाल सिंह 23,695 मत हासिल करने में कामयाब हुए और खंडेला से दूसरे विधायक चुने गए.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदला और झाबरमल सुंडा को टिकट दिया जबकि पिछली बार चुनाव जीतने वाले गोपाल सिंह इस बार जनता पार्टी की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के झाबरमल को 9,235 मत मिले जबकि जनता पार्टी के गोपाल सिंह 30,837 मत के साथ लगातार दूसरी बार जीतने में कामयाब हुए.
1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गुटबाजी के दौर से गुजर रही थी. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के उम्मीदवार महादेव सिंह बने तो वहीं जनता पार्टी सेकुलर ने हनुमान सिंह आर्य को टिकट दिया. इस चुनाव में कांग्रेस के महादेव सिंह की जीत हुई और इस सीट से पहली बार कांग्रेस अपना खाता खोलने में कामयाब हुई. महादेव सिंह को 23,620 मतदाताओं का साथ मिला तो वहीं हनुमान सिंह 19,699 मत की हासिल कर सके.
1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महादेव सिंह एक बार फिर भरोसा जताया तो वहीं दो बार विधायक रह चुके गोपाल सिंह ने अबकी बार लोकदल से ही ताल ठोकी. यह चुनाव बेहद ही करीबी मुकाबला वाला रहा. जिसमें गोपाल सिंह को 34,172 मत हासिल हुए तो वहीं कांग्रेस के महादेव सिंह 34,691 मत हासिल करने में कामयाब हुए. उसके साथ ही महादेव सिंह की लगातार दूसरी बार जीत हुई.
1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अपने मजबूत खिलाड़ी महादेव सिंह को ही टिकट दिया तो वहीं गोपाल सिंह ने अब की बार जनता दल से ताल ठोकी. इस चुनाव में महादेव सिंह को 34,225 मत हासिल हुए तो वहीं 47,992 मतों के साथ गोपाल सिंह अपनी विधायकी वापस पाने में कामयाब हुए.
1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अबकी बार गोपाल सिंह को टिकट दिया जो इससे पहले जनता दल, लोकदल और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे. इस चुनाव में निर्दलीय के तौर पर माधव सिंह चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं बीजेपी ने मोहनलाल सियाग को टिकट दिया. इस चुनाव में बीजेपी के मोहनलाल सियाग कुछ खास कमाल नहीं कर पाए जबकि कांग्रेस के गोपाल सिंह भी चुनाव हार गए. उन्हें 31,838 मत हासिल हुए जबकि निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरने वाले महादेव सिंह को 50,198 मत मिले और उसके साथ ही निर्दलीय उम्मीदवार महादेव सिंह की जीत हुई.
1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पिछले चुनाव में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले महादेव सिंह को टिकट दिया तो वहीं भाजपा भी बंशीधर के रूप में एक नया चेहरा लेकर आई. इस चुनाव में बीजेपी के बंशीधर को 19,706 मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ तो वहीं 38,291 मतों के साथ महादेव सिंह चौथी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में सबसे मजबूत सिपाही महादेव सिंह कोई टिकट दिया तो वहीं बीजेपी की और से हनुमान सिंह आर्य चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में हनुमान सिंह को 24,230 मत मिले लेकिन वह एक बार फिर चुनाव हार गए. जबकि कांग्रेस के महादेव सिंह खंडेला 42,066 मतों के साथ जीतने में कामयाब हुए.
2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से अपने मजबूत सिपाही महादेव सिंह खंडेला को ही टिकट दिया. इस बार बीजेपी अपने पुराने उम्मीदवार बंशीधर खंडेला को चुनावी मैदान में लेकर आई. चुनाव में महादेव सिंह खंडेला को लगातार तीन बार जीत हासिल होने के बाद शिकस्त का सामना करना पड़ा और उन्हें 39,500 मत मिले जबकि बंशीधर 49,398 मत पाने में कामयाब हुए और उसके साथ ही लंबी जद्दोजहद के बाद बंशीधर खंडेला से विधायक चुने गए.
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फिर से बंशीधर खंडेला को ही टिकट दिया, तो कांग्रेस की ओर से गिरिराज चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में कांग्रेस के गिरिराज को 46,443 वोट मिले तो वहीं बीजेपी के बंशीधर लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने में कामयाब हुए और मोदी लहर में उन्हें 81,837 वोट मिले.
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से सुभाष मील को टिकट दिया गया तो वहीं बीजेपी ने फिर से बंशीधर पर ही भरोसा जताया. जबकि महादेव सिंह खंडेला ने अबकी बार निर्दलीय ही ताल ठोकी. चुनाव में महादेव सिंह को 53,864 मत मिले तो वहीं बीजेपी के बंशीधर को 49,516 मत हासिल हुए जबकि कांग्रेस के सुभाष मेल को 44,472 वोट मिले इसके साथ ही महादेव सिंह खंडेला की जीत हुई.
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