मान्यता है कि ललिता पंचमी के दिन मां ललेची खुद प्रांगण में प्रवेश होकर नृत्य करती है. हवन अष्टमी के दिन मां काली का प्रवेश अद्भुत नजारा होता है, जिसे देखने के लिए जिलेवार एवं अन्य जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं.
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Siwana: बाड़मेर जिले में समदड़ी कस्बे के पहाड़ी तलहटी में बसा ललेची माता मंदिर में 2 वर्षों के कोविड-19 के बाद इस वर्ष नवरात्रि पर माता के दरबार में पुनः गरबों की धूम दिखती नजर आ रही है.
अलग-अलग वेशभूषाओं में तैयार होकर टीमों द्वारा गरबा नृत्य किया जा रहा है, जिसको देखने के लिए आसपास के सैकड़ों की तादात में लोग पहुंच रहे हैं. वहीं, मंदिर प्रांगण के नीचे की तरफ हाट बाजार में विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का लुफ्त उठा रहे हैं.
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कमेटी द्वारा विजेता टीमों को पुरस्कृत किया जाएगा. वहीं, माता की आरती सहित विभिन्न प्रकार की गोलियों में श्रद्धालु बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं. ललिता पंचमी एवं हवन अष्टमी के दिन का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि ललिता पंचमी के दिन मां ललेची खुद प्रांगण में प्रवेश होकर नृत्य करती है. हवन अष्टमी के दिन मां काली का प्रवेश अद्भुत नजारा होता है, जिसे देखने के लिए जिलेवार एवं अन्य जिलों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. अर्धरात्रि के समय तेज गर्जना के साथ आतिशबाजी के बाद अंधकार छा जाता है. तत्पश्चात खपर लेकर हाथ में अग्नि प्रज्वलित करते हुए मंदिर परिसर से मां काली का गरबा नृत्य प्रांगण में प्रवेश होता है, जिसके साथ सभी नौ देवी भी नृत्य करती हैं.
ऐसा माना जाता है कि 800 वर्ष पूर्व धुमड़ा से दोनों पहाड़ों के बीच चीरकर मां ललेची प्रगट हुई थीं. माता के तीन रूपों की प्रतिमाएं पहाड़ में विराजमान हैं, जिनकी पूजा की जाती है. उसके पास से गुफा है, जो धुमड़ा तक जाती है.