Bikaner News: बीकानेर में स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में इन दिनों शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में बांस की खेती पर शोध चल रहा है. कुलपति डॉ अरुण कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत परियोजना केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को भेजी गई थी.
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Bikaner latest News: राजस्थान के बीकानेर में स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में इन दिनों शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में बांस की खेती पर शोध चल रहा है. कुलपति डॉ अरुण कुमार बताते हैं कि राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत "शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बांस एक प्रारंभिक प्रयास" नामक परियोजना केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को भेजी गई थी.
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जिसका अनुमोदन मिलने पर नवसारी कृषि विश्वविद्यालय गुजरात और देहरादून के भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान से बांस की 11 विभिन्न प्रजातियों के करीब 200 पौधे मंगवा गए. करीब ढाई महीने पहले बांस के पौधों को यहां रोपित किया गया. खास बात ये है कि बांस के पौधों की ग्रोथ उत्साहित करने वाली है.
कुलपति डॉ अरुण कुमार बताते हैं कि कुल 47 लाख के इस बांस प्रोजेक्ट का उद्देश्य पश्चिमी राजस्थान की शुष्क जलवायु में बांस की वृद्धि और उत्पादन का अध्ययन करना है. साथ ही बताया कि बांस की खेती किसानों को आर्थिक दृष्टि से भी फायदेमंद साबित होगी. बांस से हस्तशिल्प के सामान जैसे चटाई, टोकरी, उपकरण, खिलौने व बर्तन इत्यादि और फर्नीचर भी बनाए जाते हैं.
साथ ही बताया कि बांस पर्यावरण प्रदूषण को भी कम करता है. साथ ही जल स्तर बढ़ाने में सहायक है. उन्हें विश्वास है कि बांस की खेती भविष्य में पश्चिमी राजस्थान के किसानों की आर्थिक उन्नति का कारण बनेगी. कृषि महाविद्यालय बीकानेर के अधिष्ठाता और उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ पीके यादव बताते हैं कि बांस की खेती राजस्थान के लिए नई नहीं है.
बांसवाड़ा में बांस की खेती पहले से होती आ रही है, लेकिन पश्चिमी राजस्थान की शुष्क जलवायु और कम पानी में बांस की कौनसी प्रजाति आसानी से उगाई जा सकती है. इसकी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. डॉ पी.के. यादव बताते हैं कि बांस एक बहुउपयोगी, मजबूत, नवीकरणीय और पर्यावरण-अनुकूल पौधा है.
पृथ्वी पर यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला काष्ठीय पौधा है. पूरे जीवन में 25 मीटर या उससे अधिक की लंबाई तक बढ़ता है. बांस को हर साल पुनः लगाने की आवश्यकता नहीं होती. 3 से 5 साल के चक्र में स्थाई रूप से काटा जा सकता है.
बांस अविकसित और खराब भूमि, ऊंचे भूभाग, खेत की मेड़ों व नदी किनारों पर भी उगाया जा सकता है और इसकी फसल में कम पानी की जरूरत पड़ती है. बहरहाल तीन वर्षीय इस बांस प्रोजेक्ट के तहत बेहतर प्रदर्शन करने वाली बांस प्रजाति का चयन किया जाएगा और बेहतर प्रदर्शन करने वाली बांस प्रजातियों का किसानों के खेत में रोपण किया जाएगा.