Ganesh Chaturthi 2023: गणेश चतुर्थी पर पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए लोगों से गणेश भगवान की मिट्टी की मूर्ति की मांग बढ़ गई है. ऐसे में मिट्टी की मूर्ती की डिमांड बढ़ गई है. जयपुर के मूर्ति कलाकार एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं बना रहे है.
Trending Photos
Ganesh Chaturthi 2023: गणेश चतुर्थी पर पर्यावरण को होने वाले नुकसान को देखते हुए लोगों से गणेश भगवान की मिट्टी की मूर्ति की मांग बढ़ गई है. ऐसे में मिट्टी की मूर्ती की डिमांड बढ़ गई है. जयपुर के मूर्ति कलाकार एक से बढ़कर एक प्रतिमाएं बना रहे है.
गणेश चतुर्थी के मौके पर शहर के विभिन्न मोहल्लों-कॉलोनियों में पंडालों के साथ ही घरों में भी विघ्नहर्ता की स्थापना होगी. इस बार गणेशोत्सव के दौरान लंबोदर खुशियों के साथ हरियाली की रिद्धि-सिद्धि भी लाएंगे और घर को खुशनुमा बनाने के साथ ही जीवनभर प्राणदायिनी ऊर्जा प्रदान करेंगे.
स्वस्थ पर्यावरण के लिये जरूरी है कि हमारे जलस्रोत निर्मल बने रहें लेकिन हर साल गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा के अवसर पर लाखों प्रतिमाएं नदियों, तालाबों या अन्य जलस्रोतों में विसर्जित की जाती है. इससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण बढ़ता है और इनका पानी उपयोग के लायक नहीं बचता. जयपुर के मूर्ति कलाकार इन दिनों जेएलएन मार्ग, गोपालपुरा और श्याम नगर सहित अन्य स्थानों पर मूर्ति कलाकार ऐसी ही प्रतिमाओं के निर्माण में जुटे हैं.
इस बार गणेशोत्सव के लिए मूर्ति कलाकारों ने अनूठी पहल की है. इसके तहत इको फ्रेंडली प्रतिमा के साथ ही मिट्टी में विभिन्न प्रजाति के बीज डालकर मूर्तियां तैयार की हैं. मूर्ति खरीदने आए गणेश भक्तों ने बताया ने बताया कि इन प्रतिमाओं को घर में ही गमले में करीब दो लीटर पानी में विसर्जित किया जा सकेगा. फिर कुछ दिनों में वह बीज पौधे का रूप ले लेगा.
गरीब कलाकार हैं, जो मूर्तियाँ बनाते हैं, उनको रोजगार मिलेगा, गरीब का पेट भरेगा. हम हमारे उत्सवों को गरीब के साथ जोड़ें, गरीब की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ें, हमारे त्योहार का आनंद गरीब के घर का आर्थिक त्यौहार बन जाए. आर्थिक आनंद बन जाए ये हम सब का प्रयास रहना चाहिए.
मूर्ति कलाकार के अनुसार खासतौर पर इन मूर्तियों में गणेशजी को अलग-अलग आकार दिया गया है. किसी प्रतिमा में भगवान आराम की मुद्रा में तो किसी में पगड़ी पहनकर सिंहासन पर विराजे हैं. 4 इंच से लेकर 40 इंच लंबी इन प्रतिमाओं की कीमत 50 से 2000 रुपए तक है. इन प्रतिमाओं को समुद्र के किनारे मिलने वाली बलवा मिट्टी से तैयार किया गया है. वहीं प्रदेश में अजमेर व सीकर सहित अन्य स्थानों पर भी ये प्रतिमाएं भिजवाई गई हैं.
उधर मूर्ति कलाकारों ने पीओपी के स्थान पर खडिय़ा मिट्टी, जूट व कागज से भी प्रतिमाएं बनाई हैं. इनमें भगवान को शंख सिहासन, रथ, नाव, चौकी तथा बत्तख पर विराजमान किया गया है. साथ ही विभिन्न आभूषणों के साथ ही अलग-अलग रंगों से भगवान का शृंगार किया जा रहा है. इस मिट्टी से बनी प्रतिमाओं की कीमत 50 से लेकर 25000 रुपए तक है. सबसे ज्यादा आकर्षण लालबाग का राजा की प्रतिमा का है.
मनोकामना पूरी करने के लिए श्रद्धालुओं ने हुबहू लाल बाग की प्रतिमा बुक कराई है. पीओपी के स्थान पर मिट्टी की मूर्तियाँ बनाकर हमें अपने पुरानी परम्परा वापिस लानी चाहिए और पर्यावरण, नदी-तालाबों की रक्षा के साथ होने वाले प्रदूषण से पानी के छोटे-छोटे जीवों की रक्षा करनी चाहिए.
ये भी पढ़ें- Pitru Paksha: पितृपक्ष में दोष से बचने के लिए करें ये उपाय, जानिए पितरों के नाराज होने के संकेत
पर्यावरण के अनुकूल गणेशोत्सव भी समाज सेवा का काम है. शास्त्रों में विसर्जित करने वाली प्रतिमाओं को मिट्टी, गाय के गोबर, हल्दी, सुपारी और गोमूत्र से बनाए जाते रहे हैं. ये सभी पदार्थ जलस्रोतों के पानी में अच्छी तरह से घुल जाते हैं और किसी तरह का इनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं होता है. नदी-तालाब की तलछट को प्रदूषित भी नहीं करती वहीं पीओपी अघुलनशील, तलछट के लिये हानिकारक और रासायनिक रंग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये दुष्प्रभावी हैं. यह सन्देश लोगों के बीच ले जाया जा रहा है.
राज्य सरकार ने भी पीओपी की प्रतिमाओं की बिक्री रोकने और लोगों को मिट्टी की प्रतिमाएं स्थापित करने के लिये प्रेरित करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं.इसे धार्मिक आस्था के साथ भी जोड़ा जा रहा है.धार्मिक आस्था के मुताबिक पार्थिव पूजा मिट्टी की प्रतिमाओं की पूजा को ही शास्त्र और धर्म सम्मत बताया गया है. यह बदलाव सुखद है, धीरे-धीरे ही सही. बदलाव अब नजर आने लगा तो है.