Rajasthan News: राजस्थान विधानसभा में सदन के भीतर का रंग बदल गया है. यह बदलाव सोफा और कार्पेट के कलर में हुआ है. सदन के रंग पर जूली से सवाल पूछा गया तो पास ही खड़ी इन्दिरा मीणा ने धीरे से कहा कि रंग पर कोई फर्क नहीं? पड़ता.
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Rajasthan News: राजस्थान विधानसभा में सदन के भीतर का रंग बदल गया है. रंग में यह बदलाव सोफा और कार्पेट के कलर में हुआ है लेकिन क्या रंग के साथ ही तेवर भी बदलेंगे? और अगर तेवरों में बदलाव हुआ तो किसके होगा? हालांकि अभी तक सत्ता पक्ष इस बदलाव को सामान्य ही मान रहा है लेकिन विपक्ष ने सदन शुरू होने से पहले ही रंग में हुए इस बदलाव पर सवाल उठा दिए हैं.
पानी रे पानी, तेरा रंग कैसा... जिसमें मिला दो... लगे उस जैसा लेकिन हर रंग के बारे में यह बात लागू नहीं होती और अगर मामला राजनीति से जुड़ा हो... तो हर रंग के तेवर अलग हो जाते हैं. विधानसभा के भीतर सदन में कार्पेट और सोफा के रंग को लेकर भी आलम कुछ ऐसा ही दिख रहा है. दरअसल विधानसभा के निर्माण के बाद पहली बार कार्पेट बदला गया है. बताया जा रहा है कि पुराना कार्पेट कई जगह से खराब हो गया था. स्पीकर वासुदेव देवनानी कहते हैं कि पिंकसिटी में राज्य की विधानसभा है. साथ ही विधानसभा की बिल्डिंग का रंग भी गुलाबी शेड में है. इस भावना को देखते हुए सदन में गुलाबी रंग का कार्पेट लगाया गया है.
स्पीकर अपनी भावना बता रहे हैं और बसपा विधायक दल के नेता मनोज न्यांगली भी उनकी बात से इक्तेफाक रखते हैं. सदन के रंग पर जूली से सवाल पूछा गया तो पास ही खड़ी इन्दिरा मीणा ने धीरे से कहा कि रंग पर कोई फर्क नहीं? पड़ता... लेकिन नेता प्रतिपक्ष तो इस पर अलग ही राय रखते हैं. एलओपी टीकाराम जूली ने तो गुलाबी रंग को राजसी ठाठ-बाट का प्रतीक बताते हुए सवाल उठा दिए. उन्होंने कहा कि पहले वाला हरा रंग जनता, जन जुड़ाव, किसान और समृद्धि का प्रतीक था लेकिन अब गुलाबी रंग होने के बाद रवैया कैसा रहेगा? उन्होंने कहा कि अब सरकार जनता की सुनेगी भी या नहीं?
लेकिन इस मुद्दे पर सरकार और सदन के अध्यक्ष की पैरवी की ज़िम्मेदारी संसदीय कार्य मन्त्री जोगाराम पटेल ने संभाली. पटेल कहते हैं कि सदन के कार्पेट का रंग ठीक वैसा ही है, जैसा पिछली गहलोत सरकार के समय बने विधायक आवास का कलर है. पटेल ने जूली के पाले में गेंद डालते हुए कहा कि अब नेता प्रतिपक्ष बताएं कि ...क्या पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी राजसी ठाठ-बाट की सोच रखते थे?
प्रदेश में राज बदलने के तकरीबन एक साल बाद सदन के भीतर के रंग में बदलाव हुआ है. ऐसे में सवाल यह है? कि क्या रंग में यह बदलाव सिर्फ विधानसभा के रूटीन कामकाज के रूप में देखा जाए या वाकई राजसी भावना इससे जुड़ी है? सवाल यह कि क्या इस रंग से सदन के सदस्यों के बर्ताव पर भी कोई असर पड़ेगा? साथ ही सवाल यह भी कि क्या सदन में बदलाव का जायजा लेते वक्त चार प्रमुख चेहरों पर दिख रही मुस्कान विधानसभा की कार्रावाई के दौरान भी जस की तस दिखेगी?