प्रदेश भर में दिवाली के त्यौहार की रौनक चरम पर है. हर तरफ रोशनी का आलम है ऐसे में जयपुर के सवाई मान सिंह हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने दिवाली पर सेहत का ख्याल रखने के टिप्स भी दे दिए है जिन्हे अपनाकर आप अपनी और अपनों की सेहत का ख्याल रखते हुए दिवाली को और रोशन कर सकते हैं. दिवाली पर सेहत का ख्याल रखते हुए ग्रीन पटाखों का प्रयोग करें.
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Jaipur: प्रदेश में दीपावली त्यौहार का उल्लास चरम पर हैं, कोरोना के चलते 2 साल के बाद आमजन को दीपावली के त्यौहार को खुलकर मनाने का मौका मिलेगा. इस बार आतिशबाजी भी जमकर होगी, ऐसे में श्वास व दमा रोग विशेषज्ञों ने सांस के रोगियों को सावधान रहने की अपील की है. जयपुर के इलाकों में आतिशबाजी की शुरुआत हो चुकी है और लोगों ने पटाखे चलाने शुरू कर दिए हैं. इस दौरान डॉक्टर्स ने सलाह दी है कि अपने त्यौहार को मनाए और पटाखे चलाए लेकिन, अस्थमा रोगी, श्वास, दमा से पीड़ित और बच्चे अगर थोड़ी सी सावधानी बरतेंगे तो उनकी सेहत को कोई नुकसान नहीं होगा.
जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के अस्थमा एलर्जी और टीबी विशेषज्ञ डॉ.नरेश कुमावत ने बताया कि दीपावली पर भले ही हरित पटाखे से आतिशबाजी करने की अनुमति दे रखी है, लेकिन मास्क जरूर लगाएं. इससे सांस संबंधी रोग से भी परेशान नहीं होंगे, मास्क धूल, धुआं से बचाता है, इसकी अनदेखी करने पर सांस से संबंधित रोगियों को दिक्कतें हो सकती है. जहां तक हो सकें, अस्थमा रोगी, श्वास, दमा से पीड़ित जब ज्यादा आतिशबाजी हो तो अपने घर में रहें तो बेहतर रहेगा. अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो सेहत भी बनी रहेगी और त्यौहार का मजा भी दुगुना हो जाएगा. इसलिए पहले से श्वास रोग से पीड़ित मास्क लगाकर ही बाहर निकलें और आवश्यक हो तभी बाहर निकले. सांस के मरीज जो इनहेलर लेते हैं, वे इनहेलर साथ लेकर बाहर निकलें और नियमित दवा लेते रहें. प्राणायाम व गहरी सांस लेने का अभ्यास करें.
आतिशबाजी के दौरान छोटे बच्चों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि पटाखों के धुएं से बच्चों को गंभीर एलर्जी होने की भी आशंका रहती है. इसी प्रकार घर के बुजुर्गों का भी ध्यान रखने की जरूरत है. अस्थमा की बीमारी के लिए प्रदूषण को बहुत बड़ा कारण माना जाता है, अभी हल्की सर्दी भी शुरू हो गई है इसलिए सर्दी, धूल, धुंआ आदि से बचकर रहें. अगर फिर भी किसी को घबराहट या अधिक खांसी, स्किन, होंठ या नाखून का रंग नीला होना,सांस फूलना, घरघराहट या सीटी की आवाज आना, सीने में जकड़न महसूस होना, बेचैनी महसूस करना,सिर में भारीपन, हो तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें.
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे
'ग्रीन पटाखे' राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान की खोज हैं जो पारंपरिक पटाखों जैसे ही होते हैं, पर इनके जलने से कम प्रदूषण होता है. नीरी एक सरकारी संस्थान है जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंघान परिषद (सीएसआईआर) के अंदर आता है. ग्रीन पटाखे दिखने, जलाने और आवाज में सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं, लेकिन इनसे प्रदूषण कम होता है. सामान्य पटाखों की तुलना में इन्हें जलाने पर 40 से 50 फीसदी तक कम हानिकारक गैस पैदा होती हैं. ग्रीन पटाखों में इस्तेमाल होने वाला बारूद बहुत हद तक सामान्य पटाखों से अलग होता हैं और कम मात्रा में होता है. जहां ग्रीन पटाखों से अधिकतम 110 से 125 डेसिबल तक का ही ध्वनि प्रदूषण होता है वहीं, नॉर्मल पटाखों से 160 डेसिबल तक ध्वनि प्रदूषण होता है. ग्रीन पटाखे परंपरागत पटाखों की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं और सरकार की ओर से रजिस्टर्ड दुकान से या फिर ऑनलाइन इनकी खरीदारी इस दिवाली कर सकते हैं.
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