सरकारी विद्यालय का नाम आते ही जहन में टूटी फूटी बिल्डिंग, छतों से टपकता पानी और बेहाल व्यवस्थाएं नजर आती है, लेकिन राजधानी से महज 50 किलोमीटर दूर दूदू उपखंड के ग्रामीण क्षेत्र सावरदा में एक सरकारी विद्यालय ऐसा है, जो इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है.
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Dudu: सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं होती है. खास तौर पर दूरदराज के गांव में बने प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सुविधाओं का टोटा रहता है. काफी विद्यालय तो ऐसे हैं जहां बच्चों की बैठने तक की व्यवस्था ठीक नहीं है.
मौजूदा दौर में सरकारी स्कूलों में असुविधाओं की वजह से ही बच्चों का दाखिला कम होते नजर आते है. ऐसे में दूदू उपखंड में एक सरकारी विद्यालय ऐसा है, जहां के शिक्षको ने नामांकन तो बढ़ाया ही साथ ही विद्यालय की सूरत और सीरत बदल कर रख दी, जिसके बाद इस विद्यालय की हर कोई तारीफ कर रहा है.
अक्सर सरकारी विद्यालय का नाम आते ही जहन में टूटी फूटी बिल्डिंग, छतों से टपकता पानी और बेहाल व्यवस्थाएं नजर आती है, लेकिन राजधानी से महज 50 किलोमीटर दूर दूदू उपखंड के ग्रामीण क्षेत्र सावरदा में एक सरकारी विद्यालय ऐसा है, जो इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. यहां के प्रधानाचार्य तीन वर्षों में लगातार बदलाव की बयार बहाई है, जिससे शिक्षा का स्तर तो बदला ही बल्कि विद्यालय का परिसर भी हरियाली से अटा पड़ा है. साथ हीं, शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों के भविष्य को सवारने के लिए बेहतर वातावरण में शिक्षा दी जा रही है, जिसका परिणाम नामाकन की संख्या में लगातार इजाफा ही नहीं बल्कि बोर्ड परिणाम भी पिछले 3 वर्षो में शत-प्रतिशत रहा है.
विद्यालय के शैक्षिक एक्टिविटीज पर तो शिक्षकों का विशेष ध्यान है ही लेकिन विधार्थियो के सर्वांगीण विकास को लेकर भी शिक्षक अग्रणी भूमिका में नजर आते है. विधार्थियों के लिए शाला में बौद्धिक विकास, मानसिक विकास और शारीरिक विकास को लेकर शाला में निरंतर प्रतिगोगिताओं का आयोजन किया जाता है, जिससे विधार्थियों में शैक्षिक गुणवत्ता के साथ-साथ इनका भी विकास हो सके. शारीरिक विकास को लेकर खेल ग्राउंड में विधार्थियों के बीच विभिन्न खेल प्रतियोगिता का आयोजन साप्ताहिक किया जाता है, जिससे विधार्थी शैक्षणिक योग्यता के साथ मेंटली, फिजिकली भी तैयार हो सकें.
विद्यालय का परिवार विद्यालय में शैक्षिक स्तर को निरंतर गुणवत्तापूर्ण करने में जुटा रहता है, जिससे विधार्थियो का शैक्षिक स्तर उच्चकोटी का हो सके लेकिन विद्यालय में केवल कला संकाय का होना और विज्ञान संकाय और वाणिज्य संकाय का न होना विद्यालय के लिए एक अभिशाप बना हुआ है. विद्यालय के टॉप क्लास विधार्थी न चाहते हुए भी शाला छोड़ने को मजबूर हो जाते है. विशेषकर शाला की बालिकाओं के लिए शाला छोड़कर यहां से 20 से 25 किलोमीटर जाना मजबूरी हो जाती है. विधार्थियों ने कई बार जनप्रतिनिधियों और सरकार से गुहार लगाई पर अब तक नतीजा शिफर रहा है, जिसका प्रभाव विद्यालय के नामांकन पर देखा जा सकता है.
विद्यालय प्रधानाचार्य ने ओम प्रकाश सैनी ने 3 वर्ष पहले विद्यालय में जॉइन कर विद्यालय के हालात देखें, जहां छतों से पानी टपकता था, खेल ग्राउंड में कीचड़ झाड़ियां और पत्थर पड़े थे और शैक्षणिक वातावरण भी बच्चों के अनुकूल नहीं था. ऐसे में प्रधानाचार्य ने इस सरकारी विधालय की सूरत और सीरत बदलने की ठान ली. अपने विद्यालय परिवार का सहयोग और भामाशाहों से सहयोग लेकर विद्यालय भवन की मरम्मत करवाई, जिससे शाला के कमरों की टपकती छतों से विधार्थियों को निजात मिली. विद्यालय ग्राउंड में रेत से भरत करवाकर पेड़-पौधे लगाए, जिससे कीचड़ से छात्रों को निजात मिली. अब खेल मैदान हरियाली से अटा पड़ा है. साथ हीं, पेड़-पौधे मैदान की शोभा बढ़ा रहे हैं. वहीं, शिक्षिक गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया और परिणाम 2019 में 180 विधार्थियों का नामांकन ही था, लेकिन 2022 में नामांकन बढ़कर 450 से ऊपर हो गया है.
शाला में शैक्षिक माहौल चरम पर है. साथ हीं, शिक्षकों का जुनून भी शैक्षिक स्तर को लेकर सातवे आसमान पर है. शाला में विधार्थियों को कम्प्यूटर शिक्षा (इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी) का ज्ञान भी विधिवत दिया जा रहा है. कम्प्यूटर( सिस्टम) पुराने P4 होने की वजह आईटी शिक्षक के सामने कई समस्याएं सामने आती हैं, लेकिन शिक्षकों के जुनून के आगे सब समस्याएं निढाल हो जाती हैं. विद्यालय के सभी शिक्षक लगातार बेहतर शिक्षा और अच्छा वातावरण के लिए प्रयास करते रहते हैं और भामाशाह से हर संभव मदद लेते हैं. साथ हीं, सरकार से भी समय-समय पर आवश्यकता होगी मांग करते हैं.
अगर कोई भी व्यक्ति ठान लें और समस्याओं को जुनून के रूप में स्वीकार कर समस्याओं को लड़ना शिख ले तो किसी व्यक्ति के जुनून के आगे समस्याएं भी नतमस्तक हो जाती है. विद्यालय परिवार ने समस्याओं से लड़ समस्याओं से निजात पाई. अगर हर सरकारी विद्यालय का परिवार पूरे जुनून से कार्य करें, तो वो दिन दूर नहीं जब सरकारी विद्यालय शैक्षिक गुणवत्ता में निजी विद्यालय से भी बेहतर होंगे और अभिभावकों का रुझान सरकारी विद्यालय की ओर बढ़ेगा. इस सिख से सबको को सीखने की आवश्यकता है, ताकि सरकारी व्यवस्थाओं का सभी को सही तरीके से लाभ मिल सकें. ऐसे उदहारण समाज में अच्छा संदेश देने का एक तरीका है.
Reporter- Amit Yadav
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