Winter Cravings: अक्सर देखने में आता है कि ठंड बढ़ते ही भूख भी बढ़ने लगती है. लोग इसी वजह से उल्टा-सीधा खाने लगते हैं. इसका नतीजा ये होता है कि हमारा वजन बढ़ने लगता है और इसी की वजह से वजन बढ़ने की चिंता भी सताने लगती है.
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Winter Cravings: सर्दी का मौसम शुरू होते ही जैसे-जैसे तापमान में गिरावट आती है और हवाएं सर्द बढ़ने लगती हैं, वैसे ही हम ज्यादा कपड़े तो पहनना शुरू कर ही देते है, इसके साथ ही ज्यादा खाने भी लगते है.
अक्सर आपने देखा होगा कि ठंड बढ़ते ही भूख भी दोगुनी हो जाती है और आप इस वजह से उल्टा-सीधा खाने लगते हैं. कई बार तो आपके शरीर को खाने की जरूरत भी नहीं होती, लेकिन फिर भी आपका दिमाग लगातार खाने के बारे में ही सोचता है. इसका नतीजा यही होता है कि हम लगातार स्नैक्स जैसी चीजें खाते रहते हैं और फिर बढ़ते वजन की भी चिंता सताने लगती है.
मौसम में हल्की-सी ठंड महसूस होने लगती है और इस बदलते मौसम के साथ ही ज्यादा खाने की इच्छा भी बढ़ जाती है. तो चलिए आपको बताते ही कि आखिर ठंड आते ही भूख क्यों बढ़ने लगती है.
सर्दी का मौसम काफी उदास होता है. धूप नहीं आती, ठंड की वजह से लोग घरों से कम बाहर निकलते हैं और हर तरफ कोहरा होता है, ठिठुरन रहती है, जिससे कई लोग परेशान रहते हैं और इसलिए इसे उदास मौसम कहा जाता है. रिसर्च की मानें तो ज्यादातर लोग ठंड के मौसम में SAD यानी सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर से जूझते हैं और यही वजह है कि वह ज्यादा खा भी लेते हैं.
मौसम के ठंडा होते ही हमारा शरीर खुद को गर्म करने के लिए ज्यादा मेहनत करता है. इसलिए शरीर को ज्यादा ऊर्जा के लिए कैलोरीज की जरूरत पड़ती है. जब ऐसा होता है, तो हमारे दिमाग को सिगनल मिलता है कि और कपड़े पहन लेने चाहिए और कैलोरी से भरपूर खाना खा लेना चाहिए. इस दौरान हमें ये भी पता नहीं लगता कि हम कितना खा रहे हैं.
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सर्दी के मौसम में गर्मियों की तुलना प्यास कुछ कम लगती है, इसलिए लोग कम पानी पीते हैं, जिसकी वजह से शरीर में पानी की कमी यानी डीहाइड्रैशन हो जाता है. इसलिए डीहाइड्रैशन की समस्या सर्दियों में आमतौर पर देखने को मिलती है. इसके अलावा घर में चल रहे हीटर और गर्म कपड़े भी शरीर को डीहाइड्रेट करते हैं. ऐसे में जब हमारे शरीर को पानी की जरूरत होती है, तो हमारा दिमाग इसे भूख समझने की गलती करता है और हम ज्यादा खा लेते हैं.
इस थ्योरी की पुष्टि सैंकड़ो वैज्ञानिक अध्ययनों में हुई है. जर्नल 'फिजियोलॉजिकल बेहवियर' 2004 में प्रकाशित स्टडी इस पर साक्ष्य प्रदान करती है. इतना ही नहीं, जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में महिलाओं के मेटाबॉलिज्म के दर को तापमान के अनुसार नापा गया, इस शोध के निष्कर्ष में पाया गया कि 22 डिग्री के तापमान में हम तीन घंटे में जितनी ऊर्जा की खपत करते हैं, 15 डिग्री तापमान में हम उतनी ऊर्जा एक घंटे में ही इस्तेमाल कर लेते हैं.
- कोई भी व्यक्ति जब नहा के आता है, तो ऊपर से उसका शरीर ठंडा हो जाता है और सारी एनर्जी पेट में एकत्र हो, पाचन अग्नि तेज करती है.
- पाचन क्रिया भी सूर्य की गर्मी से ही चलती है और खासकर सूर्य की गर्मी से आपने देखा होगा कि रात का खाया हुआ भोजन कभी भी हजम नहीं होता है, क्योंकि उस समय पाचन अग्नि जागृत नहीं होती हैं, इससे कसके भूख लगती है.
- इसमें प्रोसेस यह है कि शरीर ऊपर से ठंडा हुआ और शरीर में उपस्थित बायोलॉजिकल क्लॉक शरीर को जीवित रखने के लिए सारी गर्मी को अंदर एकत्र करती है.
- यही प्रोसेस ठंड के दिनों में काम करता है कि ऊपर से ठंड लगती है और शरीर को गर्मी चाहिए होती है, तो पेट में स्टिमुलेशन चालू हो जाता है और पाचन अग्नि तीव्र हो जाती है.
- आपने अक्सर सुना होगा कि हमेशा गर्म लोहे के तवे पर पानी मत डालो नहीं तो तवा फूट जाता है, क्योंकि उसके अंदर भरकर गर्मी ब्लास्ट हो जाती है.
- एक कारण यह भी होता है कि घर में बैठे-बैठे दिन भर आदमी करे, तो हम सर्दियों में बहुत सारी डिशेस बनाते रहते हैं, क्योंकि तरह-तरह की सब्जियां आती है.
- शरीर की बायोलौजिकल क्लॉक शरीर को ऐडिक्ट कर देती है. हर चीज का ऐडिक्शन होता है कि शरीर को एक निश्चित समय पर अपने आप भूख लगती है.
- जब हमारा पेट खाली होने लगता है और खाना नीचे उतरता है, तब भी हमें नकली भूख लगती है. इस समय खाना खाने से पेट खराब हो जाता है और पाचन क्रिया आधी होती है और खाना चिपक जाता है.
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