Shardiya Navratri 2023: जोधपुर पर गिरे बम के गोले, मां चामुंडा ने आंचल का कवच बनाकर की भक्तों की रक्षा
Advertisement
trendingNow1/india/rajasthan/rajasthan1916288

Shardiya Navratri 2023: जोधपुर पर गिरे बम के गोले, मां चामुंडा ने आंचल का कवच बनाकर की भक्तों की रक्षा

Shardiya Navratri 2023: चामुंडा देवी का ऐतिहासिक मंदिर है. मेहरानगढ़ की तलहटी में मां चामुंडा की प्रतिमा को स्थापित किया गया हैं. जोधपुर की स्थापना के साथ ही मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट पर इस मंदिर को स्थापित किया गया था.

 Shardiya Navratri 2023: जोधपुर पर गिरे बम के गोले, मां चामुंडा ने आंचल का कवच बनाकर की भक्तों की रक्षा

Shardiya Navratri: राजस्थान के जोधपुर जिले के मेहरानगढ़ फोर्ट में मां चामुंडा देवी का ऐतिहासिक मंदिर है. मेहरानगढ़ की तलहटी में मां चामुंडा की प्रतिमा को स्थापित किया गया हैं. जोधपुर की स्थापना के साथ ही मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर जोधपुर के मेहरानगढ़ फोर्ट पर इस मंदिर को स्थापित किया गया था. मां चामुंडा देवी को अब से करीब 561 साल पहले मंडोर के परिहारों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता था. देश-विदेश के लोगों की धार्मिक आस्था इस मंदिर से जुड़ी है. श्रद्धालुओं का ये मानना है कि मां के दरबार में जो मन्नत मांगी जाती है वो पूरी होती है.

मां चामुंडा के मुख्य मंदिर का निर्माण जोधपुर मारवाड़ राजपरिवार के महाराजा अजीतसिंह ने करवाया था. मारवाड़ के राठौड़ वंशज चील को मां दुर्गा का स्वरूप मानते हैं. राव जोधा को माता ने आशीर्वाद में कहा था कि जब तक मेहरानगढ़ दुर्ग पर चीलें मंडराती रहेंगी तब तक दुर्ग पर कोई विपत्ति नहीं आएगी. आज भी यहां फोर्ट पर चील मंडराती हुई नजर आती है. उसे लोग देवी के रूप में देखते है. मेहरानगढ़ दुर्ग में स्थित मंदिर में चामुंडा की प्रतिमा 561 साल पहले जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने मंडोर से लाकर स्थापित की थी. इसके बाद परिहारों की कुलदेवी चामुंडा को राव जोधा ने भी अपनी इष्टदेवी स्वीकार किया था. इसके साथ ही जोधपुरवासी मां चामुंडा को जोधपुर की रक्षक मानते है.

यह भी पढ़े- किसी की बीवी बनने से पहले लड़कियां जान लें ये बातें

भारत-पाक युद्ध चामुंडा ने भक्तों की रक्षा
मां चामुंडा माता के प्रति अटूट आस्था का कारण ये भी है कि साल 1965 और 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जोधपुर पर गिरे बम को मां चामुंडा ने अपने अंचल का कवच पहना दिया था. बताया जाता है कि किले में 9 अगस्त 1857 को गोपाल पोल के पास बारूद के ढेर पर बिजली गिरी थी. जिससे मां चामुंडा मंदिर कण-कण होकर उड़ गया, लेकिन मूर्ति अडिग रही. ऐसे में शहर के लोगो की आस्था और ज्यादा प्रबल हो गई. लोग सुबह शाम मां चामुंडा आराधना करते है बल्कि उसे अपना रक्षा कवच भी मानते है. लोगो की धारणा है कि मां चामुंडा रक्षण के रूप में वो हमेशा उनके साथ है.

Trending news