(Hindu Marriage)हिंदू धर्म में एक गोत्र (Gotra)में शादी नहीं होती, लेकिन अगर किसी ब्राह्मण को अपना गोत्र ना पता हो तो फिर उसे एक निश्चित गोत्र का मान कर आगे कुंडली मिलान किया जाता है या फिर इस तरीके का प्रयोग किया जा सकता है...
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Gotra : हिंदू धर्म में एक गोत्र में शादी नहीं होती. रक्त संबंधों के बीच विवाह से बचने के लिए गोत्र व्यवस्था शुरू की गयी थी. वैदिक काल से ही गोत्र की मान्यता है. ज्योतिष के अनुसार गोत्र सप्तऋषि के वंशज के रूप में हैं.
सप्तऋषि- गौतम, कश्यप, वशिष्ठ, भारद्वाज, अत्रि, अंगिरस और मृगु हैं. एक गोत्र के लड़के लड़कियों के बीच शादी नहीं की जा सकती है. लेकिन समय बीतने के साथ ही जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य भी इसमें मिल गये.
आम भाषा में बोला जाए तो 'गोत्र' से आशय पहचान से है, जो ब्राह्मणों के लिए उनके ऋषिकुल से ही होती है. गोत्र का अर्थ है कि हम एक पूर्वज से हैं. इसी वजह से एक ही गोत्र के लड़के और लड़की की रिश्ता नहीं किया जाता है.
माना जाता है कि अगर एक ही गोत्र में शादी होती है तो संतानप्राप्ति में परेशानी होती है. या अगर संतान हो भी जाएं तो आनुवांशिक विकृति के साथ जन्म लेती है. ये विकृति शारीरिक या मानसिक हो सकती है.
ज्यादातर हिंदू शादियों में 5 या फिर कम से कम 3 गोत्र छोड़कर ही विवाह करवाया जाता है. इन तीन गोत्र में सबसे पहला गोत्र स्वंय का है जिसमें माता पिता का गोत्र शामिल है. दूसरा गोत्र यानि माता पक्ष के परिवार का गोत्र और तीसर गोत्र दादी का गोत्र. जब ये गोत्र अलग हों तभी शादी होती है.
लेकिन अगर किसी ब्राह्मण को अपना गोत्र ही पता नहीं हो तब उसे कश्यप गोत्र का माना जाता है. क्योंकि ऋषि कश्यप के अधिक विवाह हुए थे और उनके बहुत से पुत्र थे. या फिर आप किसी ब्राह्मण से धार्मिक अनुष्ठान करवाकर उसी ब्रह्मण को दान देकर, उसका गोत्र उनकी अनुमति के बाद अपना मान सकते हैं .
मान्यता है कि 7 पीढ़ियों के बात गोत्र बदल जाता है. यानि की 8वीं पीढ़ी के लिए गोत्र से जुड़े विवाह पर विचार संभव है, लेकिन बहुत से ज्योतिष इसे मान्यता नहीं देते हैं.
हिंदू धर्म में लिखी गयी ये बातें आज की जनरेशन को बेमानी लग सकती है. लेकिन इसके पीछे भी एक विज्ञान है और वो ये कि एक ही कुल या गोत्र में शादी करने पर उस कुल के दोष, अवगुण, बीमारी आने की पीढ़ी में जीन्स के जरिए ट्रांसफर होगी.बहन ने भाई से कर ली शादी और दिया सांप जैसे बच्चे को जन्म
इसलिए इस परेशानी से बचने के लिए तीन गोत्र छोड़कर शादी के दौरान वर या वधु का चयन होता है और तभी कुंडली मिलान का कार्य आगे बढ़ता है. क्योंकि अलग अलग गोत्र में शादी होने पर संतान में उन बीमारियों के होने की आंशका कम होती है और बच्चे विवेकशील जन्म लेते हैं.
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