Kota: तेजादशमी के दिन लगने वाले मेले से पहले लोकदेवता तेजाजी खुद एक सांप की देह धारण करके आते हैं और भोपे को संदेश देकर एक पेड़ से उतरकर भोपे की ही पगड़ी में सवार होकर सैकड़ों लोगों की शोभायात्रा के साथ आते हैं.
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Kota: शौर्य और वीरता की भूमि राजस्थान में कदम-कदम पर थर्मोपली जैसे युद्व मैदानों और इन मैदानों में लड़ी गई महान जंगों का तो पड़ाव रहा ही है, लेकिन साथ ही लोकदेवियों और लोकदेवताओं की आस्था कथाएं भी यहां की संस्कृति का अटूट हिस्सा रही हैं. ऐसे ही एक प्रसिद्ध हाड़ौति में लोकदेवता तेजाजी का एक ऐसा ही थानक है, जहां की चमत्कार कथा हर किसी को चकित कर देने वाली हैं.
यहां तेजादशमी के दिन लगने वाले मेले से पहले लोकदेवता तेजाजी खुद एक सांप की देह धारण करके आते हैं और भोपे को संदेश देकर एक पेड़ से उतरकर भोपे की ही पगड़ी में सवार होकर सैकड़ों लोगों की शोभायात्रा के साथ बूंदी जिले के आन्तरदा गांव के अपने थानक पर न सिर्फ आते हैं, बल्कि थानक के पीछे स्थित केत के पेड़ पर 3 दिनों तक रहकर भक्तों को दर्शन देते हैं और तीसरे दिन मेला समाप्ति के साथ ही अचानक अर्न्तध्यान हो जाते हैं.
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बता दें कि कीर जाति के बूंदी जिले के आन्तरदा गांव के भोपाजी प्रभुजी कीर को तेजाजी का भाव आने के बाद 144 साल पुरानी परंपरा के तहत वो ठिकाना बताया जाता है, जहां तेजाजी महाराज की सर्परुपी देह पेड़ पर भक्तों की प्रतीक्षा कर रही होती हैं. आन्तरदा ठाकुर समर प्रताप सिंह के नेतृत्व में अलगोजा बजाते 12 गांवों के लोग इस साल भी तेजादशमी के दिन शोभायात्रा के रुप में भोपाजी की बतायी पहाड़ी पर कोटा बालाजी में पहुंचे तो वहां धोक के पेड़ पर रस्सैल वाइपर सॉप, जिसे ग्रामीण तेजाजी की 3 दिन के लिये बनी सर्पदेह मानते हैं और वहां बिराज रहे थे.
साथ ही गाने-बजाने और मनाने के जतन करने के बाद ये खतरनाक सांप पेड़ से उतरकर भोपाजी के हाथ से पगड़ी में आ जाता है और गाजेबाजे के साथ भोपाजी के शरीर पर खेलता हुआ थानक पर लाया जाता है. जहां थानक के पीछे के केत के पेड़ पर तेजाजी पूरे 3 दिन रहते हैं और तेजादशमी से लेकर त्रयोदशी तक सबको दर्शन देते हैं.
तेजाजी महाराज 12 वीं सदी में नागौर के खरनाल गांव में अवतरित हुये लोकदेवता हैं, जो देश के कई हिस्सों के जनआस्था के देव हैं, लेकिन खासतौर पर जाट जाति के लोगों में तेजाजी महाराज की विशेष आस्था और मान्यता है. अपनी वीरता के साथ वचनबद्वता और सत्यप्रियता के साधक देव तेजाजी ने दस्युओं द्व्रारा लूटे गायों के टोले को छुड़ाने में अप्रतिम साहस का परिचय दिया, लेकिन रास्ते में डसने आए नाग को गायों को छुड़ाकर आने का वचन देकर गए. घायल हालत में गायें मुक्त कराकर लौटे तेजाजी ने नागदेव से जीभ पर दंश कराया और तब से सांपों के देव के रुप में ख्यातिप्राप्त तेजाजी के नाम का धागा उनके थानक पर उनके भोपे द्वारा बांध देने भर से सर्पदंश का विष उतर जाता है, यहां कि ऐसी मान्यता है. बूंदी के आन्तरदा गांव में भी करीब 144 साल पहले ठिकाने की रानी की भी सर्पदंश के बाद तेजाजी के थानक पर जाकर जान बची और तब से तेजाजी आन्तरदा ही आ गए और अब तक हर साल ठिकाने की रानी को दशमी से पहले सर्पदंश होता है और शोभायात्रा के साथ सर्परुपी देह के दर्शन कराने के बाद भोपाजी रानी की डसिया काटते हैं और जहर उतर जाता है, इसके बाद तेजाजी की सर्पदेह 3 दिन तक थानक के पीछे के केत के पेड़ पर रहती हैं.
थानकों और तेजाजी के चमत्कारों के बीच बता दें कि जिस रस्सैल वाइपर प्रजाति के सांप को आन्तरदा और आसपास के 12 गांवों के ग्रामीण तेजाजी की सर्पदेह मानते हैं, वो भारत के 5 सबसे विषैले सॉपों में से है, जिसके काटने पर आदमी सिर्फ कुछ सैकंड्स से लेकर कुछ मिनट तक ही जीवित रह पाता है, लेकिन आन्तरदा में ऊपर के नग्न धड़ के साथ भोपाजी के शरीर पर रम रहे सर्पदेवता ने किसी को आज तक नहीं काटा है, लेकिन आन्तरदा और आसपास के गांवों के लोग सर्पदेव में अपनी इस गहरी लोकआस्था में किसी तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं और हर साल तेजादशमी सर्पदेव को थानक पर लाकर धूमधाम से मनाते हैं.
Reporter: Himanshu Mittal
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