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Rajasthan OPS : चुनावी चौसर पर सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष चाल चल रहे हैं. पांच साल सरकार चलाने वाली कांग्रेस एक से बढ़कर एक योजनाओं के तीर अपने तरकश से निकाल चुकी तो उधर बीजेपी भी कांग्रेस के हथियारों की धार कुंद करने के लिए अपने हमलों की ढाल लेकर तैयार खड़ी दिखाई दी. ... सरकार के मुखिया ने फ्लैगशिप स्कीमों के जरिये देशभर में डंका बजाने की कोशिश की और झंडे में सबसे आगे रखा OPS यानि ओल्ड पेंशन स्कीम को. लेकिन चुनावी मौसम में मुद्दों के बीच सवाल चर्चा में है कि क्या यह OPS वाकई ब्रह्मास्त्र है? ओपीएस का धमाका आखिर कैसा है.
अशोक गहलोत मुख्यमंत्री के रूप में तीसरी बार राज्य की कमान संभाल रहे हैं. आचार संहिता लग गई है. चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है. सरकार ने जनता को बहुत कुछ बांटां. लेकिन अब पार्टियां टिकट बांटने में लग गई है. गहलोत ने अपने तीनों कार्यकाल में फ्लैगशिप स्कीम की बात की. इस बार भी महंगाई राहत कैंप लगाए. दस योजनाओं का फायदा लोगों को दिया. लेकिन केन्द्र सरकार और बीजेपी को घेरने के लिए OPS यानि ओल्ड पेन्शन स्कीम का दांव भी सरकार ने चला. कर्मचारियों ने हर तरफ़ इसका स्वागत किया. ... यहां तक की चौथी बार ओपीएस सरकार का नारा तक लगा दिया.
कर्मचारियों के इन नारों की आवाज़ अब तक कांग्रेस के कई नेताओं और सरकार के मन्त्रियों के कानों में गूंजती है. लेकिन जिस ओपीएस को राजस्थान सरकार ने अपनी योजनाओं का झंडाबरदार बताया. जिसे फ्लैगशिप में कर्मचारी परिवारो कों लाभ देने वाला बताया और दावा किया कि प्रदेश के सभी राज्य कर्मचारियों को ओपीएस मिल रही है. इतना ही नहीं सरकार ने कर्मचारियों को ही इस योजना का ब्रांड एम्बेसडर बनाया और उसका प्रचार कर्नाटक चुनाव से लेकर राजस्थान तक किया.
शिक्षा विभाग से रिटायर राजकुमारी जैन से इनके रिटायरमेंट और ओपीएस को लेकर सरकार के प्रचार की कमान संभालने वाले लोगों ने वीडियो रिकॉर्ड कराया. उनकी फोटो के साथ अखबारों में विज्ञापन छापा. और सरकारी प्रचार तन्त्र यानि सूचना और जनसम्पर्क विभाग के ट्विटर हैंडल पर राजकुमारी जैन का बयान भी चलाया. लेकिन अचानक यह क्या हुआ? अभी तक सरकार की नूर-ए-नज़र और लख्ते-ज़िगर बनी OPS को लेकर स्कीम की ब्रान्ड एम्बेस्डर राजकुमारी जैन का मन क्यों बदल गया? आखिर क्यों वे अचानक अपने आपको ओपीएस से पीड़ित मानने लग गई? सरकार की योजना की तारीफ करने वाली इस ब्रांड एम्बेसडर की ज़ुबानी ही सुन लीजिए.
60 साल की उम्र पूरी करने के बाद रिटायर हुई राजकुमारी को तकरीबन 87 हज़ार रुपए सैलरी में मिल रही थी. अब उनकी पेन्शन 13 हज़ार 500 पर फिक्स हो गई है. इसका कारण वे बताती हैं कि अनुदानित शिक्षण संस्था में 1992 से नौकरी की. 2011 में सरकारी सेवा में समायोजन हो गया. सारे लाभ डेट ऑफ अपॉइंटमेंट से दिए... लेकिन पेन्शन देते वक्त सरकारी सेवा 2011 से ही मानी. ऐसे में जिस कर्मचारी की पेंशन तकरीबन 50 हज़ार होनी चाहिए थी.. उन्हे अब 13 हज़ार 500 रुपए मिल रहे हैं. राजकुमारी जैन तो एक उदाहरण हैं. लेकिन उनके साथ अनुदानित संस्थाओं से सरकारी सेवा में मर्ज हुई दूसरी कुछ साथी कर्मचारियों की भी यही दास्तां है.
सरकारी की फ्लैगशिप स्कीमों में कर्मचारी वर्ग को प्रभावित करने वाली ओपीएस स्कीम को लेकर सरकार ने भले ही सभी कैडर को बेनिफिशियरी बनाने की कोशिश हो. लेकिन फिर भी इसमें खामी रह ही गई. ऐसे में कर्मचारी सवाल यही कर रहे हैं कि जिस योजना पर सरकार का सबसे ज्यादा फोकस था. उसके एग्जिक्यूशन में खामी रह गई तो क्या दूसरी योजनाओं का क्रियान्वयन फूल प्रूफ होगा? ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या सरकार ने अपनी योजना के ब्रांड एम्बेसडर की सुध नहीं ली? क्या मान लिया जाए कि ब्रांड एम्बेसडर बनाने में विभाग और सरकार दोनों ने लापरवाही बरती? क्या यह भी मान लिया जाए कि ब्रांड एम्बेसडर के लिए एक कमज़ोर उदाहरण उठाया और उसे जांचा-परखा तक नहीं? और सवाल यह भी कि क्या अधिकारियों ने इस मामले में सरकार के मुखिया को अंधेरे में रखा?
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