बदलेगा मेवाड़ का सियासी समीकरण! कौन बनेगा कटारिया का उत्तराधिकारी, हो सकती है भींडर की वापसी
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बदलेगा मेवाड़ का सियासी समीकरण! कौन बनेगा कटारिया का उत्तराधिकारी, हो सकती है भींडर की वापसी

Politics Of Mewar :  नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद मेवाड संभाग के साथ ही उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर अगल भाजपा प्रत्याशी कौन होगा इसकी चर्चा भी तेज हो गई है. कटारिया विराधी खेमा जहां अपनी ताकत को बढाने की जुगत कर रहा है. तो वहीं संभावित दावेदार अपनी दावेदारी को मजबूत करने की जुट गए हैं.

बदलेगा मेवाड़ का सियासी समीकरण! कौन बनेगा कटारिया का उत्तराधिकारी, हो सकती है भींडर की वापसी

Politics Of Mewar :  नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया को असम का राज्यपाल बनने के मेवाड़संभाग के ही राजनीतिक समिकरण बदलने लगे है. कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद मेवाड़ संभाग के साथ ही उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर अगल भाजपा प्रत्याशी कौन होगा इसकी चर्चा भी तेज हो गई है. लेकिन मेवाड़के इस दिग्गज नेता का प्रभाव संभाग की पूरी 28 सीटों पर माना जाता है लेकिन लगभग 20 सीटे ऐसे है जिस पर कटारिया पसंद ना पसंद काफी मायने रखती है. ऐसे में कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद इन सभी सिटों पर सियासी समिकरण बदते नजर आएगें. 

राजस्थान की सियासत में रविवार की सुबह एक बड़ी और चौंकाने वाली खबर लेकर सामने आई. मेवाड़ में बीजेपी के दिग्गज नेता और उदयपुर शहर विधायक गुलाबचंद कटारिया इन दिनों राजस्थान में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में विधानसभा में बीजेपी का नेतृत्व करते आते हैं. उन्हें असम का राज्यपाल बनाया गया है. ऐसे में उदयपुर की जनता के साथ ही राजस्थान की सियासत में रुचि रखने वाले हर एक के मन में एक ही सवाल है कि कटारिया अब किसे अपनी राजनीतिक जिम्मेदारी सौपेंगे ? कटारिया के बाद संभाग में भाजपा की कमान किसके हाथ होगी. कौन उदयपुर शहर विधानसभा सीट से पार्टी की नया चेहरा होगा. हालांकि इन सभी सवालों के जावाब भविष्य के गर्भ में है लेकिन राजनीतिक गलियारों में कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद से ही ये चर्चाएं तेज हो गई है.

गुलाबचन्द कटारिया वर्ष 2003 से लगातार उदयपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंच रहे है. ऐसे में उनके रहते इस बार भी पार्टी के तमाओं नेताओं के दावों को ठंडा मना जा रहा था. लेकिन उनके राज्यपाल बनने के साथ ही पार्टी में टिकट का दावा करने वाले नेताओं की संख्या भी बढ़ने लगी है और कटारिया विरोधी खेमा भी सक्रिय होने लगा है. कटारिया विरोधी खेमा जहां अपनी ताकत को बढाने की जुगत कर रहा है. तो वहीं संभावित दावेदार अपनी दावेदारी को मजबूत करने की जुट गए हैं.

कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद उपमहापौर पारस सिंघवी और भाजपा महिला मोर्चा प्रदेशाध्यक्ष अलका मूंदड़ा अपने स्तर पर संघ और पार्टी के बड़े नेताओं से बातचीत शुरू कर दी है. हालांकि दोनों ही नेता गुलाबचंद कटारिया की गुड लिस्ट में नहीं होने की बातें भी कही जाती रही है. ऐसे में वर्तमान में शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली का दावां मजबूत होता है और वे अभी कटारिया के करीबी भी माने जा रहे है. इसके साथ ही पूर्व महापौर रजनी डांगी, चन्द्रसिंह कोठारी, पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रमोद सामर जैसे कई नाम है जो टिकट की दौड़ में शामिल है. हालांकि इन चर्चित नामों पर पार्टी में आम सहमती बना पाना इतना आसान नहीं है. ऐसे में शहर विधानसाभ सीट पर चौंकाने वाला नाम भी सामने आ सकता है.

अन्य सीट के प्रत्याशी भी डालेगें असर
उदयपुर जिले की बता करें तो यहां विधानसभा की 8 सीटें है. जिनमें से 5 सीटें एसटी आरक्षित है और तीन सीटों पर सामान्य वर्ग के प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरते है. जिस पर पार्टी जातिय समिकरण का साधने के साथ टिकट का वितरण करती है. वर्तमान दौरान में पार्टी वल्लभनगर विधानसभा सीट से राजपूत प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतार सकती है. ऐसे में शेष बची दो सीटों में से एक प्रत्याशी ब्राह्मण समाज से होगा तो दूसरा टिकट जैन या डांगी समाज के नेता को दिया जाएगा. ऐसे में मावली विधानसभा सटी पर उतरने वाला प्रत्याशी सीधे तौर पर उदयपुर शहर विधानसभा सीट के प्रत्याशी पर असर डालेगा. संभावना जताई जा रही है कि इस बार चित्तौडगढ़ सांसद सीपी जोशी मावली से विधानसभा चुनाव में उतर सकते है. ऐसे में उदयपुर शहर से किसी जैन को टिकट मिल सकता है. अगर मालवी से किसी ब्राह्मण को टिकट नहीं मिला तो उदयपुर शहर में वर्तमान जिलाध्यक्ष रविन्द्र श्रीमाली का दावा मजबूत हो जाएगा.

बदल सकता है मेवाड़का सियासी समीकरण

कटारिया के राज्यपाल बनने के साथ ही मेवाड़ को सियायी समीकरण बदल सकता है. अब तक काटारिया को धराशाही करने वाली विरोधियों के हर चाल उन्हीं पर उल्टी पड़त नजर आई है. ऐसे में सक्रिय राज​नीति से हटने के बाद कटारिया विरोधी खेमा भी अपनी राजनीतिक धरातल मजबूत करने में जुट गया है. ऐसे में अगर पार्टी ने इस बार के विधानसभी चुनाव में मेवाड़ संभाग में कटारिया की पसंद का साइट लाइन रखा तो चुनावी मैदान में कई बदलाव नजर आ सकते है.

हो सकती है भींडर की वापसी

गुलाबचन्द कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद जनता सेना सुप्रिमो और वल्लभनगर के पूर्व विधायक रणधीर सिंह भींडर की वापसी की संभावनाए बढ़ सकती है. पूर्व विधायक भींडर को कटारिया का धुर विरोधी माना जाता है. यही कारण है कि उन्होंने वर्ष 2013 के चुनाव से पहले जनता सेना बना कर चुनाव लड़ा औार जीत दर्ज की. लेकिन वे 2018 और फिर उपचुनाव दौनो हार गए. भींडर को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता है. उन्हें कई बार पार्टी में लाने की कवायद की गई लेकिन कटारिया के विराधे के चलते उनकी वापसी नहीं हो पाई लेकिन अब बदले राजनीतिक समीकरण उनकी वापसी की उम्मीदें बढा सकते है.

संभाग की सीटों पर भी पडेगा असर

विधानसभा चुनाव के दौरान गुलाबचंद कटारिया पार्टी की टिकट को अंतिम रूप देने में अपनी विशेष भूमिका रखते है. बात अगर मेवाड़संभाग की करें तो पार्टी उनकी राय को पुरा सम्मान देती थी. उदपुर के साथ राजसमन्द, चित्तौडगढ, प्रतापगढ, डुंगरपुर और बांसवाडा जिले की अधिकांश सीटों पर कटारिया की सहमती मायने रखती थी. साथ ही वे कई बार अपने पसंद के दावेदार को टिकट दिलाने में सफल भी रहे. लेकिन अब इन तमाम सिटों पर भी असर पडता दिखाई देगा.

बहरहाल वर्तमान दौर में मेवाड़संभाग में ऐसे काई नेता नहीं है जो कटारिया के स्थान पर अपने आप को काबिज कर पाए. ऐसे में इस बार मेवाड़के विधानसभा चुनाव की पुरी कमान किसी ओर के ही हाथ में हो सकती है.

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