Ram Mandir Ayodhya: सच ये है कि अयोध्या का अस्तिव प्रभु श्रीराम के पहले से था. बस वक्त बदलता गया और तस्वीर बदलती गई. आज हम इतिहास के उन पन्नों को खंगालने की कोशिश करेंगे, जहां-जहां अयोध्या का जिक्र मिलता है.
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Ram Mandir Pran Pratishtha: भारत की आजादी के बाद अयोध्या (Ayodhya) को उत्तर प्रदेश में आध्यात्मिक रूप से एक प्रमुख शहर का दर्जा मिला. 1950 में उत्तर प्रदेश की स्थापना के बाद से फैजाबाद की पहचान सूबे के एक जिले के तौर पर हुई तो साल 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया. अब अयोध्या में राम, जय जय श्रीराम, राम नाम की गूंज है जो अयोध्या से निकलकर पूरे देश में. फिर दुनिया के कोने-कोने में फैली चुकी है. कलयुग की अयोध्या एक बार फिर त्रेतायुग जैसी चहक रही है. दमक रही है. आह्लादित है. आज हम आपको ये भी बताएंगे की वक्त के पहिए के साथ कैसे-कैसे अयोध्या बदलती चली गई. आज हम इतिहास के पन्नों के जरिए बनते और बिगड़ते अयोध्या के उन जख्मों को भी कुरेदने की कोशिश करेंगे.
सतयुग से अब तक कितनी बदली अयोध्या?
ये वक्त का पहिया है जो कई युगों से यूं ही निरंतर चला आ रहा है. न रुकता है, न तेज होता है, बस यूं ही अपनी ही नियत रफ्तार से चलता चला जा रहा है. वक्त के पहिए ने वो सबकुछ देखा, वो सबकुछ झेला, जो आज इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. बनते बिगड़ते इतिहास के हर पहलू का गवाह यही है. सतयुग से चले आ रहे इस कालचक्र ने, त्रेतायुग को भी देखा, द्वापरयुग को समझा, कलयुग को भी झेला और आज भी निरंतर गतिमान है. अयोध्या की कहानी, अयोध्या का बनता बिगड़ता इतिहास भी इसकी गतियों में पिरोया हुआ है.
वेदों में है सरयू और अयोध्या का जिक्र
ऋग्वेद के मंत्र में सरयू का आह्वान सरस्वती और सिंधु के साथ किया गया है. इसमें कहा गया है कि वैदिक काल में सिंधु और सरस्वती की तरह सरयू भी एक प्रमुख नदी थी और इसी नदी किनारे अयोध्या नगरी बसी है. अथर्वेवेद में भी अयोध्या नगरी का जिक्र मिलता है. अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर कहा गया है. जिसकी तुलना स्वर्ग से की गई है. अथर्वेवेद से पता चलता है कि इस काल में अयोध्या पूरी तरह से संपन्न और विकसित नगरी थी.
अयोध्या के 12 नाम कौन-कौन से हैं?
सारे वेद-उपनिषदों और संहिताओं को खंगालें तो वहां अयोध्या नगरी का उल्लेख दर्ज है. भले ही आज की अयोध्या का नाम पहले अयोध्या न रहा हो लेकिन नगर वही था. इतिहास के पन्नों के पलटने पर अयोध्या को अलग-अलग 12 नामों से जाना जाता था. जिनके नाम हैं, अयोध्या, आनंदिनी, सत्यापन, सत, साकेत, कोशला, विमला, अपराजिता, ब्रह्मपुरी, प्रमोदवन, सांतानिकलोका और दिव्यलोका.
रामायण में समझाया गया अयोध्या का भूगोल
वाल्मीकि रामायण में अयोध्या का पूरा भूगोल समझाया गया है. इस हिसाब से देखा जाए तो अयोध्या करीब 5200 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी. जबकि आज की अयोध्या को देखा जाए तो 120.8 वर्ग किलोमीटर में ही बसा है. यानी उस काल में अयोध्या आज की अयोध्या से करीब 44 गुना थी.
क्या अयोध्या 3000 साल पुरानी है?
अयोध्या की उम्र उतनी ही प्राचीनतम है जितना प्राचीनतम भगवान श्रीराम के कुल का इतिहास. इस दिव्य नगरी का प्राकट्य असल समय किसी को ज्ञात नहीं. बस आंकलन मात्र है. जबकि अयोध्या का उल्लेख अथर्वेवेद में भी मिलता है. उसका संकलन करीब 3000 वर्ष पहले का है. इसी आधार पर इतिहासकार तर्क देते हैं कि अयोध्या की उम्र अथर्ववेद के बराबर है.
अयोध्या में किसने बसाया?
कहते हैं कि त्रेतायुग में अयोध्या साकेत के नाम से विख्यात थी. अयोध्या भगवान राम की पावन जन्मस्थली के रूप में हिन्दू धर्मावलम्बियों के आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि सतयुग में अयोध्या को वैवस्वत मनु ने बसाया था. मनु के 10 पुत्र थे, जिनमें से एक का नाम इक्ष्वाकु था. यही वो काल था जिसमें अयोध्या का सबसे ज्यादा विस्तार हुआ.
अयोध्या के 64वें राजा थे प्रभु श्रीराम
इतिहास कहता है कि ये अयोध्या कई बार बनी और कई बार बिगड़ी. लेकिन इक्ष्वाकु काल में अयोध्या अपने सबसे विस्तृत रूप में थी. उसी समय सबसे ज्यादा मंदिरों का निर्माण हुआ. प्राचीन भारत के कौशल देश के सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र की राजधानी भी अयोध्या थी. इसके बाद त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का अवतरण हुआ. उनके राम राज्य की परिकल्पना आज भी की जाती है. पुराणों के मुताबिक, प्रभु श्रीराम अयोध्या के 64वें राजा थे. अयोध्या सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी थी. ये भारतीय इतिहास का सबसे लंबा राजवंश माना जाता है.
अयोध्या और सूर्यवंशियों का राजवंश
इस वंशावली में इस कुल के 123 राजाओं का उल्लेख है. इनमें से 93 ने महाभारत से पहले और 30 ने महाभारत के बाद राज किया. पुराणों के मुताबिक, अयोध्या के पहले 11 सूर्यवंशी राजा थे. दशरथ 63वें राजा थे और प्रभु श्रीराम 64 राजा हुए. वेदों में इस कुल 21 राजाओं का उल्लेख है. प्रभु श्रीराम को अपने पिता के दिये वचनों के आधार पर 14 वर्षों का वनवास काटना पड़ा. 14 वर्षों का वनवास पूरा करने के बाद राम अयोध्या लौटे और फिर वहां रामराज्य की स्थापना हुई. लेकिन अयोध्या में हमेशा ये राम राज्य नहीं रहा. इतिहास के पन्ने कहते हैं कि अयोध्या में राज और राजा बदलते रहे और इसके साथ ही यहां मंदिरों का हाल भी सुधरता और बिगड़ता रहा.
आज भी मौजूद हैं भगवान राम की निशानियां
त्रेता युग में श्रीराम की अयोध्या कई बार बिगड़ी और कई बार बसी, लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम की निशानियां, आज भी कायम हैं. इन निशानियों को खोजने में राजा विक्रमादित्य का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है. त्रेता युग की अयोध्या, द्वापर के लाखों सालों से होते हुए कलयुग के हजारों साल बाद भी कैसे मिली? इतिहास के पन्नों में इसका श्रेय चक्रव्रती सम्राट राजा विक्रमादित्य को दिया गया है. राजा विक्रमादिय ने अयोध्या की नई इबारत लिखी. उन्होंने अयोध्या को बदल डाला. वो राजा जिसने प्रभु श्रीराम के राम राज्य की फिर से स्थापना की.