Mughal Emperor Aurangzeb vs Shivaji: मुगल बादशाह औरंगजेब को लगने लगा था कि डेक्कन में उसके लिए मुस्लिम शासकों से अधिक खतरनाक मराठा साबित हो सकते हैं. दरअसल मराठा छत्रपति शिवाजी ने प्रण लिया था कि वो डेक्कन को मुगलों से आजाद करा कर ही रहेंगे. छापामार लड़ाई की मदद से उन्होंने औरंगजेब को सीधी चुनौती देनी शुरू की थी.
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Mughal Emperor Aurangzeb: उत्तराधिकार की लड़ाई में जब मुगल बादशाह औरंगजेब(Mughal Aurangzeb) पूरी तरह विजयी हुआ तो उसने दोबारा से राज्याभिषेक कराया. वो अपने साम्राज्य को और मजबूत करने की दिशा में उन शासकों या क्षत्रपों पर लगाम लगाना चाहता था जो उसके लिए मुश्किल खड़ा कर सकते थे. उनमें से एक मराठा थे. मराठा, महाराष्ट्र की राजनीति में शिवाजी (maratha ruler shivaji) के नेतृत्व में तेजी से उभर रहे थे. वैसे तो औरंगजेब, क्षत्रपति शिवाजी को एक सामान्य जमींदार (landlord) मानता था लेकिन राजा जयसिंह (king jaisingh) के नजरिए से बात इतनी सी भर नहीं थी. उनका विश्वास था कि दक्षिण में मुगलों (mughals in deccan)के लिए अगर कोई सबसे अधिक खतरनाक था तो वो शिवाजी ही थे.
मुगलों के लिए शिवाजी बने नासूर
शाहजहां(mughal emperor shahjahan) के पहले भी डेक्कन मुगलों के लिए नासूर बन चुका था. डेक्कन के इलाकों पर फतह के लिए मजबूत मुगल सरदार भेजे जाते थे. हालांकि हम एक खास प्रसंग का जिक्र करेंगे कि कैसे औरंगजेब जो यह मानकर चलता था कि उसका दिमाग औरों से तेज चलता है जिसकी भुजाओं में इतना दम है कि वो किसी को भी परास्त कर सकता है उसे एक ऐसी शख्सियत से बौद्धिक तौर पर मात खानी पड़ी जिसके बारे में उसकी राय छोटे से भूमिया से ज्यादा नहीं थी.डेक्कन में छत्रपति शिवाजी की गुरिल्ला लड़ाई से मुगलों को ज्यादा नुकसान हो रहा था उससे निपटने के लिए औरंगजेब ने अपने खास जय सिंह को भेजा. जय सिंह ने शिवाजी के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी. कुछ कामयाबी भी मिली लेकिन उन्हें अहसास हो चुका था कि शिवाजी एक ऐसी शख्सियत हैं जिनके साथ संघर्ष से अधिक साथ लेकर चलने की जरूरत है. मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे शिवाजी को यकीन हो चला था कि इस तरह की लड़ाई में विराम और संघर्ष की नीति पर चलना होगा.लिहाजा जय सिंह ने जब संधि का प्रस्ताव दिया तो वो हिचके नहीं और पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर कर दिए.
पुरंदर की संधि और शिवाजी से धोखेबाजी
पुरंदर की संधि के मुताबिक शिवाजी, औरंगजेब (mughal emperor aurangzeb)के दरबार में आए जहां उन्हें पांच हजार की मनसबदारी दी गई. अब यहीं से औरंगजेब और शिवाजी के खिलाफ लड़ाई का दूसरा दौर शुरू हुआ. दरअसल मनसब का मतलब रैंक से होता था. जितना अधिक मनसब उतनी ही अधिक प्रतिष्ठा. कुछ इतिहासकारों के मुताबिक पुरंदर की संधि(Purandar traety) के जरिए शिवाजी(Chhtrapati shivaji) के साथ छल किया गया. शिवाजी सात हजार की मनसबदारी चाहते थे जबकि वादे के खिलाफ उन्हें पांच हजार की मनसबदारी(5 thousand mansabsdari) दी गई और यह बात शिवाजी को नागवार लगी.
इस तरह औरंगजेब को शिवाजी ने दी मात
मुगलिया दरबार में जिसका मनसब अधिक होता था वो बादशाह के बेहद करीब खड़ा रहते थे और जिनकी मनसब कम होती थी वो पीछे की लाइन में खड़ा होते थे. अब शिवाजी को पांच हजार की मनसब दी गई थी लिहाजा उन्हें पीछे की लाइन में खड़ा होना पड़ा. शिवाजी को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने दरबार में ही भला बुरा कहा और यह बात औरंगजेब को पसंद नहीं आई. औरंगजेब के आदेश पर शिवाजी को कैद कर लिया गया.शिवाजी को जब औरंगजेब ने कैद किया तो उन्हें लगा कि उनसे छल किया गया है. अब वो आगरे के महल से निकलने के बारे में सोचने लगे. ऐसा कहा जाता है कि मुगलिया दरबार में मराठा सैनिक भी पहले से थे. इस तरह की परिस्थित में शिवाजी को औरंगजेब की कैद से आजाद होने का रास्ता नजर आया और मिठाई के टोकरे में छिपकर वो मुगल बादशाह की कैद से निकलने में कामयाब रहे. औरंगजेब को जब इस बात की जानकारी हुई तो वो बेहद नाराजा हुआ. इसके साथ ही उसने राजा जयसिंह से भी नाखुशी जाहिर की.