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Kalpwas 2025: माघ पूर्णिमा पर कैसे पूर्ण करें कल्पवास, आखिरी दिन तुलसी और मां लक्ष्मी की पूजा क्यों अहम?

प्रयागराज में संगम किनारे 45 दिनों तक चलने वाला महाकुंभ माघ पूर्णिमा को समाप्त होने वाला है. अभी भी महाकुंभ में दो प्रमुख स्‍नान बाकी है. संगम नगरी में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी है. जानिए  कल्पवास का महत्व और इतिहास

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Kalpwas 2025: प्रयागराज महाकुंभ अपने अंतिम पड़ाव पर है. 12 फरवरी को कल्पवासी संगम में स्नान कर व्रत का पारण करेंगे. मान्यता है कि माघ मास में संगम तट पर कल्पवास करने से सहत्र वर्षों के तप का फल मिलता है. अंतिम स्‍नान महाशिवरात्रि 26 फरवरी को होगा. 

विधिपूर्वक कल्पवास

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विधिपूर्वक कल्पवास

इस साल महाकुंभ में 10 लाख से ज्यादा लोगों ने विधिपूर्वक कल्पवास किया है. कल्पवास करना विशेष फलदायी माना जाता है. परंपरा के मुताबिक, 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा के दिन कल्पवास समाप्त हो जाएगा.

सत्संग का विधान

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सत्संग का विधान

पूजन और दान के बाद कल्पवासी अपने अस्थाई आवास त्याग कर दोबारा अपने घरों की ओर लौटेंगे. पद्मपुराण के मुताबिक, पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा एक महीने संगम तट पर व्रत और संयम का पालन करते हुए सत्संग का विधान है. 

कल्पवास का पारण

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कल्पवास का पारण

कुछ लोग पौष माह की एकादशी से माघ माह में द्वादशी के दिन तक भी कल्पवास करते हैं. पद्म पुराण में भगवान द्तात्रेय के बनाए नियमों के अनुसार कल्पवास का पारण किया जाता है. कल्पवासी स्नान कर अपने तीर्थपुरोहितों से नियम अनुसार पूजन कर व्रत पूरा करेंगे.

सत्यनारायण कथा

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सत्यनारायण कथा

शास्त्रों के अनुसार, कल्पवासी माघ पूर्णिमा के दिन संगम स्नान कर व्रत रखते हैं. इसके बाद अपने कल्पवास की कुटीरों में आकर सत्यनारायण कथा सुनने और हवन पूजन करने का विधान है. 

कल्पवास का संकल्प

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कल्पवास का संकल्प

कल्पवास का संकल्प पूरा कर कल्पवासी अपने तीर्थपुरोहितों को यथाशक्ति दान करते हैं. साथ ही कल्पवास के प्रारंभ में बोये गये जौ को गंगा जी में विसर्जित करेंगे. शास्त्रों के अनुसार, तुलसी जी के पौधे को साथ घर ले जायेंगे. तुलसी जी के पौधे को सनातन परंपरा में मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. 

क्या है इतिहास?

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क्या है इतिहास?

कहते हैं समुद्र मंथन के समय जब अमृत निकला तो उसकी कुछ बूंदे कई जगहों पर गिर गई. आज इन्हीं जगहों पर कुंभ का आयोजन होता है. माना जाता है कि इन जगहों पर तपस्या और साधना करने से अमृत जैसी दिव्यता और शांति मिलती है. जिसकी वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम किनारे कल्पवास करने आते हैं.

महर्षि वाल्मीकि से जुड़ी कहानी

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महर्षि वाल्मीकि से जुड़ी कहानी

कल्पवास की कथा रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि से भी जुड़ी है. उन्होंने अपने तप और साधना में इतने कठोर नियमों का पालन किया कि उन्हें कृतज्ञ तपस्वी के रूप में जाना जाने लगा. इन्हीं कठोर तपों के चलते उन्हें भगवान राम ने आशीर्वाद दिया और उन्होंने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की.

पद्म पुराण से जुड़ी कथा

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पद्म पुराण से जुड़ी कथा

पद्म पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने एक बार एक तपस्वी से पूछा कि वह क्या चाहते हैं. तपस्वी ने उनसे कहा कि वह कल्पवास करना चाहते हैं. ताकि वह संपूर्ण संसार के पापों से मुक्त हो सके. भगवान विष्णु ने तपस्वी को इसका आशीर्वाद दिया और कहा कि कोई भी व्यक्ति अगर सच्चे मन से तपस्या करता है तो उसे सभी पापों से मुक्ति मिलेगी.

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डिस्क्लेमर: लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं करें. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.