who is mahua moitra: संसद के शीतकालीन सत्र के पांचवे दिन विनोद कुमार सोनकर की अध्यक्षता वाली एथिक्स कमेटी ने अपना रिपोर्ट लोकसभा में आज पेश किया. महुआ मोइत्रा पर कैश-फॉर क्वेरी के आरोप लगे है
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mahua moitra cash for query case: संसद के शीतकालीन सत्र में गुरुवार को एथिक्स कमेटी ने टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा मामले में अपनी रिपोर्ट लोकसभा में पेश की. महुआ मोइत्रा पर सवाल पूछने के बदले पैसे लेने का गंभीर आरोप लगा है. रिपोर्ट में कमेटी ने महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द करने की सिफारिश की है, जिसे स्वीकार कर लिया गया है. हालांकि पिछले 35 सालों में करीब 43 सांसदों ने सदस्यता विभिन्न कारणों से गंवाई है.
भारत में संसद सदस्य को अयोग्य करार देने के कई कानून है. सबसे आम कानून सांसद की अयोग्यता का कारण बन सकता है. वह भारतीय संविधान के दल-बदल कानून के अंतर्गत आता है. महुआ मोइत्रा पर पैसा लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप लगा है. जिसे संसदीय भाषा में कैश-फॉर- क्वेरी कहते हैं. संसद में सदस्य के अयोग्य होने के कई मानक है. जैसे कि राजनीतिक निष्ठा बदलना, संसद के आचरण के विपरीत व्यवहार करना, पैसा लेकर सवाल पूछना, दो साल से अधिक जेल की सजा काटना या फिर किसी अपराध में दोषी पाए जाने पर भी संसद की सदस्यता चली जाती है.
1988 से लेकर 2023 तक 43 सांसदों की सदस्यता गई है. जिसमें राहुल गांधी भी शामिल है हालांकि उनकी सदस्यता फिर कोर्ट के द्वारा बहाल कर दी गई थी. सबसे ज्यादा सांसदों की सदस्या 14 वीं लोकसभा 2004 से लेकर 2009 तक 19 सदस्यों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. 14वीं लोकसभा में 10 सदस्यों को पैसा लेकर सवाल पूछने के मामले में अपनी सदस्या गंवानी पड़ी थी. वहीं 9 सांसदों की सदस्या 2008 में हुए विश्वासमत के दौरान क्रॉस वोटिंग करने के कारण गंवानी पड़ी थी.
संसद की सदस्य गंवाने में कई दिग्गज भी शामिल
मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989) सतपाल मलिक(1989), लालदुहोमा(1988), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) वहीं कांग्रेस का पूर्व अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी भी इस कानून के लपेटे में आ गई थी. लेकिन समय से पहले ही उन्होंने राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष पद संभालते ही लोकसभा के सदस्यता से इस्तीफा देकर मामले को जैसे तैसे जल्दी से निपटाया.
शरद यादव( 2017)
साल 2017 में जेडीयू के बागी राज्यसभा सांसद शरद यादव दल-बदल कानून के वजह से उनकी संसद सदस्यता चली गई थी.
मुफ्ती मोहम्मद सईद(1989)
भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री 1989 में मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भी दलबदल कानून की वजह से उनको संसद से अयोग्य ठहराया गया था, जिसके बाद उनकी सदस्यता चली गई थी.
सत्यपाल मलिक(1989)
बिहार और जम्मू कश्मीर के राज्यपाल रहें सतपाल मलिक को भी 1989 में दल-बदल कानून के तहत अपनी संसद सदस्यता गंवानी पड़ी थी.
लालदुहोमा को क्यों गंवानी पड़ी संसद सदस्यता
कल ही मिजोरम के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले लालदुहोमा दल-बदल कानून के तहत अपनी संसद सदस्यता गंवाने वाले पहले सदस्य है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951, ये वहीं अधिनियम है, जिसके तहत इंदिरा गांधी को अयोग्य करार दिया गया था. यह कानून संसद की सदस्यता के लिए योग्यता और अयोग्यता निर्धारित करता है. इसके अलावा किसी भी सदस्य को दिवालियापन, कानून अपराधी, मानसिक अस्वस्थता या सरकार के लाभ का पद धारण करने वाले को इस कानून के तहत दोषी ठहराया जा सकता है. आपको बता दें कि अगर कोई सदस्य जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसकी संसद सदस्यता के साथ वह 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य हो जाते है. यह संविधा के अनुच्छेद 102(1)(e) में इस बात का प्रावधान किया गया है.