Article 370 Live Updates: अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला. मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने इस पर फैसला सुनाया है. इसमें तीन जजों के एकमत वाला निर्णय सीजेआई ने पढ़ा.
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Article 370 News: अनुच्छेद 370 हटाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. CJI की अगुवाई में तीन जजों ने मोदी सरकार के फैसले पर मुहर लगाई है. इस मसले पर पांच जजों की बेंच का गठन किया था. इसमें सीजेआई ने तीन जजों के एकमत वाले फैसले को पढ़ा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, जम्मू-कश्मीर ने भारत में विलय के साथ अपनी संप्रभुता भारत को सौंप दी थी. कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के बाद वो अलग से संप्रभु राज्य नहीं रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके इस फैसले को सराहा है.
वहीं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद, महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला ने फैसले को निराशाजनक बताया. हालांकि कर्ण सिंह जैसे कई संविधानविदों ने इसे सही ठहराया है.महबूबा मुफ्ती ने कहा, ये देश के धैर्य की हार है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया है.
संविधान के सभी प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू
सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई ने कहा, देश के संविधान के सभी प्रावधान जम्मू कश्मीर पर लागू हो सकते है. आर्टिकल 370(1)d के तहत ऐसा किया जा सकता है. कोर्ट ने राष्ट्रपति के आदेश को वैध माना. आर्टिकल 370 को हटाने के राष्ट्रपति के अधिकार के इस्तेमाल को हम ग़लत नहीं मानते. 370 को हटाने से पहले भी जम्मू कश्मीर को लेकर राष्ट्रपति आदेश जारी करते रहे है. वैसे भी जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश राष्ट्रपति के लिए कभी बाध्यकारी नहीं थी. वो अपने विवेक से आर्टिकल 370 को हटाने या बरकरार रखने पर फैसला ले सकते है. राष्ट्रपति के पास अधिकार था कि वो आर्टिकल 370 को खत्म कर सकते हैं. जम्मू कश्मीर की संविधान सभा खत्म होने के बाद आर्टिकल 370 को निष्प्रभावी करने का राष्ट्रपति का संविधानिक अधिकार बनता है. भले ही तब संविधान सभा अस्तित्व में ना हो. कोर्ट ने माना कि आर्टिकल 370 अस्थायी प्रावधान था.
संविधान सभा की गैरमौजूदगी में राष्ट्रपति को निर्णय़ लेने का हक
सीजेआई ने कहा, आर्टिकल 370 अस्थाई प्रावधान जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की गैरमौजूदगी में राष्ट्रपति इसे हटाने का फ़ैसला ले सकते है. राष्ट्रपति शासन के वक्त संसद विधानसभा का रोल निभा सकती है. सीजेआई ने बहुमत के फैसले में चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वो 30 सितंबर 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए.
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि हम अनुच्छेद 370 हटाने के राष्ट्रपति के फैसले को संवैधानिक तौर पर वैध मानते हैं. कोर्ट ने कहा , राष्ट्रपति शाशन के दौरान केंद्र राज्य सरकार के अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. राष्ट्रपति शासन के दौरान केन्द्र की पर से लिये हर फैसले को क़ानूनी रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती. ये मुश्किल पैदा करेगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "यह जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में हमारी बहनों और भाइयों के लिए आशा, प्रगति और एकता की एक शानदार घोषणा है। न्यायालय ने, अपने गहन ज्ञान से, एकता के मूल सार को मजबूत किया है जिसे हम, भारतीय होने के नाते, बाकी सब से ऊपर प्रिय मानते हैं और संजोते हैं।" pic.twitter.com/3FsQKkRKgN
— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 11, 2023
सरकार जल्द राज्य का दर्जा बहाल करेगी
बहुमत के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, संविधान के सभी प्रावधान को जम्मू कश्मीर पर लागू करने का फैसला वैध है. जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन बिल पर विचार की कोर्ट जरूरत नहीं समझता.केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल पहले ही भरोसा दे चुके हैं कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा जल्द बहाल होगा.
धारा 370 हटाने का पूरा हक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, केंद्र सरकार को अनुच्छेद 370 हटाने का पूरा हक था. युद्ध की वजह से 370 एक अस्थायी व्यवस्था थी. इस तरह, संविधान पीठ ने माना कि आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला सही था.
कोर्ट राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना पर नहीं गया. कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ताओं की ओर से राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना को चुनौती नहीं दी गई. इसलिए हम इसकी वैधता पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है. जिन राज्यों में राष्ट्रपति शासन है, वहां पर भी केंद्र के अधिकार सीमित है. सीजेआई ने बहुमत के निर्णय़ में कहा, राष्ट्रपति के आदेश की न्यायिक समीक्षा का दायरा वैसे भी बहुत सीमित है। बेहद असाधारण परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है.
सीजेआई ने बहुमत के निर्णय़ में कहा, राष्ट्रपति के आदेश की न्यायिक समीक्षा का दायरा वैसे भी बहुत सीमित है। बेहद असाधारण परिस्थितियों में ऐसा हो सकता है. राष्ट्रपति को विवेक के अधिकार पर फैसला लेने का अधिकार है.
कोर्ट ने हालांकि माना कि संविधान की व्याख्या वाले 367 का इस्तेमाल करके 370 को खत्म करने का फैसला सही नहीं था. 5 अगस्त 2019 को जारी आदेश में आर्टिकल 367 में सरकार ने एक नया clause जोड़ दिया था, जिसके तहत जम्मू कश्मीर की संविधान सभा की व्याख्या जम्मु कश्मीर की विधानसभा के रूप मे की गई थी. कोर्ट ने कहा कि संविधान की व्याख्या करने वाले आर्टिकल (आर्टिकल 367) का ऐसा इस्तेमाल संविधान में संशोधन के लिए नहीं कहा जा सकता.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि क्या जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशो में तब्दील करना संवैधानिक था? संविधान पीठ ने इन मुद्दों पर भी विचार किया कि क्या आर्टिकल 370 स्थायी प्रावधान है या अस्थायी. दूसरा क्या संविधान सभा की सिफारिश के बिना इसे हटाने के फैसला लिया जा सकता है. क्या राज्यपाल का फैसला संवैधानिक था?
इससे पहले जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय सुनाने से पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती को सोमवार को नजरबंद कर दिया गया था. पीडीपी ने यह आरोप लगाया. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने कहा, आवास के दरवाजे सील कर दिए हैं और उन्हें अवैध तरीके से नजरबंद कर दिया है.
नेशनल कान्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला और उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के गुपकर स्थित आवास के पास एकत्र होने की अनुमति नहीं दी गई. गुपकर रोड के प्रवेश स्थानों पर पुलिस कर्मियों का एक दल तैनात किया गया है. अक्टूबर 2020 में अपना आधिकारिक आवास खाली करने के बाद से उमर अब्दुल्ला अपने पिता के साथ रहते हैं. श्रीनगर से सांसद फारूक अब्दुल्ला मौजूदा संसद सत्र के लिए दिल्ली में हैं और उनका बेटा कश्मीर घाटी में है