अखिलेश का PDA बना BJP का हथियार, मंडल अध्यक्षों में कुर्मी-कुशवाहा से मौर्य-सैनी, शाक्य छा गए, ब्राह्मण-ठाकुर सबसे कम
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अखिलेश का PDA बना BJP का हथियार, मंडल अध्यक्षों में कुर्मी-कुशवाहा से मौर्य-सैनी, शाक्य छा गए, ब्राह्मण-ठाकुर सबसे कम

UP BJP News: समाजवादी पार्टी के पीडीए ( पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक ) कार्ड की टक्कर में भाजपा ने आगामी चुनावी रणनीति के तहत बड़ा दांव खेला है. भाजपा ने पहले चरण के 750 मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में 45 फीसद पिछड़े वर्ग से चुने हैं. लेकिन इस सूची में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है तो वहीं कोई भी मिस्लिम नहीं है, जिस पर सवाल उठ सकते हैं.

अखिलेश का PDA बना BJP का हथियार, मंडल अध्यक्षों में कुर्मी-कुशवाहा से मौर्य-सैनी, शाक्य छा गए, ब्राह्मण-ठाकुर सबसे कम

UP BJP News: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने आगामी चुनावी रणनीति के तहत मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में बड़ा दांव खेला है. समाजवादी पार्टी (SP) के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) कार्ड का जवाब देते हुए भाजपा ने मंडल स्तर पर पिछड़ी जातियों को वरीयता दी है. पहले चरण में घोषित करीब 750 मंडल अध्यक्षों में 45% से अधिक पिछड़े वर्ग से हैं. जबकि महिलाओं और मुस्लिम समुदाय की भागीदारी न के बराबर है, जो पार्टी के लिए एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.   

मंडल अध्यक्षों का जातीय समीकरण 
घोषित मंडल अध्यक्षों में ब्राह्मण (117) और ठाकुर (91) जातियों से सबसे अधिक मंडल अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं. पिछड़े वर्गों में कुर्मी (29) शीर्ष पर हैं. इसके बाद मौर्य, सैनी, शाक्य और कुशवाहा जातियों को भी महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व दिया गया है.  

भाजपा ने सपा के परंपरागत वोट बैंक यादव समुदाय को भी साधने की कोशिश की है. 11 मंडल अध्यक्ष यादव जाति से बनाए गए हैं, जिसमें इटावा, आजमगढ़, जौनपुर और सुल्तानपुर जैसे इलाकों में भाजपा ने यादव नेताओं को नेतृत्व सौंपा है. हालांकि, मुस्लिम समुदाय से एक भी मंडल अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हुई है. 

शहरी क्षेत्रों में ब्राह्मण और वैश्य का दबदबा
शहरी इलाकों में पार्टी ने ब्राह्मण और वैश्य जातियों को तरजीह दी है. भाजपा नेतृत्व का मानना है कि इन जातियों का शहरी क्षेत्रों में वर्चस्व और प्रभाव अधिक है. यह रणनीति भाजपा के परंपरागत वोट बैंक को मजबूत करने का संकेत देती है.  

महिलाओं और दलितों की भागीदारी पर सवाल
महिलाओं के 33% आरक्षण की वकालत करने वाली भाजपा ने मंडल अध्यक्षों की सूची में महिलाओं को बहुत कम प्रतिनिधित्व दिया है. 33 संगठनात्मक जिलों में से 17 जिलों में एक भी महिला मंडल अध्यक्ष नहीं है. कुछ जिलों जैसे सुल्तानपुर, रामपुर और सीतापुर में 2-2 महिला मंडल अध्यक्ष बनाए गए हैं, जबकि कई जिलों में यह संख्या केवल 1 तक सीमित है.  

इसी तरह, दलित वर्ग को भी अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है. 750 मंडल अध्यक्षों में सिर्फ 39 दलित मंडल अध्यक्ष बनाए गए हैं. गाजीपुर, बलिया और कुशीनगर जैसे जिलों में दलित नेतृत्व को प्राथमिकता दी गई है, लेकिन 10 जिलों में एक भी दलित मंडल अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया है.  

पिछड़ों के लिए OBC फॉर्मूला
भाजपा ने पिछड़े वर्ग के सभी प्रमुख जातियों जैसे यादव, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य, सैनी, शाक्य, लोधी और निषाद को प्रतिनिधित्व देकर संतुलन बनाने की कोशिश की है. 2016 में पार्टी ने OBC फॉर्मूला अपनाकर दलित और पिछड़े चेहरों को संगठन में प्रमुखता दी थी, जिससे 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा फायदा मिला था. अब, सपा के पीडीए फॉर्मूले का मुकाबला करने के लिए भाजपा ने मंडल स्तर पर पिछड़ों को प्राथमिकता दी है.  

अल्पसंख्यकों के लिए अलग रणनीति
भाजपा ने मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है. पार्टी नेतृत्व का मानना है कि मुस्लिम समुदाय के लिए अल्पसंख्यक मोर्चा और आयोग के जरिए प्रतिनिधित्व पर्याप्त है. हालांकि, इस कदम से भाजपा के मुस्लिम वोट बैंक में कोई विशेष बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है.  

2027 विधानसभा चुनाव की तैयारी
भाजपा ने यह कदम आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उठाया है. पार्टी का मानना है कि सपा के पीडीए फॉर्मूले का जवाब मंडल स्तर पर पिछड़ों और दलितों को मजबूत नेतृत्व देकर दिया जा सकता है.  

जल्द नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति 
भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष इसी महीने नियुक्त किया जा सकता है. माना जा रहा है कि संगठन की कमान पिछड़े या दलित वर्ग के नेता को सौंपी जाएगी. लखनऊ, दिल्ली और नागपुर में नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर गहन मंथन चल रहा है.  

चुनौतियां और सवाल  
भाजपा ने जातीय और सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश तो की है, लेकिन महिलाओं और अल्पसंख्यकों की कम भागीदारी पर सवाल उठ रहे हैं. इसके अलावा, मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में कई जिलों में दलित और पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी भी असंतोषजनक है. 

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