Dussehra 2022: जलेबी खाए बिना दशहरे का पर्व क्यों माना जाता है अधूरा, जानें भगवान राम से इसका कनेक्शन
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Dussehra 2022: जलेबी खाए बिना दशहरे का पर्व क्यों माना जाता है अधूरा, जानें भगवान राम से इसका कनेक्शन

Dussehra 2022:  लाल-नारंगी, चाशनी में डूबी गर्म-गर्म जलेबियां भारत के हर कोने में बड़े चाव से खाई जाती हैं. दशहरे के दिन लोग जलेबी जरुर खाते हैं.

Dussehra 2022: जलेबी खाए बिना दशहरे का पर्व क्यों माना जाता है अधूरा, जानें भगवान राम से इसका कनेक्शन

Dussehra 2022: विजयादशमी यानि दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत. आज पूरे देश में दशहरे का पर्व मनाया जा रहा है.  इस दिन रावण दहन करके लोग बुराई का खात्मा करते हैं.  इस दिन कुछ परंपराएं भी निभाई जाती हैं, जिनमें से एक है रावण पुतला दहन के बाद जलेबी को खाना. ऐसी ही एक परंपरा है रावण दहन के बाद जलेबी खाने की है.

बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें ऐसा करने के पीछे का राज जानते होंगे. लाल-नारंगी, चाशनी में डूबी गर्म-गर्म जलेबियां भारत के हर कोने में बड़े चाव से खाई जाती हैं. छोटे हो या बड़े जलेबी हर आयुवर्ग की पसंदीदा मिठाई है. दशहरे के दिन लोग जलेबी जरुर खाते हैं. हम यहां आपको बताएंगे दशहरे के दिन जलेबी खाने के पीछे का राज.

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प्रसन्न होने पर श्रीराम खाते थे जलेबी
धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि जलेबी भगवान श्रीराम की पसंदीदा थी. वो जब प्रसन्न होते थे तो जलेबी जरूर खाते थे. इसलिए रावण दहन के बाद लोग जलेबी खाकर खुशी मनाते हैं. इसलिए जब श्रीराम ने रावण का वध किया तो लोगों ने श्रीराम की पसंदीदा मिठाई से मुंह मीठा करके अपने आराध्य के नाम का जयकारा लगाया. ऐसा माना जाता है कि तभी से दशहरे पर जलेबी खाने का चलन बन गया. 

पहले जलेबी को कहा जाता था ‘कर्णशष्कुलिका’
पुराने जमाने में जलेबी को ‘कर्णशष्कुलिका’ कहा जाता था. कहा जाता है कि श्रीराम के जन्म के समय महल में बनी कर्णशष्कुलिका पूरे राज्य में बांटी गई थी. बता दें कि 17वीं सदी की ऐतिहासिक दस्तावेज में एक मराठा ब्राह्मण रघुनाथ ने जलेबी बनाने की विधि का उल्लेख कुण्डलिनि नाम से किया है. वहीं भोजनकुतूहल नामक किताब में भी अयोध्या रामजन्म के समय प्रजा में जलेबियां बांटने का जिक्र किया गया. कई जगह इसे शश्कुली के नाम से भी उल्लेखित किया गया है.

अलग-अलग राज्य में अलग-अलग नाम
जलेबी की कई किस्म अलग-अलग राज्यों में मशहूर हैं. इंदौर के रात के बाजारों से बड़े जलेबा, बंगाल में 'चनार जिल्पी, मध्य प्रदेश की मावा जंबी या हैदराबाद का खोवा जलेबी, आंध्र प्रदेश की इमरती या झांगिरी, जिसका नाम मुगल सम्राट जहांगीर के नाम पर रखा गया है. उत्तर भारत में यह जलेबी नाम से जानी जाती है, जबकि दक्षिण भारत में यह ‘जिलेबी’ नाम से जानी जाती है. जबकि यही नाम बंगाल में बदलकर ‘जिल्पी’ हो जाता है. गुजरात में दशहरा और अन्य त्यौहारों पर जलेबी को फाफड़ा के साथ खाने का भी चलन है.

Disclaimer: यहां दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. Zeeupuk इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.

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