वाराणसी का काशी विश्वनाथ धाम तो दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन काशी के ही सीर गोवर्धन में संत रविदास का जन्म हुआ था और उनकी जन्मस्थली पर एक भव्य मंदिर बना है जिसे काशी का स्वर्ण मंदिर कहा जाता है. इस मंदिर में 200 किलो सोना लगा है.
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित सीर गोवर्धन गांव, संत रविदास जी का जन्मस्थान है. उनका जन्म 1398 में इस जगह माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था. यहां भव्य श्री गुरु रविदास जन्म स्थान मंदिर बना हुआ है, जिसे "काशी का दूसरा स्वर्ण मंदिर" भी कहा जाता है.
गुरु रविदास के जन्मस्थान मंदिर की शोभा बढ़ाने के लिए इसमें 200 किलोग्राम से अधिक सोना लगाया गया है. इसकी भव्यता और आध्यात्मिक आभा भक्तों को बहुत आगर्षित करती है.
हर साल माघ पूर्णिमा के दिन संत रविदास जी की जयंती पर लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं. इस दौरान भजन-कीर्तन, शोभायात्रा और विशेष पूजा-अर्चना होती है.
श्रद्धालु सुबह 6:00 बजे से रात 9:00 बजे तक मंदिर के दर्शन कर सकते हैं. यह वाराणसी जंक्शन रेलवे स्टेशन से लगभग 13 किमी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार से 3.5 किमी दूर है. वाराणसी सभी बड़े शहरों से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है.
संत रविदास जी ने अपने भजनों और उपदेशों से समाज में समानता, भक्ति और मानवता का संदेश दिया. उन्होंने जातिवाद का विरोध किया और सभी को आत्मज्ञान की राह दिखाने का प्रयास किया.
उनके कुछ रचित भजन सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ "गुरुग्रंथ साहिब" में भी शामिल हैं. इससे उनकी शिक्षाओं की गहराई और व्यापक प्रभाव का पता चलता है.
प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीरा बाई ने संत रविदास जी को अपना गुरु माना था. उनकी भक्ति और शिक्षाओं से प्रभावित होकर मीरा बाई ने कई भजनों की रचना की.
संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी से आध्यात्मिक दीक्षा ली थी. हालांकि, उनकी आध्यात्मिक यात्रा में संत कबीर साहेब का भी विशेष योगदान था. कबीरदास या कबीर ,कबीर साहेब रहस्यवादी कवि और संत थे.
संत रविदास का संदेश सरल था—"जात-पात से ऊपर उठकर प्रेम, भक्ति और परोपकार का जीवन जियो." उनकी शिक्षाएं आज भी समाज को जोड़ने और आत्मज्ञान की राह दिखाने का कार्य कर रही हैं.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. इसकी प्रामाणिकता की जिम्मेदारी हमारी नहीं है.एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.