DNA on Jamaat-e-Islami: पाकिस्तान से मोटी फंडिंग लेकर बरसों तक जम्मू कश्मीर में मदरसे- मस्जिदें बनवाकर कट्टरपंथ को पानी देने वाली जमात ए इस्लामी के लोग अब भेष बदलकर चुनाव मैदान में उतर गए हैं. सवाल उठ रहा है कि क्या उन्हें पहले की तरह लोगों का समर्थन मिलेगा.
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Zee News DNA on Jamaat-e-Islami: पाकिस्तान में इमरान के नाम पर मरने मारने की बातें की जा रही हैं तो वहीं कश्मीर में पाकिस्तान के इशारों पर चलने वाली जमात ए इस्लामी ने एक बार फिर साजिशों का पिटारा खोल दिया है. घाटी में चुनाव आते ही जमात ए इस्लामी से जुड़े लोग दोबारा सक्रिय हो गए हैं और लोगों को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं.
निर्दलीय मैदान में उतरे जमात के कट्टरपंथी
कुलगाम में जमात ए इस्लामी ने एक बड़ी रैली की. इस रैली में हजारों लोग पहुंचे थे. ये रैली .सयार अहमद रेशी के लिए की गई थी. रेशी पहले जमात ए इस्लामी कश्मीर का नेता था. जमात के कट्टरपंथी प्रोपेगेंडा सिस्टम का हिस्सा था. जमात पर बैन लग गया है तो वो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहा है. रैली भी कुलगाम के बुगाम में की गई थी, जहां सालों से मतदान का बहिष्कार किया जाता रहा है. इस रैली के बाद सवाल पूछे जाने लगे हैं कि क्या जमात ए इस्लामी दोबारा कश्मीर में अपनी जहरीली विचारधारा को फैलाने की कोशिश कर रही है.
कट्टरपंथी माहौल, उन्माद से भरी नारेबाजी. जमात ए इस्लामी कश्मीर की कुलगाम रैली में. उसी जमात की झलक नजर आ रही थी. जिसने सालों तक कश्मीर के नौजवानों को गुमराह किया. कश्मीर की सूफी संस्कृति को खत्म करने की कोशिश की और कश्मीर में पाकिस्तानी एजेंडा को हवा दी.
जमात ए इस्लामी कश्मीर के चुनाव में दोबारा दिलचस्पी क्यों दिखा रहा है. इसका जवाब भी आपको देंगे. लेकिन पहले जानिए कि कैसे जमात ए इस्लामी की वो हिस्ट्रीशीट जिसकी वजह से शांतिप्रिय कश्मीरी भी जमात को घाटी का दुश्मन कहता है.
पाकिस्तान से फंडिंग लेकर बनाए सैकड़ों मदरसे- मस्जिद
90 के दशक में जमात ए इस्लामी ने कश्मीर के आतंकवादी गुट JKLF से हाथ मिला लिया था. जब काउंटर टेरर ऑपरेशंस की वजह से JKLF कमजोर होने लगा तो पाकिस्तान से सारी टेरर फंडिंग जमात ए इस्लामी को मिलने लगी. जमात ए इस्लामी ने इस फंडिंग के जरिए कश्मीर में मस्जिदों और मदरसों का नेटवर्क खड़ा किया. जिनका इस्तेमाल आतंकियों को पनाह देने तक के लिए किया गया.
साल 2000 आते आते जमात के सैकड़ों अलगाववादी और आतंकवादी मारे गए. जिसके बाद जमात ए इस्लामी ने राजनीति में उतरने का फैसला किया लेकिन ये प्लान भी पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया.
मोदी सरकार ने लगाया बैन, कई हुए गिरफ्तार
साल 2019 में जमात ए इस्लामी पर सरकार ने बैन लगा दिया था. जमात से जुड़े 300 नेता और कार्यकर्ता या तो गिरफ्तार कर लिए गए थे या फिर नजरबंद कर दिए गए थे.
भले ही अब जमात ए इस्लामी निर्दलीय उम्मीदवारों के जरिए चुनाव में उतरने की कोशिश कर रहा हो...लेकिन कश्मीर के वो लोग कभी जमात को माफ नहीं करेंगे. जिनके परिवारों के लड़के जमात के प्रोपेगेंडा में फंसकर आतंकी बने और मारे गए.
ये 4 उम्मीदवार लड़ रहे इलेक्शन
जमात ए इस्लामी ने अब तक चुनाव में चार प्रत्याशियों को समर्थन देने का ऐलान किया है. इन चारों का जमात ए इस्लामी के कट्टरपंथ से पुराना रिश्ता रहा है. पुलवामा से तलत मजीद खड़े हैं जो बैन लगने से पहले जमात के सक्रिय सदस्य थे. कुलगाम से सयार अहमद रेशी का नामांकन स्वीकार हुआ है. दिवसर से नजीर अहमद बट चुनाव लड़ेंगे. बट भी जमात ए इस्लामी के सदस्य रहे हैं. जैनपोरा एजाज अहमद निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ रहे हैं. एजाज को जमात ए इस्लामी के पूर्व सदस्यों का समर्थन है.
आतंकवाद और अलगाववाद का समर्थन करने वाली जमात ने सालों पहले इलेक्शन में ना उतरने का ऐलान किया था. कश्मीर में जमात ए इस्लामी पर सख्त कार्रवाई के बाद जमात ए इस्लामी का नेटवर्क और फंडिंग दोनों कमजोर हो गए थे.