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अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना का दिल्ली में था दबदबा, पटौदी परिवार से एक इंच भी कम नहीं था रुतबा

Rukhsana Sultana: सैफ अली खान के पटौदी नवाब के बारे में तो आपने कई बार पढ़ा और सुना होगा. लेकिन क्या आपको पता है सैफ की एक्स वाइफ अमृता सिंह (Amrita Singh) का परिवार भी शान-ओ-शौकत में पटौदी खानदान से एक इंच भी कम नहीं था. हरियाणा का पटौदी आवास लोग एक बार देखने की चाहत रखते हैं तो वहीं दिल्ली में अमृता सिंह के परिवार का एक जमाने में काफी दबदबा था. यहां तक कि अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना का रौब ऐसा था कि लोग उनसे थर-थर कांपते थे. जानिए अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना के बारे में.

पीक पर छोड़ा करियर, निकाह और फिर तलाक

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पीक पर छोड़ा करियर, निकाह और फिर तलाक

अमृता सिंह ने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा उस वक्त किया जब वो टॉप की एक्ट्रेस थीं. सिख और मुस्लिम परिवार में जन्मीं अमृता ने 13 साल छोटे सैफ से निकाह किया. लेकिन कई साल बाद तलाक लेकर अब अकेले जिंदगी गुजार रही हैं. अमृता के परिवार की जड़े सीधे तौर पर भले ही सिनेमाजगत से नहीं जुड़ीं लेकिन उनके परिवार के कुछ रिश्तेदार जरूर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए थे.

रुखसाना की रिश्तेदारी बेगम पारा से

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रुखसाना की रिश्तेदारी बेगम पारा से

दरअसल, अमृता सिंह की मां रुखसाना की रिश्तेदारी बेगम पारा से थी, जो बॉलीवुड एक्ट्रेस थीं और दिलीप कुमार के भाई नासिर खान की पत्नी थी.इतना ही नहीं बेगम पारा के बेटे अयूब खान अमृता के रिश्तेदार लगे. ऐसे में कहीं ना कहीं परिवार का ताल्लुक फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से जुड़ने के कारण अमृता ने सिनेमाजगत में आने की ठानी. 

 

अमृता की मां मुस्लिम, पिता सिख

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अमृता की मां मुस्लिम, पिता सिख

अमृता सिंह रुखसाना सुल्ताना और शिविंदर की इकलौती बेटी थीं. रुखसाना मुसलमान थीं और शिविंदर सिख जाट परिवार से ताल्लुक रखते थे और आर्मी अफसर थे. दिल्ली में रुखसाना ब्यूटी पार्लर चलाती थीं और देखते ही देखते लोगों के बीच उनके रुतबे का आलम ये था कि नेता हो या फिर बड़े-बड़े व्यापारी लाइसेंस के लिए उनकी जीहुजूरी करते थे. 

युवा कांग्रेस की बड़ी नेता थीं

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युवा कांग्रेस की बड़ी नेता थीं

दरअसल, अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना अपने समय में युवा कांग्रेस की बड़ी नेता थीं. यहां तक कि वो संजय गांधी की राजनीतिक सहयोगी भी थीं. कहा जाता है कि आपातकाल के दौरान रुखसाना को संजय गांधी ने नसबंदी कार्यक्रम का जिम्मा सौंपा था. 

कांपते थे लोग

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कांपते थे लोग

देखते ही देखते रुकसाना का रुतबा इतना बढ़ गया कि लोग डर के मारे कांपने लगे थे.लेकिन जब इमरजेंसी हटी तो रुकसाना इन खबरों से अपने आप ही दूर हो गई थीं.

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