Earth Without Humans: पृथ्वी, ज्ञात ब्रह्मांड में इकलौता ग्रह है जहां पर जीवन है. यहां जीवन न सिर्फ फला-फूला, बल्कि आज इतना विकसित हो चुका है कि दूसरे ग्रहों पर जीवन की तलाश में निकल चुका है. मनुष्य यानी हम और आप, इस धरती पर जीवन के सर्वोत्तम रूप हैं. जरा सोचिए, इंसान ने पिछले कुछ लाख सालों में धरती को कितना बदल दिया है. अगर मनुष्य का अस्तित्व ही मिट जाए तो पृथ्वी का क्या होगा?
ताजा अनुमानों के मुताबिक, दुनिया में 8.2 अरब लोग रहते हैं. अगर किसी वजह से अचानक सब के सब गायब हो जाएं तो क्या होगा? सबसे पहला असर इंफ्रास्ट्रक्चर पर दिखेगा. पॉपुलर साइंस में छपी रिपोर्ट के अनुसार, पाइपों से पानी और तारों से बिजली बहना रुक जाएगी. बड़े शहरों के नीचे स्थित मेट्रो और यातायात सुरंगों में बाढ़ आ जाएगी. गैस और कोयला बिजली प्लांटों को लगातार ईंधन की जरूरत होती है. पानी के पंपों को भी इंसानों और बिजली, दोनों की जरूरत पड़ती है.
नमी वाले वातावरण में, अंदर की दीवारों में फफूंद लग जाएगी. गिरे हुए पेड़ तूफान में छतों को कुचल देंगे. आग बुझाई नहीं जा सकेगी. भूकंप से इमारतें घिस जाएंगी और आखिरकार गिर जाएंगी. पौधे दीवारों को ढक देंगे और ईंटों और साइडिंग को अलग कर देंगे. लकड़ी के ढांचे, जिसमें लकड़ी के बीम से बने अधिकांश आवासीय भवन शामिल हैं, सड़ जाएंगे. मध्य शताब्दी की स्टील और कांच की गगनचुंबी इमारतें लंबे समय तक टिकी रहेंगी, लेकिन हमेशा के लिए नहीं.
इंसान ने जो भी बुनियादी ढांचा खड़ा किया है, उसका सबसे स्थायी संकेत सड़कें होंगी. उनके लंबे समय तक बने रहने की संभावना होगी. अगर इमारतें, सड़कें और खंडहर तलछट में दब गए हों - शायद बाढ़ की घटनाओं में या भूमि के धंसने के कारण - तो उनके टिके रहने की संभावना अधिक होगी. ऐसा हजारों साल के भी भीतर होगा.
अगर समय को थोड़ा और आगे ले जाएं, तो दस लाख सालों से भी कम समय में धरती से मनुष्यों के सतही साक्ष्य गायब हो जाएंगे. कांस्य की मूर्तियां, चीनी मिट्टी के बर्तन और मग, और सोने की सिल्लियां जैसी कुछ कलाकृतियां मौजूद रहेंगी, जो समय के साथ दब जाएंगे. कुछ निशानियां सतह के नीचे बनी रहेंगी. टिकाऊ धातुओं और प्लास्टिक से बने तथाकथित टेक्नोफ़ॉसिल्स होंगे, साथ ही बड़े पैमाने पर विलुप्त होने, जलवायु परिवर्तन और समुद्र के स्तर में इजाफे के जीवाश्म सबूत भी होंगे.
अगर धरती से अचानक इंसान का नामोनिशान मिट जाए, तब भी न्यूक्लियर पावर प्लांट तो चलते रहेंगे न! दुनिया में लगभग 440 सक्रिय परमाणु ऊर्जा प्लांट है, बिना मेंटेनेंस के ये आखिरकार पिघल जाएंगे. उनके कूलिंग सिस्टम का पानी सूख जाएगा और बढ़ती गर्मी से परमाणु धमाके होंगे. लेकिन क्या इन धमाकों से जीवन खत्म हो जाएगा? शायद नहीं.
अब तक का सबसे भयानक विस्फोट चेरनोबिल में हुआ था. इसमें अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर गिराए गए बम से लगभग 400 गुना अधिक रेडियोएक्टिव पदार्थ निकला था. उस पदार्थ ने लगभग 58,000 वर्ग मील जमीन को दूषित कर दिया था. लेकिन दुनिया 197 मिलियन वर्ग मील में फैली है. यहां नुकसान अपेक्षाकृत कम और स्थानीय होगा.
किसी भी न्यूक्लियर पावर प्लांट से बहुत दूर गुफाएं, गहरे महासागर और भूमि और पानी के बड़े विस्तार हैं. यह संभव है कि चेरनोबिल जैसे 440 धमाकों के बावजूद बहुत सारे जीवन रूप बच जाएंगे.
कई सारे जीव हमारे साथ ही नष्ट हो जाएंगे, जिनमें सिर की जूं और खटमल जैसे कीट शामिल हैं. घरेलू जानवर जैसे गाय और कुत्ते अपने दम पर लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे. बाकी सब चीजों के लिए, जीवन जारी रहेगा.
कुछ दशकों के बाद बिना अधिक मानवीय उत्सर्जन के तापमान बढ़ना बंद हो जाएगा. लोकल लेवल पर, कारखानों और बुनियादी ढांचे से भारी धातु और रासायनिक प्रदूषण, उन जीवों पर दबाव डालेगा जो आस-पास जीवित रहने की कोशिश कर रहे होंगे.
इतना तो तय है कि हम एक बंजर पृथ्वी को पीछे छोड़कर नहीं जाएंगे. विलुप्ति के सबसे खराब समय, पर्मियन-ट्राइसिक में, सभी समुद्री प्रजातियों में से 80-90% और सभी स्थलीय कशेरुकियों में से 70% मर गए. फिर भी, जीवन वापस आ गया.
अंतरिक्ष में पृथ्वी का सफर जारी रहेगा, इस ग्रह को हमारी 'जरूरत' नहीं है. जीवन कम से कम तब तक बना रहेगा जब तक हमारा सूर्य इतना गर्म न हो जाए कि वह इसे सहन न कर सके. शायद कुछ जीव उबलते हुए महासागरों में जीवित रहने में कामयाब हो जाएं, लेकिन जब हमारा तारा अपनी आखिरी सांसें ले रहा होगा और अरबों साल बाद एक लाल दानव में बदल जाएगा, तब उसके सभी नजदीकी ग्रह राख में बदल जाएंगे.
इस भीषण घटना में भी जो चट्टानें अपनी परतें बनाए रख पाएंगी, उनमें ग्रह पर हमारा प्रभाव दिखाई देता रहेगा. और सुदूर अंतरिक्ष में, मानव सभ्यता के सबूत शायद कहीं अधिक लंबे समय तक रहेंगे. Voyager स्पेसक्राफ्ट हमारे सौरमंडल को पार कर चुका है और आगे बढ़ रहा है. उसके साथ हमने धरती पर मानव सभ्यता के सबूत भी भेजे हैं.
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