Couples Hotel Stay Right: पिछले दिनों एक ऐसा निर्णय सामने आया जिसके चलते भारत में अविवाहित जोड़ों के होटल में ठहरने को लेकर चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है. हुआ यह कि ओयो OYO ने एक जगह अपनी चेक-इन पॉलिसी में बदलाव किया है जिससे यह बहस फिर शुरू हो गई है कि क्या अविवाहित वयस्कों को होटल में ठहरने का अधिकार है.
भारतीय कानून के अनुसार 18 साल की उम्र के बाद व्यक्ति को वयस्क माना जाता है. वयस्कों को यात्रा करने कहीं भी रहने और होटल में ठहरने का कानूनी अधिकार है. यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा संरक्षित है, जिसमें व्यक्ति की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है. अगर कोई अविवाहित जोड़ा होटल में ठहरा है तो केवल इस आधार पर उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.
अगर पुलिस किसी होटल में छापा मारती है और वहां वयस्क जोड़ों को पाती है, तो बिना किसी आपराधिक गतिविधि के आरोप के उन्हें गिरफ्तार करने का कोई कानूनी आधार नहीं है. एक ऑनलाइन मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक्सपर्ट का कहना है कि अगर लड़की और लड़का आपसी सहमति से साथ हैं तो पुलिस उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकती. हालांकि अगर लड़की गंभीर आरोप लगाती है या अपना बयान बदलती है तो स्थिति बदल सकती है और मामला अदालत में जा सकता है.
इससे जुड़े मामलों पर गौर करें तो 2019 में मद्रास हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अविवाहित जोड़ों का होटल में ठहरना न तो गैरकानूनी है और न ही अपराध. अदालत ने कहा था कि जब वयस्कों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप अपराध नहीं है तो होटल में ठहरना भी आपराधिक नहीं माना जा सकता. इसी तरह 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट और 2013 में मद्रास हाई कोर्ट ने भी यही निर्णय दिया था.
ओयो और अन्य होटलों द्वारा कई शहरों में अविवाहित जोड़ों को ठहरने की अनुमति न देना प्रबंधन की नीति और स्थानीय सामाजिक दबाव के कारण होता है. यह किसी कानूनी नियम के तहत नहीं आता. एक्सपर्ट्स ने यह भी माना कि वयस्क जोड़ों को होटल में ठहरने का कानूनी अधिकार है.
फिलहाल इस पूरे मामले में वयस्क जोड़ों को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी होनी चाहिए. अगर पुलिस हस्तक्षेप करती है तो शांति बनाए रखना और कानूनी सलाह लेना महत्वपूर्ण है. वयस्कता का प्रमाण देने के लिए पहचान पत्र दिखाने और होटल में दोनों व्यक्तियों के दस्तावेज जमा करना भी आवश्यक है.
हालांकि कानून वयस्क जोड़ों के अधिकारों की रक्षा करता है लेकिन फिर भी ऐसा एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारतीय समाज में अभी भी इस मुद्दे पर रूढ़िवादी सोच हावी है. यह समय है कि समाज इन पूर्वाग्रहों को छोड़कर वयस्कों की निजता और स्वतंत्रता का सम्मान करे. ऐसा करना न केवल कानून का पालन है बल्कि एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज की निशानी भी है.
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