Ahoi Ashtami Katha: क्यों रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, क्या है इसकी कथा?
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Ahoi Ashtami Katha: क्यों रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, क्या है इसकी कथा?

Ahoi Ashtami katha: आज 17 अक्टूबर को दिन सोमवार और कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है. इस अष्टमी को अहोई अष्टमी कहा जाता है. आज के दिन अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है, जिसका खास महत्व होता है. यहां हम आपको बताएंगे अहोई अष्टमी व्रत की कथा के बारे में. 

Ahoi Ashtami Katha: क्यों रखा जाता है अहोई अष्टमी व्रत, क्या है इसकी कथा?

Ahoi Ashtami Pooja vidhdi: कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) कहा जाता है. आज 17 अक्टूबर सोमवार को अहोई अष्टमी है. अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami 2022) अपने बेहद खास है. इसके पीछे की कहानी काफी पुरानी है. इस दिन महिलाएं अपनी संतान के सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत (Ahoi Ashtami Vrat) रखती हैं. चांद को अर्घ्य देने से पहले शाम के समय अहोई अष्टमी की व्रत कथा (Ahoi Ashtami vrat katha) सुनने का विशेष महत्व होता है. ऐसे में यहां हम आपको बताएंगे अहोई अष्टमी व्रत की कथा. 

यह अहोई अष्टमी व्रत कथा
अहोई व्रत कथा एक साहूकार से शुरू होती है. एक बार एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थीं. कार्तिक माह की अष्टमी को सातों बहुएं अपनी ननद के साथ जंगल में मिट्टी खोद रहीं थीं. इस दौरान ननद के हाथ से स्याहू के बच्चे की मौत हो गई, जिससे स्याहू माता उन सभी बहुओं से नाराज हो गईं और बोलीं कि मैं तेरी कोख बांध दुंगी. यह सुनकर ननद अपनी सातों भाभियों से बोली कि आप में से कोई अपनी कोख बंधवा लो, लेकिन सभी भाभियों ने इससे इंकार साफ कर दिया. 

कोख बंधने के बाद क्या हुआ?
इस दौरान उसकी सबसे छोटी भाभी सोचने लगी कि अगर किसी ने अपनी कोख नहीं बंधवाई तो सासू मां नाराज हो जाएंगी इसी डर से छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली. कोख बंधवाने के बाद भाभी को जो भी बच्चा होता वो 7 दिन के भीतर मर जाता. जब लगातार ऐसा होता रहा तो उसने एक पंडित से इसका कारण और समाधान पूछा तो फिर पंडित ने उसे गाय की सेवा करने की सलाह दी.

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रोजाना करने लगी गऊ माता की सेवा
छोटी बहू प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर गाय के स्थान पर साफ-सफाई कर उसकी सेवा करने लगी. तभी एक दिन सुरही गाय ने उससे खुश होकर पूछा कि बोल क्या मांगती है. तभी छोटी बहू ने कहा कि आप साहू माता की भायली हैं. उन्होंने मेरी कोख बांध दी है. आप उनसे मेरी कोख खुलवा दो. ऐसा सुनते ही गौ माता उसे समुद्र पार अपनी भायली स्याहू माता के पास ले जाने लगीं. रास्ते में काफी धूप होने की वजह से दोनों एक ही पेड़ के नीचे बैठ गईं. तभी थोड़ी देर बाद वहां एक सांप आया और वहां मौजूद गरुड़ पंखनी के बच्चे को डसने लगा. 

गरुड़ पंखनी ने ऐसे की मदद
यह सब देख साहूकार की बहू ने सांप को मारकर गरुड़ पंखनी के बच्चे को बचा लिया. थोड़ी देर बाद वहां गरुड़ पंखनी आई और उसने वहां खून के निशान देखकर साहूकार की बहू को चोंच मार दी. तभी साहूकार की बहू बोली कि इस बच्चे को मैंने घायल नहीं किया बल्कि मैंने सांप से इसकी रक्षा की है. यह सुनकर 
गरुड़ पंखनी उससे खुश होकर बोली कि मांग क्या मांगती है. बहू ने कहा कि आप हमें गरुड़ पंखनी के पास पहुंचा दो और फिर गरुड़ पंखनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर उन्हें समुद्र पार स्याहू माता के पास पहुंचा दिया. 

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स्याहू माता सुरही को देखकर बोलीं आ बहन तू बहुत दिनों बाद आई है. मेरे सिर में जूं पड़ गईं है वो साफ कर दे और फिर सुरही के कहने पर साहूकार की बहू ने स्याहू माता के सिर से सभी जूं साफ कर दिए. इसके बाद साहू माता उससे खुश होकर बोलीं कि तेरे सात बेटे और सात बहुएं होंगी. ऐसा सुनकर साहूकार की बहू बोली कि मेरी कोख तो आपके पास बंद है. इसके बाद साहू माता बोलीं कि जा तुझे तेरे घर सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी. तू उजमन करियों सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो और जब साहूकार की बहू घर आई तो उसने देखा कि उसके घर में सात बेटे और सात बहुएं हैं. यह देखकर साहूकार की बहू ने सात अहोई बनाई सात उजमन किए, और सात कढ़ाई कीं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है. जी पंजाब हिमाचल इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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