Adhbhut Himachal: चंबा में मनाई जाती है खूनी लोहड़ी, बुरी आत्माओं को भगाने के लिए सदियों से चली आ रही यह अनोखी परंपरा
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Adhbhut Himachal: चंबा में मनाई जाती है खूनी लोहड़ी, बुरी आत्माओं को भगाने के लिए सदियों से चली आ रही यह अनोखी परंपरा

Chamba Ki Adhbhut Kahani: चंबा में मकर संक्रांति से पहले चौदह मढ़ियों में मुशायरे जलाकर बुरी आत्माओं को भगाया गया जो यहां की काफी पुरानी परंपरा है. कहा जाता है कि ऐसा करने से वास्तव में यहां बुरी आत्माएं भाग जाती हैं.  

 

Adhbhut Himachal: चंबा में मनाई जाती है खूनी लोहड़ी, बुरी आत्माओं को भगाने के लिए सदियों से चली आ रही यह अनोखी परंपरा

सोमी प्रकाश भुव्वेटा/चंबा: मकर संक्रांति से एक दिन पहले चंबा में लोहड़ी मनाए जाने की अनूठी परंपरा का निर्वहन इस बार भी बड़े शानदार तरीके से किया गया. हर साल की तरह इस साल भी बुरी आत्माओं को भगाकर चंबा की सुख-शांति और समृद्धि की कामना की गई. हिमाचल में रियासत काल से ही इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है, जिसका साल भर लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं. 

कहते हैं जब दसवीं शताब्दी में भरमौर से आए राजा साहिल वर्मन ने चंबा आकर अपनी रियासत को बसाया था तब यहां भूत प्रेतों का वास होने के कारण रियासत के लोग बहुत परेशान थे. इनसे मुक्ती पाने के लिए चंबा के राजा ने पूरे शहर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अलग-अलग मढियों की स्थापना की जो शहर के हर मुहल्ले में थीं.

एक महीने तक लगातार इन मढियों में अलाव जला कर इसकी देख-रेख मोहल्ले में रहने वाले सभी बुजुर्ग और युवा लोग करते थे और फिर आखिरी दिन शिवजी का प्रतीक माने जाने वाली राज मढ़ी से निकाला जानें वाला त्रिशूल नुमा मुशाहरा (मशाल) जिसे स्थानीय भाषा में राज मुशहरा कहते हैं वह लोगों द्वारा निकाला जाता था. मान्यता है कि ऐसा करने से ही चंबा रियासत को भूत-प्रेतों से वास्तव में मुक्ति मिली थी. बुरी आत्माओं को भगने के लिए कई वर्षों से चली आ रही यह अदभुत परंपरा आज भी चंबा नगर के लोग मकर संक्रांति से पहले चौदह मढ़ियों में मुशायरे चलाकर धूम-धाम से मनाते चले आ रहे हैं. 

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सबसे पहले मुहल्ला सुराड़ा के भगवान शिव के मंदिर में लकड़ी से एक त्रिशूल नुमा मशाल यानी मुशाहरा बनाया जाता है और फिर इसकी विधिवत तरीके से पूजा कर बैंड बाजों के साथ मढ़ियों में डुबाने की तैयारी की जाती है. इसके अलावा पास के चौंतड़ा मुहल्ला में भी इसी तरह का एक और मुशाहरा तैयार किया जाता है जो बजीर के नाम से जाना जाता है. इसके बाद रात ठीक ग्यारह बजे राज मुशाहरा के कई लोग अपने कंधे पर उठा आगे के लिए चल पड़ते हैं.

दूसरी तरफ से बजीर मढ़ी से भी मुशाहरा चल पड़ता है और एक जगह पर इन दोनों का मिलन करवाया जाता है, जहां लोग खूब शोरशराबा करते हैं. बाद में बजीर वापिस अपनी मढ़ी में चला जाता है और राज मशायरा पूरे शहर की मंडियों में डुबाया जाया है, जिसे चंबा की सुख-समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है. कुल मिलाकर चंबा नगर में इस तरह की अनोखी लोहड़ी मनाना अपने आप में एक अलग ही इतिहास को दर्शाती है. 

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स्थानीय लोगों ने बताया कि जब यह राज मुशायरा दूसरों की मढ़ियों में डुबाया जाता है तो वहां जदोजहद में काफी लोग चोटिल भी हो जाते हैं. लोगों के चोटिल होने पर लोगों का जो खून निकलता है, उस खून को राक्षसों के लिए एक तरह से चढ़ावा माना जाता है. इससे पूरा साल शहर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है. 

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