Ajmer Dargah Survey: अजमेर की एक स्थानीय अदालत के द्वारा ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह के सर्वे के आदेश के कुछ दिनों बाद पूर्व नौकरशाहों और राजनयिकों के एक ग्रुप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है. ग्रुप ने दावा किया है सिर्फ पीएम मोदी ही उन सभी "अवैध और हानिकारक" गतिविधियों को रोक सकते हैं.
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Ajmer Dargah: अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (रह0) की दरगाह को लेकर दावा किया जा रहा है कि वहां पर शिव मंदिर है. इस दावे को लेकर हिंदू पक्ष कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने इस मामले में संबंधित पक्षों को नोटिस भी भेजा है. अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 20 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है. स्थानीय अदालत के इस आदेश के कुछ दिनों बाद पूर्व नौकरशाहों ( Former Bureaucrats ) और राजनयिकों ( Diplomats ) के एक ग्रुप ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.
ग्रुप ने लेटर लिखकर उन सभी "अवैध और हानिकारक" गतिविधियों को रोकने लगाने के लिए पीएम मोदी से हस्तक्षेप की मांग की है, जो भारत की सभ्यतागत विरासत ( Civilizational Heritage ) पर "वैचारिक हमला" हैं और एक समावेशी देश के विचार को विकृत करती हैं.
ग्रुप ने दावा किया कि सिर्फ पीएम "सभी अवैध, हानिकारक गतिविधियों" को रोक सकते हैं. उसने मोदी को याद दिलाया कि उन्होंने खुद 12वीं शताब्दी के संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के सालाना उर्स के मौके पर अमन और सद्भाव के उनके संदेश को सम्मान देते हुए "चादर" भेजी थी.
नौकरशाहों के समूह में दिल्ली के पूर्व डिप्टी गवर्नर नजीब जंग, ब्रिटेन में भारत के पूर्व हाई कमिश्नर शिव मुखर्जी, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, सेना के पूर्व डिप्टी-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व डिप्टी गवर्नर रवि वीरा गुप्ता शामिल हैं.
अदालतें गैर-मुनासिब और जल्दबाजी में दे रही हैं प्रतिक्रियाएं: ग्रुप
उन्होंने 29 नवंबर को पीएम को भेजे लेटर में कहा कि कुछ नामालूम समूह हिंदू हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा कर रहे हैं और यह साबित करने के लिए ऐतिहासिक मस्जिदों और दरगाहों के पुरातात्विक सर्वेक्षण (ASI) की मांग कर रहे हैं. उनका दावा है कि इन जगहों पर पहले मंदिर हुआ करते थे. ग्रुप ने कहा, "पूजा स्थल अधिनियम ( Places of Worship Act ) के स्पष्ट प्रावधानों के बावजूद अदालतें भी ऐसी मांगों पर गैर-मुनासिब और जल्दबाजी के साथ प्रतिक्रिया देती नजर आती हैं."
गरीब नवाज के दरगाह के लिए यह विचार हास्यास्पद
समूह के दो नौकरशाहों ने इस लेटर की पुष्टि की. समूह ने कहा, "उदाहरण के लिए, एक कोर्ट का सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की 12वीं सदी की दरगाह के सर्वे का आदेश देना अकल्पनीय लगता है, जो एशिया में न सिर्फ मुसलमानों के लिए, बल्कि उन सभी भारतीयों के लिए सबसे पाक सूफी जगहों में से एक है, जिन्हें हमारी समन्वयवादी और बहुलवादी परंपराओं पर गर्व है."
नौकरशाहों के ग्रुप ने लेटर में आगे लिखा, "यह विचार ही हास्यास्पद है कि एक भिखारी संत, एक फकीर, जो भारतीय के अद्वितीय सूफी/भक्ति आंदोलन का एक अभिन्न अंग था और हमदर्दी, रवादारी और सद्भाव का प्रतीक था, अपने हक का दावा करने के लिए किसी भी मंदिर को नष्ट कर सकता था."
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, हिंदू सेना के नेशनल प्रेसिडेंट विष्णु गुप्ता ने अदालत में दावा यह करते हुए पिटीशन दायर की दरगाह मूल रूप से एक शिव मंदिर थी. इस पिटीशन पर अजमेर की एक सिविल अदालत ने 27 नवंबर को अजमेर दरगाह कमेटी, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नोटिस जारी किया था.