गाली नहीं है किसी को भंगी, नीच और भिखारी कह देना; HC ने मुल्जिम को किया बरी
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गाली नहीं है किसी को भंगी, नीच और भिखारी कह देना; HC ने मुल्जिम को किया बरी

SC-ST Act: राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में सरकारी अफसर को जातिसूचक शब्दों का प्रयोग कर संबोधित करने के मामले में आरोपी को बरी करते हुए फैसला दिया है कि  एससी एसटी एक्ट किसी को भंगी, नीच, भिखारी या मंगनी जैसे शब्दों का प्रयोग करना जाति सूचक गालियाँ नहीं है. 

गाली नहीं है किसी को भंगी, नीच और भिखारी कह देना; HC ने मुल्जिम को किया बरी

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एससी-एसटी एक्ट (SC-ST Act) के तहत दर्ज मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि एससी-एसटी एक्ट में दर्ज मुकदमें से 4  जाति सूचक शब्दों को हटाने का आदेश देने के साथ ही कहा कि किसी को भंगी, नीच, भिखारी, मंगनी जैसे शब्दों से संबोधित करना जातिसूचक नहीं हैं.

हाईकोर्ट के जस्टिस बीरेन्द्र कुमार की सिंगल बेंच में अचलसिंह व अन्य की तरफ से पेश अपील पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने चार लोगो के खिलाफ एससी एसटी एक्ट की धाराओं को हटाने का हुक्म दिया, लेकिन अतिक्रमण के एक दूसरे केस में राहत देने से इंकार कर दिया.

क्या है पूरा मामला ? 
यह मामला जैसलमेर के कोतवाली थाने का है, जहाँ 13 साल पहले अतिक्रमण हटाने गए सरकारी अधिकारियों के साथ मौके पर कुछ लोगो ने अभ्रद व्यवहार किया और उनके साथ मारपीट भी. इस मामले में 31 जनवरी 2011 को एससी-एसटी एक्ट सहित अन्य धाराओं के तहत आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज​ किया गया था. सरकारी अफसर हरीश चंद्र अपने दूसरे सहयोगी अफसरों के साथ अचल सिंह नामी एक शख्स द्वारा किए गए अतिक्रमण की मौके पर जांच करने गए थे.
जब वे विवादित जगह की नाप-जोख कर रहे थे, तभी अचल सिंह ने सरकारी अफसर हरीश चंद्र को अपशब्द जिनमें ( भंगी, नीच, भिखारी और मंगनी) जैसे शब्दों से संबोधित किया गया. इस दौरान उन लोगों के बीच हाथा-पाई भी हुई थी.  इस घटना के बाद सरकारी अफसर की तरफ से अचल सिंह के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का मामला कोतवाली थाने में दर्ज करवाया गया. इस मामले में चार लोगों को मुल्जिम बनाया गया.  

नहीं मिले गाली देने के सबूत 
बाद में इन चारों मुलजिमों ने अपने ऊपर लगे एससी-एसटी एक्ट की धाराओं को कोर्ट में चुनौती दी थी. इस मामले में अपीलकर्ताओं का कहना था कि उस अफसर की जाति के बारे में उन्हें पहले से कोई जानकारी ही नहीं थी. यह दलील दी गयी कि इस बात का कोई सबूत नहीं है, कि घटना सार्वजनिक रूप से हुई. इस मामले में गवाह सिर्फ अभियोजन पक्ष ही था.  मामला दर्ज होने के बाद कोतवाली पुलिस की तरफ से जांच शुरू की गई. इस दौरान जांच में इससे संबंधित कोई सबूत ही नहीं मिले.

मामले की सुनवाई में अपीलकर्ता के वकील लीलाधर खत्री ने कहा कि अपीलकर्ता को अफसर की जाति के बारे में जानकारी नहीं थी. इसके कोई सबूत भी नहीं मिले हैं कि ऐसे शब्द बोले गए और ये घटना भी जनता के बीच हुई हो. ऐसे में पुलिस की जांच में जातिसूचक शब्दों से अपमानित करने का इलज़ाम सच नहीं माना गया. हाईकोर्ट ने आदेश दिए- भंगी, नीच, मांगनी और भिखारी शब्द जातिसूचक नहीं हैं, और यह एससी/एसटी एक्ट में शामिल नहीं होगा. ऐसे में जातिसूचक शब्दों के इल्जामों के मामले में अपीलकर्ता को बरी कर दिया गया, लेकिन सरकारी ड्यूटी में लगे कर्मचारियों को रोकने और उससे झगड़ा करने का केस उनपर चलता रहेगा. 

 

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