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अपनी लाइफ स्टाइल से हमेशा सुर्खियों में रहने वाले उद्योगपति विजय माल्या का यह हाल होगा, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। माल्या अपने जीवन में कारोबार के लिए कम लेकिन ग्लैमर, चकाचौंध और रंगीन मिजाजी के लिए ज्यादा जाने जाते रहे हैं। उनकी जीवन शैली देखने से लगता है कि माल्या ने अपने कारोबार को कभी संजीदगी से नहीं लिया। दुनिया में उनकी तरह के उद्योगपति कमी नहीं है लेकिन उनकी प्राथमिकता में कारोबार पहले रहा है और मौज-मस्ती बाद में।
कारोबार की चिंता न करने और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह होने का परिणाम ऐसा ही होता है जैसा कि माल्या के साथ हुआ है। माल्या पर 9000 करोड़ रुपए का कर्ज है और वह करीब दो दर्जन से अधिक कर्ज से जुड़े मामलों का सामना कर रहे हैं। बैंकों के बढ़ते दबाव और अपने ऊपर शिकंजा कसता देख माल्या ने भांप लिया कि उनके अच्छे दिन चले गए हैं और उनके बुरे दिनों की शुरुआत होने वाली है। बैंक और सरकारी एजेंसियां इससे पहले की कुछ कर पातीं माल्या मौका देख कर गत दो मार्च को भारत से निकल गए। बताया जा रहा है कि अब वह लंदन के पास एक गांव में अपने आलीशान विला में है।
एक वक्त था जब माल्या दुनिया की सबसे बड़ी शराब बनाने वाली कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स के चेयरमैन थे, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में बियर में भारत का नेतृत्व करती थीं। यूबी समूह की प्रमुख यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड ने 114 मिलियन केसेज बेचने का ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्थापित किया था, जिसके बाद यह पूरी दुनिया की पहली स्प्रिट्स कंपनी बन गई, लेकिन किंगफिशर एयरलाइंस में हुए घाटे को चुकाने के लिए उन्हें अपनी ये कंपनी गंवानी पड़ी। विदेशी कंपनी डीयाजियो ने 2013 में माल्या की कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी खरीद ली, लेकिन हाल ही में उन्होंने डीयाजियो से 510 करोड़ रुपए लेकर कंपनी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया।
माल्या ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने में कभी हिचके नहीं। हमेशा अपने मन की करते रहे। जो कुछ भी पसंद आया उस पर दिल खोलकर पैसा खर्च किया और अपनी तमन्ना पूरी की। बड़ी-बड़ी पार्टियां और उसमें पेज थ्री कल्चर के लोगों का जमावड़ा माल्या के मिजाज को दर्शाता था। माल्या ने दुनिया भर में आलीशान मकान खरीदे। किंगफिशर और एयर डेक्कन एयरलाइंस में अपने सपनों को उड़ान दी, टीपू सुल्तान की तलवार खरीदकर अपनी रईसी दिखलाई तो आईपीएल टीम और भारत में फॉर्मूला वन के जरिए खेल में भी हाथ आजमाया। कहने का मतलब है कि माल्या का दिल जिस पर आया उसे अपना बनाने के लिए उन्होंने खूब खर्च किया। यह कभी नहीं सोचा कि इससे उनकी वित्तीय हालत पर क्या असर पड़ेगा।
माल्या ने किंगफिशर एयरलाइन की शुरुआत मई 2005 में की और इसके तीन साल बाद ही उनकी इस एयरलाइन को अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने की अनुमति मिल गई। ऐसा कम ही होता है कि घरेलू उड़ान भरने वाली किसी एयरलाइन को तीन साल के अंदर ही अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरने की अनुमति मिल जाए। एवियशन नियमों के मुताबिक पांच साल का घरेलू उड़ान भर चुकी एयरलाइन को ही अंतरराष्ट्रीय सेवा शुरू करने की अनुमति होती है लेकिन सिस्टम की मेहरबानी के चलते माल्या को कोई दिक्कत नहीं हुई। 2005 से लेकर 2010 का यह दौर एयरलाइन्सों के लिए बुरे सपने की तरह था।
कच्चे तेल और एविएशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) की ऊंची कीमतों और परिचालन लागत की अधिकता के बीच किंगफिशर की सेवाएं चर्चा का विषय बनीं। किंगफिशर ने जो सुविधाएं देनी शुरू की, वह सबके बस की बात नहीं थी। अन्य एयरलाइंस अपने खर्चों से निपटने के लिए कॉस्ट कटिंग का रास्ता अपना रही थीं तो माल्या की किंगफिशर कटौती की जगह खर्चे को बढ़ावा देने में लगी थी। यहां तक कि कई विमानन कंपनियों ने अपने परिचालन को घटा कर आधा कर दिया लेकिन इन सब चीजों से बेपरवाह माल्या अपने सपनों को पंख लगाते रहे। यही नहीं, माल्या ने 2008 में सस्ती एयरलाइन एयर डेक्कन को खरीद लिया।