भारतीय वायु सेना की जरूरत है राफेल
Advertisement
trendingNow1253898

भारतीय वायु सेना की जरूरत है राफेल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने फ्रांस के दौरे में 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद पर डील पूरी की है और उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद से 36 राफेल लड़ाकू विमानों को जल्द से जल्द मुहैया कराने का आग्रह किया है। खास बात यह है कि एक ओर मोदी जल्द से जल्द राफेल लड़ाकू विमानों को भारत लाना चाहते हैं, तो दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी राफेल सौदे से खफा हैं। स्वामी यहां तक बोल गए कि अगर जरूरी हुआ तो वह इस डील के खिलाफ कोर्ट भी जा सकते हैं। राफेल विमान को लेकर स्वामी ने जो सवाल उठाए हैं उसपर यहां गौर कराना जरूरी होगा।  

स्वामी का कहना है कि राफेल विमान ईंधन की खपत ज्यादा करता है। तो इसका जवाब यह है कि ईंधन की खपत के आधार पर लड़ाकू विमानों की खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती। यदि ईंधन की खपत को ही मुख्य आधार मान लिया जाए तो सबसे ज्यादा माइलेज देने वाले वाहन और लड़ाकू विमान ही सबकी पसंद बन जाते लेकिन ऐसा नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति और देश अपनी जरूरतों के हिसाब से वाहन एवं विमान खरीदते हैं। यही नहीं, राफेल अपनी तरह के दूसरे लड़ाकू विमान यूरो-फाइटर की तुलना में कम ईंधन की खपत करता है। कुल मिलाकर ईंधन की खपत लड़ाकू विमानों के सामरिक अभियानों पर निर्भर करती है। तो स्वामी के ईंधन वाले तर्क में दम नहीं है।       

राफेल के खिलाफ स्वामी का दूसरा तर्क है कि दुनिया के किसी देश ने इस विमान को नहीं खरीदा है। इसके बारे में यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक देश की सामरिक जरूरतें अलग-अलग होती हैं। हर एक देश अपनी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करता है। भारत की तरह अन्य देश पाकिस्तान और चीन जैसे दुश्मन पड़ोसी देशों से घिरे नहीं हैं और हर एक देश को राफेल की तरह बहुद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की जरूरत नहीं है। मिस्र राफेल विमान खरीदने का प्रस्ताव पेश कर चुका है जबकि कतर भी इस विमान के लिए फ्रांस सरकार के साथ बातचीत के अंतिम दौर में है।
        
यह सही है कि ब्राजील और कनाडा जैसे कुछ देशों ने राफेल को खऱीदने से इंकार किया है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि भारत जैसे गंभीर खतरे उनके सामने नहीं हैं। यह भी गौर करना होगा कि जिन देशों ने राफेल को खारिज किया है, क्या उन्होंने भारत की तरह चार बड़े युद्ध लड़े हैं। भारत के लिए बहुद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की जरूरतों को पूरा करने में तीन लड़ाकू विमानों राफेल, ग्रिपेन और यूरोफाइटर सफल हुए थे। और इनमें से केवल राफेल के पास ही युद्ध में हिस्सा लेने का अनुभव है। ग्रिपेन और यूरोफाइटर के पास युद्ध का अनुभव नहीं है। जबकि राफेल अफगानिस्तान और लीबिया में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर चुका है। राफेल सौदा भारत की भौगोलिक बनावट के अनुकूल है। इसकी प्रति घंटे रफ्तार 3000 किलोमीटर तक है और यह एक मिनट में 60 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम है। घातक मिसाइलों से लैस और एक बार में 125 राउंड गोलियां दागने वाला राफेल लड़ाई के समय हिमालय की ऊंची एवं दुर्गम चोटियों में बड़े अभियानों को बड़ी सफलता के साथ अंजाम दे सकता है। fallback   

भारतीय वायु सेना फ्रांस के लड़ाकू विमानों से अपरिचित नहीं है। वायु सेना के बेड़े में फ्रांस निर्मित लड़ाकू विमानों एवं हेलीकॉप्टरों की एक लंबी फेहरिस्त है। मिराज भारतीय वायु सेना का एक अहम लड़ाकू विमान है जिसने कारगिल युद्ध के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही लड़ाई के समय युद्ध सामग्रियों एवं उपकरणों की आपूर्ति फ्रांस के साथ कोई मुद्दा नहीं है। यही नहीं, फ्रांस भारत का एक भरोसेमंद साथी है। यह भी याद रखना होगा कि पोखरण परमाणु विस्फोट के बाद फ्रांस ही एक मात्र पश्चिमी देश था जिसने भारत के ऊपर प्रतिबंध नहीं लगाया बल्कि नई दिल्ली के इस कदम की सराहाना की थी। जबकि लड़ाकू विमान यूरोफाइटर को पांच देश मिलकर बनाते हैं। इस लड़ाकू विमान के कल-पुर्जे और उपकरण अलग-अलग देशों में बनते हैं और हर समय इन पांच देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंध एक जैसे नहीं रह सकते। इन सारी बातों को देखते हुए मध्यम बहुद्देश्यीय लड़ाकू विमान (एमएमआरसीए) राफेल पांच देशों के यूरोफाइटर से सस्ता पड़ता है।

मौजूदा समय में भारतीय वायु सेना लड़ाकू विमानों की कमी से जूझ रही है। चीन की तैयारियों को देखते हुए भारत सरकार को इस कमी को जल्द से जल्द पूरा करना है। साल 2012 में यूपीए सरकार ने 126 राफेल लड़ाकू विमानों के लिए फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन के साथ समझौता किया था लेकिन उत्पादन की गुणवत्ता एवं विमानों की आपूर्ति पर नियमों और बढ़ती कीमत को लेकर यह डील अटक गया। भारत सरकार को फ्रांस के साथ अपने रिश्तों को आगे बढ़ाना है। तकनीक, रक्षा, असैन्य परमाणु ऊर्जा से लेकर अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को फ्रांस की जरूरत है। एक रुके हुए सौदे को मोदी सरकार ने अपने तरीके से आगे बढ़ाया है।

भारतीय वायु सेना को एमएमआरसीए मुहैया कराना समय की मांग है। चीन इस क्षेत्र में आगे निकलता जा रहा है। जहां राफेल के जरिए भारत वायु सेना में चौथी पीढ़ी के एमएमआरसीए शामिल करेगा तो चीन अपने चेंगदू जे-20 स्टील्थ फाइटर के साथ आगे बढ़ेगा। यह सभी को पता है कि भारत रक्षा-खरीद प्रक्रिया जटिल एवं लंबी अवधि वाली होती है। रक्षा जरूरतों को लंबे समय तक के लिए नहीं टाला जा सकता। मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ 36 राफेल विमानों का सौदा बहुत सोच समझकर किया गया होगा। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि 36 राफेल विमानों की डील सीधे तौर पर फ्रांस और भारत सरकार के बीच हुई है। इस सौदे में कोई बिचौलिया नहीं है। पीएम मोदी ने यह अलग तरह की राह अपनाई है।   

फ्रांस भी रूस की तरह भारत का समय का साथी रहा है। आने वाले समय में वह सैन्य और असैन्य दोनों क्षेत्रों में भारत का प्रमुख भागीदार हो सकता है। पश्चिमी देशों खासकर फ्रांस के साथ करीबी रिश्ते भारत को तेजी से विकास करने में मदद पहुंचाएंगे। फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत का समर्थन किया है। यह भारत के साथ उसके प्रगाढ़ होते रिश्ते और उसके विश्वास को दर्शाता है।     

Trending news