Trending Photos
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सदस्यता की अपनी दावेदारी में भारत एक कदम और आगे बढ़ा है। पीएम मोदी के हालिया अमेरिकी दौरे ने भारत के इस दावे को और मजबूती प्रदान की है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा यूएनएससी में सुधार के लिए दस्तावेज आधारित वार्ता शुरू करने की पहल के बाद वैश्विक मंच पर पीएम मोदी ने जिस तरीके से आवाज बुलंद की है उससे सुरक्षा परिषद के विस्तार और उसमें भारत की भूमिका को लेकर उम्मीद जगी है। हालांकि, अभी पक्के तौर यह नहीं कहा जा सकता कि सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्यता मिल ही जाएगी। ऐसा इसलिए क्योंकि कई ऐसे देश हैं जो नहीं चाहते कि यूएनएससी में भारत को वीटो पावर जैसी प्रभावी भूमिका मिले। असहयोग के कुछ संकेतों के बावजूद यूएनएससी में सुधार की पहल भारत के लिए अच्छी खबर है।
यूएनएससी की स्थायी सदस्यता में विस्तार का यूएफसी देश विरोध करते हैं। इन यूएफसी देशों में इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको और मिस्र देश शामिल हैं जिन्हें 'कॉफी क्लब' कहा जाता है। ये देश स्थायी सदस्यता के विस्तार के पक्षधर न होकर अस्थायी सदस्यता के विस्तार के हिमायती हैं। इन देशों का तर्क है कि स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाए जाने पर पक्षपात और गुटबाजी को बल मिलेगा। हालांकि, इनकी आशंका निराधार है। इन देशों की आशंका सामूहिक न होकर बल्कि व्यक्तिगत हित पर कहीं ज्यादा टिकी हैं।
यूएनएससी के पांच स्थायी सदस्य देशों में से अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस का समर्थन भारत को प्राप्त है। ये चारों देश स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी के प्रति अपना समर्थन दोहरा चुके हैं। यह भारत के लिए सुखद बात है कि पांच सदस्यों में से चार उसके पक्ष में हैं। रही बात चीन की तो वह खुले तौर पर भारत की दावेदारी का विरोध तो नहीं करता लेकिन खुलकर समर्थन भी नहीं करता। चीन विस्तारित यूएनएससी में भारत की अहम भूमिका की बात तो करता है लेकिन स्थायी सदस्यता को लेकर उसका रुख स्पष्ट नहीं है।
यूएनएससी में विस्तार वक्त की जरूरत बन गई है। विस्तार की मांग भारत लंबे समय से करते आया है। पीएम मोदी अलग-अलग मंचों से यह बात दुनिया के समक्ष उठा चुके हैं। उन्होंने कहा है कि स्थायी सदस्यता भारत का हक है और इस हक से भारत को अब वंचित नहीं रखा जा सकता। नवंबर से शुरू हो रही दस्तावेज आधारित वार्ता में यूएनएससी के स्वरूप, विस्तार और भूमिका को लेकर व्यापक चर्चा होने जा रही है। इस चर्चा में वीटो पावर को लेकर पी-5 देशों का रुख क्या होता है यह देखना महत्वपूर्ण होगा। क्योंकि वीटो पावर से लैस देश अपनी ताकत को कमजोर होते देखना नहीं चाहेंगे, उनकी मंशा सुरक्षा परिषद में अपनी पकड़ कायम रखनी की होगी। जबकि सुरक्षा परिषद में वीटो पावर के बगैर भारत अपनी भूमिका के लिए तैयार होता नहीं दिखेगा।
पीएम मोदी ने अपनी विदेश यात्राओं के जरिए यह चर्चा हमेशा सक्रिय रखी कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में जब उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अपनी बात ताल ठोक कर कही। तय समय सीमा में सुधार की बात कर मोदी ने जता दिया कि भारत अपनी नई भूमिका के लिए तैयार है और इस काम में अब और देरी नहीं होनी चाहिए। अब विश्व समुदाय भी मानने लगा है कि विस्तारित सुरक्षा परिषद में भारत की अहम भूमिका होनी चाहिए।
विस्तारित सुरक्षा परिषद का आकार, स्वरूप और नए देशों की भूमिका क्या हो, यह बहुत कुछ अमेरिका के रुख पर निर्भर करेगा। भारत की स्थायी सदस्यता की राह में आने वाले रो़ड़ों को उसे ही दूर करना होगा। जाहिर है कि भारत को स्थायी सदस्यता न मिले इसके लिए चीन और पाकिस्तान लॉबिंग करने से लेकर कूटनीतिक कुचक्र रचने से बाज नहीं आएंगे। ऐसे में स्थायी सदस्यता की दौड़ में भारत की कूटनीति जहां कमजोर पड़ती दिखेगी वहां अमेरिका को दखल देना होगा। अमेरिका यह काम न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (एनएसजी) से भारत को वेभर (छूट) दिलाने के समय कर चुका है। भारत को वेभर न मिले इसके लिए चीन ने अड़ंगा लगाया था लेकिन अमेरिका के भारी कूटनीतिक दबावों के चलते चीन को पीछे हटना पड़ा । खुद जार्ज डब्ल्यू बुश ने उस समय चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ को फोन किया था। अब बारी बराक ओबामा की है।