Donald Trump's reciprocal tariffs: अमेरिका जैसे विकसित देशों में शुल्क कम हैं, क्योंकि उनके उद्योग पहले से ही वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं. वहीं, भारत जैसे विकासशील देश मुख्य रूप से घरेलू उद्योगों की रक्षा करने, राजस्व उत्पन्न करने और आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए उच्च आयात शुल्क बनाए रखते हैं.
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Trump’s reciprocal tariffs impact: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन सहित अपने प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर जवाबी शुल्क लगाने की घोषणा की है. यानी जैसे को तैसा टैक्स सिस्टम. इसके तहत उस देश के सामानों पर भी उतना ही टैक्स लगाएगा जाएगा जितना वो अमेरिका से भेजे जाने वाले सामानों पर लगाते हैं. नई शुल्क नीति की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि टैक्स लगाने के मामले में भारत सबसे ऊपर है.’
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पहले ही इस्पात और एल्यूमीनियम आयात पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की घोषणा की है. यह टैक्स सिस्टम 12 मार्च से लागू होगा. चूंकि ये सभी देश वैश्विक व्यापार निकाय विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सदस्य हैं, इसलिए अमेरिका के फैसले को डब्ल्यूटीओ में चुनौती दिया जा सकता है.
ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है कि WTO क्या है, और क्या अमेरिका ने उनके नियमों का उल्लंघन किया है. साथ ही हम यह भी जानेंगे भारत समेत अन्य देशों के पास आगे क्या ऑप्शन हैं.
क्या है WTO?
जिनेवा स्थित विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) एक बहुपक्षीय निकाय है जो वैश्विक व्यापार के लिए नियम बनाता है और देशों के बीच विवादों का निपटारा करता है. इसका मुख्य उद्देश्य वस्तुओं के सुचारू, पूर्वानुमानित और मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देना है. भारत और अमेरिका दोनों ही 1995 से इसके सदस्य हैं. इन देशों ने वस्तुओं, सेवाओं और बौद्धिक संपदा के व्यापार को नियंत्रित करने वाले कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं. ये समझौते अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए नियम और दिशा-निर्देश निर्धारित करते हैं.
WTO के तहत टैक्स कमिटमेंट क्या हैं?
विश्व व्यापार संगठन के प्रमुख सिद्धांतों में से एक शुल्क बाध्यकारी है, जो वैश्विक व्यापार में पूर्वानुमान और स्थिरता सुनिश्चित करता है. बाध्य शुल्क अधिकतम शुल्क दरें हैं जो एक डब्ल्यूटीओ सदस्य अपनी रियायतों की अनुसूची के तहत प्रतिबद्ध करता है. ये प्रतिबद्धताएं कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं.
जिसका अर्थ है कि कोई देश बिना पुनर्वार्ता के इस स्तर से ऊपर शुल्क नहीं लगा सकता है. लागू शुल्क वे वास्तविक शुल्क दरें हैं जो कोई देश आयात पर लगाता है. ये बाध्य दर से कम हो सकते हैं लेकिन डब्ल्यूटीओ नियमों का उल्लंघन किए बिना इससे अधिक नहीं हो सकते.
निर्धारित शुल्कों से अधिक शुल्क लगाने पर क्या होगा?
यदि कोई सदस्य देश अपनी बाध्यता से अधिक शुल्क लगाता है, तो वह जीएटीटी (टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौता) 1994 के अनुच्छेद-2 का उल्लंघन करता है. इसमें कहा गया है कि सदस्यों को अपने अनुसूचियों में सूचीबद्ध शुल्कों या प्रभारों से अधिक शुल्क नहीं लगाना चाहिए और वे कोई अन्य शुल्क या प्रभार नहीं लगा सकते हैं जो उनके अनुसूचियों में निर्दिष्ट नहीं हैं.
प्रभावित देश उच्च शुल्कों के खिलाफ डब्ल्यूटीओ विवाद निपटान निकाय (डीएसबी) के साथ शिकायत दर्ज कर सकते हैं. डीएसबी नियमों के तहत विवाद को हल करने का पहला कदम द्विपक्षीय परामर्श है. यदि परामर्श विफल हो जाता है, तो शिकायतकर्ता देश को डब्ल्यूटीओ से मंजूरी मिलने के बाद जवाबी शुल्क या अन्य व्यापार प्रतिवाद लागू करने की अनुमति दी जा सकती है.
क्या WTO का कोई सदस्य अपनी बाध्य शुल्क दरें बढ़ा सकता है?
इसका जवाब है हां. लेकिन केवल जीएटीटी के अनुच्छेद-28 (अनुसूचियों में संशोधन) के तहत प्रभावित देशों के साथ बातचीत करके, जहां इसे प्रतिपूरक रियायतें देनी होंगी या विशिष्ट मामलों में सुरक्षा उपायों या राष्ट्रीय सुरक्षा अपवादों जैसे आपातकालीन प्रावधानों को लागू करके. ट्रंप के पिछले शासन के दौरान अमेरिका ने अपने व्यापार अधिनियम की धारा 232 के तहत ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के आधार पर इस्पात पर 25 प्रतिशत और एल्युमीनियम उत्पादों पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाया था. इसने घरेलू इस्पात उत्पादन क्षमता के लिए खतरों का हवाला दिया था.
हालांकि, डब्ल्यूटीओ ने कई मामलों में इस उपाय के खिलाफ फैसला सुनाया है. भारत ने भी 28 अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी शुल्क लगाया था. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने कहा कि डब्ल्यूटीओ विवाद समिति ने कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अपवादों का मनमाने ढंग से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और इन्हें युद्ध या आपात स्थितियों के दौरान वास्तविक सुरक्षा चिंताओं से जोड़ा जाना चाहिए.
अमेरिका ने जवाब में क्या किया?
जीटीआरआई के अनुसार, अमेरिका ने यह तर्क देते हुए डब्ल्यूटीओ के फैसले का पालन करने से इनकार कर दिया कि उसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को निर्धारित करने का संप्रभु अधिकार है. इसने डब्ल्यूटीओ अपीलीय निकाय को भी अवरुद्ध कर दिया है, जिससे अपील समाधान में बाधा आ रही है.
अमेरिका की तुलना में भारत जैसे देश क्यों लेते हैं ज्यादा टैक्स?
भारत जैसे विकासशील देश मुख्य रूप से घरेलू उद्योगों की रक्षा करने, राजस्व उत्पन्न करने और आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए उच्च आयात शुल्क बनाए रखते हैं. ये देश अक्सर अपने उभरते क्षेत्रों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने, आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने और व्यापार असंतुलन का प्रबंधन करने के लिए शुल्क पर निर्भर रहते हैं.
दूसरी ओर, अमेरिका जैसे विकसित देशों में शुल्क कम हैं, क्योंकि उनके उद्योग पहले से ही वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी हैं, और वे खुले बाजारों से लाभान्वित होते हैं, जो उनके व्यवसायों को न्यूनतम व्यापार बाधाओं के साथ विदेशी उपभोक्ताओं तक पहुंचने की अनुमति देते हैं. जीटीआरआई के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से जब 1995 में डब्ल्यूटीओ की स्थापना हुई थी, तब विकसित राष्ट्र बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के व्यापार-संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स), सेवा व्यापार उदारीकरण, तथा कृषि नियमों पर प्रतिबद्धताओं के बदले में विकासशील देशों को उच्च शुल्क बनाए रखने देने पर सहमत हुए थे, जो मुख्य रूप से धनी देशों के पक्ष में थे.
WTO के तहत किसे मिलता है बेनिफिट?
डब्ल्यूटीओ के समझौतों में विशेष प्रावधान हैं जो विकासशील देशों को विशेष अधिकार देते हैं और अन्य सदस्यों को उनके साथ अधिक अनुकूल व्यवहार करने की अनुमति देते हैं. उदाहरण के लिए, भारत जैसे विकासशील देश अपने शुल्क और निर्यात सब्सिडी को कम करने के लिए अधिक अमीर देशों की तुलना में अधिक समय ले सकते हैं.
ट्रंप के टैक्स के खिलाफ लड़ सकता है भारत?
क्लैरस लॉ एसोसिएट्स की साझेदार आर.वी. अनुराधा के अनुसार भारत को इस्पात और एल्युमीनियम पर 25 प्रतिशत शुल्क तथा डब्ल्यूटीओ में जवाबी शुल्क की धमकी के विरुद्ध लड़ने का अधिकार है.
अनुराधा का कहना है कि भारत और अमेरिकी सरकारों के बीच व्यापार समझौते के लिए चल रही वर्तमान बातचीत को देखते हुए, व्यावहारिक रूप से यह ‘असंभव’ है कि भारत विश्व व्यापार संगठन में लंबी लड़ाई चाहेगा.
उन्होंने कहा, “लेकिन मेरी सलाह यह होगी कि द्विपक्षीय समझौते से जादू की उम्मीद न करें और इस बात पर दृढ़ रहें कि हमारे लिए वास्तव में क्या फायदेमंद होगा. कम से कम, द्विपक्षीय व्यापार वार्ता के समापन तक, बढ़े हुए इस्पात और एल्युमीनियम शुल्क और जवाबी शुल्क को निलंबित कर दिया जाना चाहिए. अगर हमें यह नहीं मिलता है, तो हमें जवाबी शुल्क पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, और डब्ल्यूटीओ विवाद का विकल्प भी खुला रखना चाहिए.”
भारत को क्या करना चाहिए?
अनुराधा ने सुझाव दिया कि भारत को डब्ल्यूटीओ के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर संगठन की निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है. डब्ल्यूटीओ विवाद समाधान तंत्र के अभाव के कारण लगातार संकटग्रस्त होता जा रहा है. उन्होंने कहा, “प्रभावी नियम आधारित बहुपक्षीय व्यवस्था का कोई विकल्प नहीं है, जहां हमारे पास विकासशील देशों के साझा हितों की ताकत है. द्विपक्षीय सौदे केवल शक्ति प्रदर्शन को बढ़ाएंगे.”
(कॉपी-भाषा)