Dadabhai Naoroji:सबसे पहले बताया 1 भारतीय सालाना कमाता है 20 रु, भारत की लूट पर दी 'थ्‍योरी'
Advertisement
trendingNow12414418

Dadabhai Naoroji:सबसे पहले बताया 1 भारतीय सालाना कमाता है 20 रु, भारत की लूट पर दी 'थ्‍योरी'

Poverty and Unbritish rule in india लेख में दादाभाई नौरोजी ने प्रति व्यक्ति वार्षिक आय का अनुमान 20 रुपए लगाया था.

Dadabhai Naoroji:सबसे पहले बताया 1 भारतीय सालाना कमाता है 20 रु, भारत की लूट पर दी 'थ्‍योरी'

The Grand Old Man Of India: दादाभाई नौरोजी को 'भारतीय राजनीति का पितामह' कहा जाता है. वह दिग्गज राजनेता, उद्योगपति, शिक्षाविद् और विचारक भी थे. वह काफी मेधावी छात्र रहे और शिक्षक उनकी खूब तारीफ भी करते थे. साल 1845 में वह एल्फिन्स्टन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक बने. उनकी काबिलियत इतनी थी कि एक अंग्रेजी के प्राध्यापक ने उनको 'भारत की आशा' की संज्ञा दी थी. 4 सितंबर 1825 को बंबई (अब मुंबई) में पैदा हुए दादाभाई नौरोजी ने कई संगठनों का निर्माण किया था. गुजराती भाषा में 1851 में 'रस्त गफ्तार' साप्ताहिक निकालना प्रारंभ किया. वहीं, 1866 में 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' का गठन किया. वह लंदन के विश्वविद्यालय में भी प्रोफेसर बने. लेकिन, 1869 में भारत वापस आ गए. यहां उनका 30,000 रुपए की थैली और सम्मान-पत्र से स्वागत किया गया.

दादा भाई ने 1885 में 'बंबई विधान परिषद' की सदस्यता ग्रहण की. ब्रिटेन की संसद के लिए 1892 में वह फिन्सबरी क्षेत्र से निर्वाचित हुए थे. उनके जीवन में उपलब्धियां भरी रही. उनका लेख 'पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया' आज के समय में भी बेहद प्रासंगिक बना हुआ है. इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में 1886 से 1906 तक काम करने वाले दादा भाई नौरोजी ने अंग्रेजों के भारत की धन-संपत्ति की लूट की तरफ ध्यान आकृष्ट कराया था.

Analysis: केसी त्‍यागी ने दिया इस्‍तीफा, नीतीश ने तेजस्‍वी से की मुलाकात; हो क्‍या रहा है?

धन के बहिर्गमन का सिद्धांत
उन्होंने 2 मई 1867 को लंदन में 'ईस्ट इंडिया एसोसिएशन' की बैठक में अपने पत्र 'इंग्लैंड डेब्यू टू इंडिया' को पढ़ते हुए पहली बार 'धन के बहिर्गमन' के सिद्धांत को प्रस्तुत किया था. उन्होंने कहा था, "भारत का धन ही भारत से बाहर जाता है और फिर धन भारत को पुनः कर्ज के रूप में दिया जाता है, जिसके लिए उसे और धन ब्याज के रूप से चुकाना पड़ता है. यह सब एक दुश्चक्र था, जिसे तोड़ना कठिन था."

उन्होंने अपने लेख 'पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल्स इन इंडिया' में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय का अनुमान 20 रुपए लगाया था. इसके अतिरिक्त उनकी किताबों 'द वान्ट्स एंड मीन्स ऑफ़ इंडिया', 'ऑन दी कॉमर्स ऑफ़ इंडिया' में भी भारत के तत्कालीन हालात और ब्रिटिश राज को लेकर कई महत्वपूर्ण बातों का जिक्र किया गया था. उन्होंने कहा था कि "धन का बहिर्गमन समस्त बुराइयों की जड़ है और भारतीय निर्धनता का मुख्य कारण है."

यहां तक कि दादाभाई नौरोजी ने धन को देश से बाहर भेजने को 'अनिष्टों का अनिष्ट' के रूप में संज्ञा दी थी. 'द ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया' के नाम से मशहूर दादा भाई नौरोजी ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले पहले एशियाई थे. संसद सदस्य रहते हुए उन्होंने ब्रिटेन में भारत के विरोध को रखा था. उन्होंने भारत की लूट के संबंध में ब्रिटिश संसद में अपनी महत्वपूर्ण थ्योरी भी पेश की थी. खास बात यह है कि 1906 में उन्होंने पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग किया था.

उन्होंने कहा था, "हम कोई कृपा की भीख नहीं मांग रहे हैं. हमें तो न्याय चाहिए." दादा भाई नौरोजी को भारत में राष्ट्रीय भावनाओं का जनक माना जाता है. कहा जाता है कि उन्होंने देश में स्वराज की नींव डाली. उनका निधन 92 वर्ष की आयु में हुआ था.

(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस)

तमाम खबरों पर नवीनतम अपडेट्स के लिए ज़ी न्यूज़ से जुड़े रहें! यहां पढ़ें Hindi News Today और पाएं Breaking News in Hindi हर पल की जानकारी. देश-दुनिया की हर ख़बर सबसे पहले आपके पास, क्योंकि हम रखते हैं आपको हर पल के लिए तैयार. जुड़े रहें हमारे साथ और रहें अपडेटेड!

Trending news