DRDO Internship India: संगठन इंटर्न को ट्रेनिंग के आधार पर रोजगार नहीं दे सकता है. ट्रेनिंग की अवधि कोर्स के टाइप के आधार पर 4 सप्ताह से 6 महीने तक होती है.
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DRDO Programme: डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) साइंस और इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट स्टूडेंट्स को कई इंटर्नशिप के मौके देता है. इन प्रोग्रामों का मकसद युवाओं को डिफेंस टेक्नोलॉजी में मॉडर्न रिसर्च और डिवेलपमेंट (आरएंडडी) का प्रैक्टिकल अनुभव देना है. छात्र कॉलेज या यूनिवर्सिटी के माध्यम से डीआरडीओ में इंटर्नशिप के लिए अप्लाई करते हैं.
यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि केवल 19 से 28 साल की आयु के उम्मीदवार ही इसके लिए योग्य हैं, जिनके पास किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज या यूनिवर्सिटी से संबंधित डिग्री हो. कुछ हाई-टेक रिसर्च के मौकों के लिए, छात्रों को उनके कोर्स के दौरान मिले मार्क्स के आधार पर शॉर्टलिस्ट किया जाता है.
डीआरडीओ के नोटिफिकेशन में यह भी बताया गया है कि इंटर्नशिप के लिए चुने गए लोगों को केवल डीआरडीओ लैब्स के अनक्लासिफाइड एरिया तक ही पहुंचने की अनुमति दी जाएगी. इसमें यह भी बताया गया है कि संगठन इंटर्न को ट्रेनिंग के आधार पर रोजगार नहीं दे सकता है. ट्रेनिंग की अवधि कोर्स के टाइप के आधार पर 4 सप्ताह से 6 महीने तक होती है, हालांकि, यह लैब डायरेक्टर के विवेक पर निर्भर करता है.
सीधे शब्दों में कहें तो, डीआरडीओ छात्रों को रक्षा से जुड़ी रिसर्च में काम करने का मौका देता है. ये इंटर्नशिप कॉलेज के थ्रू मिलती है, और 19 से 28 साल के स्टूडेंट्स ही अप्लाई कर सकते हैं. कुछ खास रिसर्च के लिए, अच्छे नंबर लाने वालों को पहले मौका दिया जाता है. इंटर्न को सिर्फ कुछ खास जगहों पर ही जाने दिया जाता है, और इंटर्नशिप के बाद नौकरी की गारंटी नहीं होती. इंटर्नशिप 4 हफ्ते से 6 महीने तक चल सकती है.
सूचना में कहा गया है कि, "डीआरडीओ इस बात के लिए ज़िम्मेदार नहीं होगा कि अगर किसी छात्र को डीआरडीओ लैब/ establishments में काम करने के दौरान किसी दुर्घटना में कोई चोट लग जाए."
डीआरडीओ के भारत भर में 50 से ज़्यादा लैब्स और प्रतिष्ठान हैं, जिनमें से प्रत्येक रक्षा अनुसंधान और विकास के अलग-अलग एरिया में एक्सपर्टीज रखता है. ये लैब्स इंजीनियरिंग, साइंस और संबंधित क्षेत्रों में डिग्री हासिल कर रहे छात्रों के लिए इंटर्नशिप के मौके प्रदान करती हैं.
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इच्छुक उम्मीदवारों को अपना रिज्यूमे और कवर लेटर बनाना होगा. इनमें उम्मीदवार के अकादमिक रिकॉर्ड के साथ-साथ रिकमंडेशन लेटर भी होने चाहिए, यदि कोई हो. यह लेटर प्रोफेसरों द्वारा, या उस संगठन द्वारा दिया जा सकता है जहां उम्मीदवार ने पहले काम किया है.
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