DRG Soldiers: छत्तीसगढ़ में जब भी कोई नक्सल ऑपरेशन होता है, उसे सफल बनाने में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड की अहम भूमिका होती है. डीआरजी के जवान बहुत ही खतरनाक होते हैं. आइए जानते हैं DRG के बारे में...
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Chhattisgarh Special Force: छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से नक्सलियों को मुख्य धारा में लौटाने और उनका नामों निशान मिटाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. सरकार का साफ कहना है कि या तो नक्सली समाज के साथ जुड़ जाएं या खात्मे के लिए तैयार रहें. ऐसे में सुरक्षा बलों द्वारा राज्य के नक्सली इलाकों में नक्सली सफाया अभियान जारी है. इन सिक्योरिटी फोर्सेस में सीआरपीएफ, एसटीएफ, बीएसएफ, बस्तर बटालियन और बस्तर फाइटर्स होते हैं.
इन सब कोर्सेस के बारे में तो आप जानते ही हैं, लेकिन एक और फोर्स होती है जो फ्रंट लाइन पर लड़ती है. इस फोर्स के जवान ही सबसे पहले नक्सलियों से भिड़ते हैं. यह स्पेशल फोर्स डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) कहलाती है. चलिए आपको बताते हैं इनके बारे में...
ऐसे हुआ डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड का गठन
नक्सलियों का नेटवर्क बहुत मजबूत था, उन्हें गली-मोहल्ले में कहीं कुछ भी होता, उसके बारे में तुरंत ही पता चल जाता था. इस तरह नक्सली अपने काम को बड़ी आसानी से अंजाम दे जाते और सुरक्षा बलों की गिरफ्त में भी नहीं आते थे. ऐसे में सालों पहले जब छत्तीसगढ़ सरकार को लगा कि माओवादियों से भिड़ने के लिए सुरक्षा बल काफी नहीं है, तब सरकार ने ऐसे युवाओं की फौज तैयार करने का फैसला लिया, जो नक्सलियों के बीच से निकले हों और उन्हें बहुत करीब से जानते हों, तभी उनका नेटवर्क कमजोर किया जा सकता था.
DRG जवान
नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए छत्तीसगढ़ ने स्पेशल फोर्स बनाई, जिसके डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड नाम दिया गया. साल 2008 में इसकी शुरुआत कांकेर और नारायणपुर जिले से हुई. यहां डीआरजी जवानों की सफलता के बाद राज्य सरकार ने दूसरों जिलों में भी इनकी तैनाती करने का फैसला लिया. बीजापुर और बस्तर में डीआरजी 2013 में भर्तियां की गईं. सुकमा और कोंडागांव में 2014 में डीआरजी बनी. इसके बाद दंतेवाड़ा और राजनांदगांव 2015 में डीआरजी जवानों की पोस्टिंग की गई. धीरे-धीरे हर जिले में डीआरजी नक्सलियों पर कड़ी नजर रखने लगे.
इस स्पेशल फोर्स में किसकी होती है भर्ती?
छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र में ही आते हैं, इसलिए इस स्पेशल फोर्स केवल लोकल लोगों की भर्तियां होती हैं. इन्हें वहां के जंगल, स्थानीय भाषा और भौगोलिक परिस्थिति आदि की बहुत अच्छे से जानकारी होती है. इस फोर्स में सरेंडर कर चुके नक्सलियों को भी रखा जाता है, क्योंकि उन्हें अपने पुराने साथियों के पैंतरे पता होते हैं, जिसके आधार पर डीआरजी उनकी आगे की योजनाओं का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं.
इतना ही नहीं ये गार्ड्स 3 से 4 दिन तक जंगल में लगातार नक्सलियों की तलाशी कर सकते हैं. ये जवान बुलेटप्रुफ जैकेट के बिना ही नक्सलियों की सर्चिंग के लिए निकल पड़ते हैं. वर्तमान में इस स्पेशल फोर्स में लगभग दो हजार जवान हैं, जो लगातार जंगलों में माओवादियों की तलाश करते रहते हैं. जब भी कोई मुठभेड़ होती है, तो डीआरजी सबसे आगे खड़े होते हैं.