Amethi-Raebareli Lok Sabha Seat: इस बार अमेठी और रायबरेली से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा. दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाधी लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी तो राहुल इस बार भी वायनाड से लोकसभा पहुंचने का रास्ता तलाशेंगे.
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BJP Vs Congress: लोकसभा चुनाव में गांधी परिवार का कोई सदस्य इन दोनों सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा. दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस वहां से नए उम्मीदवार मैदान में उतारेगी. तो क्या कांग्रेस अपने किले के रूप में मशहूर दोनों परंपरागत सीट पर बीजेपी को वॉकओवर देने जा रही है. लोकसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही, उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों अमेठी और रायबरेली को लेकर तरह तरह की अटकलें शुरू हो गईं.
कौन होगा कांग्रेस का उम्मीदवार?
ये कयास लगने लगे कि इन दोनों सीटों से कांग्रेस के उम्मीदवार कौन होगा. क्या राहुल गांधी पांचवीं बार लड़ने के लिए अमेठी आएंगे या फिर वो अमेठी का चुनाव मैदान खुला छोड़ देंगे. परंपरागत तौर पर इन दोनों सीटों को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है क्योंकि गांधी परिवार के कई दिग्गज इसी सीट के रास्ते कई बार लोकसभा पहुंचे. लेकिन इस बार इन दोनों सीटों को लेकर जो ख़बर आ रही है, वो आपको चौंका सकती है.
सूत्रों के मुताबिक, इस बार अमेठी और रायबरेली से गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ेगा. दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाधी लोकसभा चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी तो राहुल इस बार भी वायनाड से लोकसभा पहुंचने का रास्ता तलाशेंगे. वायनाड से राहुल गांधी की उम्मीदवारी का तो ऐलान भी हो चुका है. वहीं सोनिया गांधी पहले ही राज्यसभा के जरिए संसद पहुंच चुकी हैं... तभी ये साफ हो गया था कि वो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. यानि अमेठी और रायबरेली की परंपरागत सीट पर गांधी परिवार इस बार किसी और को मौका दे सकती है.
क्या कांग्रेस ने कर दिया सरेंडर?
ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या यहां लड़ने से पहले ही कांग्रेस सरेंडर कर दिया है. क्या दोनों परंपरागत सीटों पर उम्मीदवार गैर गांधी परिवार से उतरेंगे? क्या दोनों सीटों पर कांग्रेस ने बीजेपी को वॉकओवर दे दिया है. ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि क्योंकि 2019 के महामुकाबले में अमेठी सीट पर तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को स्मृति ईरानी से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी.
राहुल की हार को 2019 के रण की सबसे बड़ी हार माना गया. क्योंकि इस हार के साथ ही ढह गया था कांग्रेस का सबसे मजबूत किला और टूट गई थी कांग्रेस की तमाम उम्मीदें. साथ ही बिखर गया था पार्टी कार्यकर्ताओं का सपना वहां न राहुल की रणनीति काम आई थी. न ही प्रियंका गांधी का करिश्मा कमाल दिखा सका था. गांधी परिवार पर जमकर प्यार बरसाने वाली अमेठी की जनता ने भाई बहन की जोड़ी से मुंह मोड़ लिया था. इस बार भी बीजेपी अमेठी से बड़ी और ऐतिहासिक जीत का दम भर रही है.
इतनी आसान नहीं अमेठी-रायबरेली की जंग
बीजेपी जीत का दम भर रही है... तो कांग्रेस नेताओं को अभी भी गांधी परिवार के करिश्मे पर भरोसा है. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय तो कई बार राहुल से अमेठी का रण में उतरने की अपील कर चुके हैं. लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी के साथ यूपी में इंडिया गठबंधन के बैनर तले उतर रही कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली की जंग इतनी आसान भी नहीं है.
क्या था वोट परसेंटेज?
क्योंकि 2019 में रायबरेली में, बीजेपी के 38 फीसदी वोटों के मुकाबले कांग्रेस को 56 फीसदी वोट मिले थे. तब एक बैनर तले उतरी एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस के समर्थन में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. लेकिन इस बार बीएसपी अकेले ताल ठोक रही है. वहीं अमेठी में एसपी बीएसपी के समर्थन के बावजूद कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले करीब 6 फीसदी कम वोट मिले थे. इस बार तो बीएसपी के वोट काटने का भी खतरा है. वहीं बीजेपी को भरोसा है कि विकास कार्यों की बहार जीत का परचम लहराने में उसके लिए मददकार साबित होगी.
कांग्रेस के लिए टेंशन ये है कि बीते कुछ सालों में यहां उसके वोट का ग्राफ तेजी से लुढ़का है. जबकि बीजेपी का ग्राफ तेजी से ऊपर गया है. रायबरेली में 2009 में कांग्रेस को 72 फीसदी वोट मिले थे. जबकि बीजेपी सिर्फ 16 फीसदी वोट हासिल कर पाई थी. वहीं 2014 में कांग्रेस के 63 फीसदी के मुकाबले बीजेपी को 21 फीसदी वोट मिले तो 2019 में कांग्रेस को 56 फीसदी वोट मिले जबकि बीजेपी 38 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही. लेकिन सोनिया गांधी जीतकर संसद जरूर पहुंच गईं लेकिन अमेठी में लगातार घटते ग्राफ के बाद राहुल को शिकस्त तक झेलनी पड़ी.
अब सबकी निगाहें 2024 के मुकाबले पर टिकी है, जहां गांधी परिवार के रेस से बाहर होने की खबरें आ रही हैं. आपको बता दें कि अमेठी और रायबरेली में पांचवें चरण में 20 मई को वोट डाले जाएंगे. आने वाले दिनों में ये साफ हो जाएगा कि यहां कांग्रेस किसे मैदान में उतारती है.
(इनपुट- लखनऊ से विवेक त्रिपाठी और दिल्ली से रवि त्रिपाठी)