DNA: वोटिंग डेटा देने में जानबूझकर देरी कर रहा है चुनाव आयोग?
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DNA: वोटिंग डेटा देने में जानबूझकर देरी कर रहा है चुनाव आयोग?

Lok Sabha Chunav: पांचवे चरण का चुनाव प्रचार शनिवार की शाम खत्म हो गया. 20 मई को 49 और सीटों का फ़ैसला हो जाएगा. यहां आप एक काल्पनिक सवाल बीच में ला सकते हैं कि परसों शाम को इन 49 सीटों पर वोटिंग परसेंट क्या होगा?

DNA: वोटिंग डेटा देने में जानबूझकर देरी कर रहा है चुनाव आयोग?

Lok Sabha Chunav: पांचवे चरण का चुनाव प्रचार शनिवार की शाम खत्म हो गया. 20 मई को 49 और सीटों का फ़ैसला हो जाएगा. यहां आप एक काल्पनिक सवाल बीच में ला सकते हैं कि परसों शाम को इन 49 सीटों पर वोटिंग परसेंट क्या होगा? उसके अगले दिन 21 मई को कितना बढ़ जाएगा? और 4-6 दिन बाद भी क्या कोई वोट फिगर आएगा?

अब सुप्रीम कोर्ट भी..

अब तक ये सवाल सिर्फ विपक्ष पूछ रहा था कि वोटिंग के अंतिम आंकड़े इतने बढ़ कैसे जा रहे हैं. अब सुप्रीम कोर्ट भी यही जानना चाहता है. एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR की एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि वोटिंग का डेटा 48 घंटे में ना दे पाने की क्या मजबूरी है? वोटिंग का डेटा उसी दिन अपलोड करने में क्या दिक्कत है? चीफ जस्टिस की बेंच ने चुनाव आयोग को 24 मई तक वक्त दिया है. वोटर टर्नआउट को लेकर ADR ने भी याचिका में वही अंदेशे रखे हैं जिन्हें विपक्ष पहले से हाईलाइट कर रहा है कि ये वोटर टर्नआउट कहीं वोटों की हेराफेरी तो नहीं है? 

आइये आपको बताते हैं कि चारों चरणों में वोटिंग वाले दिन के वोट परसेंट और बाद में आए फ़ाइनल वोट परसेंट के बीच कितना अंतर है.

- 4 चरणों की 379 सीटों पर 45 करोड़ 7 लाख लोगों ने वोट डाले हैं, जो चुनाव का 67% है.

- इन चारों चरणों में वोटिंग वाले दिन के बाद अपडेट टर्नआउट में 1 करोड़ 10 लाख वोट बढ़े हैं

- 379 सीटों का औसत निकालें तो हर सीट पर अपडेट टर्नआउट में करीब 28 हज़ार वोट बढ़े हैं

वोटर टर्नआउट पर विवाद की शुरुआत

इस चुनाव में सिर्फ़ चौथा चरण है जिसमें 2019 के चौथे राउंड के मुक़ाबले ज्यादा वोटिंग हुई है. वोटर टर्नआउट पर विवाद की शुरूआत पहले और दूसरे चरण से हुई, जब चुनाव आयोग ने 19 अप्रैल और 26 अप्रैल का अंतिम आंकड़ा 30 अप्रैल को दिया. 19 अप्रैल को 102 सीटों पर वोट पड़े थे. उसी दिन शाम 7 बजे चुनाव आयोग ने लगभग 60% मतदान बताया था. 11 दिन बाद 30 अप्रैल को 66.14% बताया. 26 अप्रैल को दूसरे चरण में 88 सीटों पर वोट पड़े थे. शाम 7 बजे चुनाव आयोग ने लगभग 60.96% मतदान बताया. 4 दिन बाद 30 अप्रैल को 66.71% बताया.

इतना अंतर क्यों..

7 मई को तीसरे चरण में 93 सीटों पर रात 8 बजे 61.45% मतदान बताया. अगले दिन 8 मई को रात 10 बजे वोटर टर्नआउट 65.68% बताया. 13 मई को चौथे चरण में 96 सीटों पर रात 11 बजे मतदान 67.25% बताया. लेकिन 4 दिन बाद 17 मई को अंतिम वोटिंग आंकड़ा 69.16% बताया. यानी पहले चरण में वोटिंग टर्नआउट 5.5%, दूसरे चरण में 5.74% ज़्यादा, तीसरे चरण में 4.23% और चौथे चरण में 1.91% मतदान वाले दिन से ज़्यादा निकला. इन 379 सीटों पर 1 करोड़ 7 लाख वोटरों के इज़ाफ़े को चारों राउंड के हिसाब से नंबरों में देखें, तो दूसरा केलकुलेशन ये है कि पहले चरण में 18 लाख, दूसरे चरण में - 32 लाख, तीसरे चरण में - 22 लाख और चौथे चरण में 33 लाख वोटर अंतिम आंकड़ों में ज़्यादा निकले.

वोटों का सबसे बड़ा अंतर आंध्र प्रदेश में

वोटों का सबसे बड़ा अंतर आंध्र प्रदेश में दिखा, जहां टर्नआउट में 17 लाख से ज़्यादा वोटर बढ़े. कांग्रेस का सवाल है कि ये वोटर टर्नआउट अंतिम परिणाम बदलने की कोशिश तो नहीं है? कांग्रेस अध्यक्ष की चिट्ठी पर चुनाव आयोग ने भी जवाब दिया था. ADR की इस याचिका को भी उसने भ्रम फैलाने की कोशिश बताया है. आयोग का कहना है कि मतदान के अंतिम आंकड़े के लिये डेटा इकट्ठा करने में समय लगता है. 2019 में भी अंतिम आंकड़ा मतदान वाले दिन के आंकड़े से अधिक था. वोटिंग के दिन के वोट आंकड़े और अंतिम आंकड़ों में बहुत अंतर नहीं है. हांलाकि चुनाव आयोग का कहना है कि 2019 में भी वोटिंग का आंकड़ा इसी तरह देर से आया था, बल्कि तब तो अभी के मुक़ाबले और ज़्यादा वक्त लगा था. 24 मई को सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई में चुनाव आयोग इसपर विस्तार से जवाब देगा.

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