Nizam Of Hyderabad: आज तो किसी भी गाने को या फिल्म के सीन को आप बटन दबा कर अपनी मर्जी से चाहे जितनी बार रिपीट कर सकते हैं. बार-बार अलग-अलग अंदाज में भी देख सकते हैं. परंतु साठ-सत्तर साल पहले ऐसा नहीं था. जब हैदराबाद के निजाम को फिल्म हातिम ताई का एक गाना पसंद आ गया था, तो उन्होंने फिल्म रुकवा-रुकवा कर 12 बार प्ले कराया...
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Mohamed Rafi Songs: एक दौर में सिनेमा आज की तरह पॉकेट में उपलब्ध नहीं था. न ही बटन दबाते ही फिल्म देखी जा सकती थी. सिनेमा एक महंगा शौक था और बहुत से लोग फिल्म देखना बुरा भी समझते थे. लेकिन उस दौर में भी फिल्में खूब देखी जाती थी और सिनेमा की दीवाने लाखों-करोड़ों की संख्या में थे. परिवार के लिए फिल्म देखना एक छोटे-मोटे उत्सव की तरह था. राजाओं-जमींदारों-सेठों के लिए फिल्मों के शो खास तौर पर आयोजित किए जाते थे. यह किस्सा ऐसे ही एक फिल्म शो का है. 1956 में निर्माता-निर्देशक होमी वाडिया की फिल्म आई थी, हातिम ताई. यह फैंटेसी फिल्म थी.
किताबें और सिनेमा
हुआ यह कि जब यह फिल्म हैदराबाद के एक सिनेमाघर में लगी तो वहां के नवाब तक इसकी जानकारी पहुंची. यह फिल्म मुस्लिम परिवेश पर आधारित थी. अरेबियन नाइट्स की कहानियों में हातिम एक बहुत बहादुर, धार्मिक और उदार व्यक्ति के रूप में सामने आते हैं. हातिम ताई की कहानियों पर हजारों किताबें लिखी गई हैं. सिनेमा की शुरुआत के बाद में अभी तक आधा दर्जन फिल्में हातिम ताई पर बन चुकी हैं. 1929 में हातिम ताई पर पहली फिल्म बनी थी. निर्देशक होमी वाडिया की 1956 की इस फिल्म में हातिम ताई एक शाप की वजह से पत्थर बन चुकी परी को बचाता है. हातिम ताई का रोल उस दौर के एक्शन हीरो जयराज ने निभाया था. जबकि परी बनी थीं, खूबसूरत एक्ट्रेस शकीला. उनका फिल्म में डबल रोल था. फिल्म में कई सारे स्पेशल इफेक्ट्स थे. जबकि संगीत का एसएन त्रिपाठी था.
परवर दिगार आलम
हैदराबाद के निजाम परिवार के साथ इस फिल्म को देखने थिएटर में गए. सब कुछ ठीक चल रहा था. तभी फिल्म में गाना बजा, परवर दिगारे आलम.... यह गाना मोहम्मद रफी ने गाया था. गाना सुनते हुए निजाम साहब भावुक हो गए. उन्हें गाना बहुत पसंद आया. गाना जयराज पर फिल्माया गया था. यह गाना वह राजा के दरबार में गा रहे होते हैं. गाना जब खत्म हुआ और फिल्म आगे बढ़ी तो निजाम साहब ने तुरंत इशारा करके थियेटर के मैनेजर को बुलावाया. मैनेजर आया तो निजाम साहब ने उससे कहा कि फिल्म रोक दें और यही गाना फिर से बजाएं. उनका आदेश टालने की हिम्मत मैनेजर में नहीं थी.
रिपीट पर रिपीट
निजाम साहब के कहने पर रील पीछे करके परवर दिगारे आलम... फिर से चलाया गया. मगर निजाम यहीं नहीं रुके और बार-बार इसी गाने को देखने की फरमाइश करते रहे. यह गाना फिल्म को रोक कर, रील पीछे करके एक-दो या चार बार नहीं बल्कि पूरे 12 बारह बार दिखाया गया. जब तक कि निजाम साहब का मन नहीं भर गया. इसके बाद वह पूरी फिल्म देख कर हॉल से बाहर निकले. देखते-देखते यह खबर पूरे हैदराबाद से लेकर देश भर में फैल गई और अखबारों ने इसे खूब बढ़ा-चढ़ा कर छापा. यह गाना आप यू-ट्यूब पर देख-सुन सकते हैं.