Bank Clerical Error: सरकारी क्लर्क की गलती की वजह से एक महिला की रिहाई का मामला अटक गया. इस ब्लंडर का पता चलने के बाद जिला मजिस्ट्रेट राकेश कुमार सिंह ने क्लर्क के निलंबन की सिफारिश की है.
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Kanpur: नौकरी में अगर आपको कोई काम नहीं आता तो कोई बुराई नहीं, लेकिन उस काम को सीखने की बजाए टालने की आदत रखना बुरी बात होती है. ऐसा करने वालों की नौकरी एक न एक दिन जरूर खतरे में पड़ जाती है. ठीक यही हुआ एक बैंक क्लर्क के साथ जिसकी गलती की वजह से एक बुजुर्ग महिला की सुधार गृह से रिहाई में दो साल की देरी हो गई. ये चौकाने वाला मामला यूपी के कानपुर का है. जहां एक क्लर्क को बांड दाखिल करना नहीं आता था. ऐसे में अपने सीनियर से पूछने के बजाए कि इस मामले में क्या करना है? उसने उन सरकारी पेपर्स को अपनी दराज में बंद करके रख दिया. यही गलती उसे भारी पड़ गई, अब जिला मजिस्ट्रेट ने उसके निलंबन की सिफारिश की है.
क्या था पूरा मामला?
दहेज हत्या के मामले में बुजुर्ग महिला सुमित्रा और उसके परिवार के सदस्यों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. उनके पति की जेल में मौत हो गई, जबकि उनका बेटा संतोष अभी जेल में ही है. इस केस में यूपी की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने नौबस्ता निवासी सुमित्रा की सजा माफी याचिका स्वीकार करते हुए साल 2022 में उनकी रिहाई का आदेश जारी किया था.
रिहाई के आदेश में बॉन्ड का जिक्र था. इस मामले में बांड दाखिल करने की प्रक्रिया से अनभिज्ञ बैंक कर्मी ने फाइल को अनुमोदन के लिए जिलाधिकारी के पास भेजने के बजाय उसे 10 महीने तक अपने पास रख लिया. यही ब्लंडर उन्हें भारी पड़ गया.
अब साफ हुआ रास्ता
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक 78 वर्षीय सुमित्रा की आजीवन कारावास की सजा में छूट के बाद यूपी सरकार से रिहाई का आदेश दिया गया था. रिहाई में देरी की बात जब कानपुर के जिला मजिस्ट्रेट राकेश कुमार सिंह तक पहुंची तब बुजुर्ग महिला की रिहाई का रास्ता साफ हो सका. उन्होंने कहा, 'क्लर्क के निलंबन की सिफारिश की गई है और महिला की रिहाई के लिए नारी निकेतन, लखनऊ को आदेश जारी कर दिया गया है.'