इस आश्रम में ली थी भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा, 64 दिन में सीखीं चौंसठ कलाएं
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इस आश्रम में ली थी भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा, 64 दिन में सीखीं चौंसठ कलाएं

Janmashtami, Shri Krishna Education: आज भी ऋषि संदीपनी के आश्रम के पास एक पत्थर पर 1 से लेकर 100 तक गिनती लिखी हुई है और ऐसा माना जाता है कि यह गिनती गुरु संदीपनी द्वारा ही लिखी गई थी. 

इस आश्रम में ली थी भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा, 64 दिन में सीखीं चौंसठ कलाएं

Janmashtami, Shri Krishna Education: तक्षशिला और नालंदा की तरह ही उज्जैन भी द्वापर युग में ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. कहा जाता है कि यहां के गुरु संदीपनी के आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, उनके भाई बलराम और मित्र सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी. आज भी उस आश्रम के पास एक पत्थर पर 1 से लेकर 100 तक गिनती लिखी हुई है और ऐसा माना जाता है कि यह गिनती गुरु संदीपनी द्वारा लिखी गई थी. श्रीमद्भागवत गीता, महाभारत और अन्य कई पुराणों में इस जगह के बारे में बताया गया है. 

चौंसठ दिन में सीखीं चौंसठ कलाएं 
ऐसा भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने के बाद मथुरा का राज्य अपने नाना उग्रसेन को सौंप दिया था. इसके बाद श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव और माता देवकी ने उन्हें यज्ञोपवीत संस्कार और शिक्षा के लिए उज्जैन में संदीपनी ऋषि के आश्रम में भेज दिया था. यहां ही कृष्ण ने चौंसठ दिन में चौंसठ कलाएं सीखीं थी और साथ ही वेद-पुराण का अध्ययन भी किया था. इसी आश्रम में श्रीकृष्ण और सुदामा की भेंट हुई, जो आगे चलकर संसार में अटूट मित्रता की मिसाल बनी. तीनों ने अन्य सहपाठियों के साथ अपनी पूरी शिक्षा गुरू संदीपनी के आश्रम में ही पूरी करी. जब श्रीकृष्ण की शिक्षा पूरी हो गई तो इसके बाद उन्होंने गुरुमाता को गुरु दक्षिणा देने की बात कही. इस पर गुरुमाता ने कृष्ण को अद्वितीय मान कर गुरु दक्षिणा में उनका पुत्र वापस मांगा, जिसकी मृत्यु प्रभास क्षेत्र में जल में डूबने से हो गई थी. श्रीकृष्ण गुरुमाता की आज्ञा का पालन करते हुए समुद्र में गए और वहां मौजूद शंखासुर नामक एक राक्षस का पेट चीरकर एक शंख निकाला, जिसे "पांचजन्य" शंख कहा जाता था. इस  शंख को लेने के बाद वे यमराज के पास गए और सांदीपनी ऋषि के पुत्र को वापस लाकर गुरुमाता को सौंप दिया.

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महर्षि संदीपनी का आश्रम शिप्रा नदी के गंगा घाट पर स्थित है. महाकालेश्वर मंदिर से इसकी दूरी करीब सात किलोमीटर है. इस जगह पर एक कुंड भी है, जिसे गोमती कुंड के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि इस कुंड में भगवान श्री कृष्ण ने गुरू संदीपनी के स्नान के लिए गोमती नदी का पानी उपलब्ध कराया था. इसलिए यह कुंड गोमती कुंड के नाम से कहलाया गया. यहां पर गुरु संदीपनी कृष्ण, बलराम और सुदामा की मूर्तियां स्थापित हैं. 

उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में भी है आश्रम
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी में भी संदीपनी मुनि का आश्रम है. यहां से पाए गए प्रमाण उज्जैन में गोमती नदी के किनारे बसे संदीपनी मुनि आश्रम से मिलते जुलते हैं. इसके अलावा ऐसे प्रमाण इंद्रप्रस्थ, हस्तिनापुर, मथुरा, अहिचछ्त्र में मौजूद हैं. कौशाम्बी में संदीपनी मुनि का यह आश्रम कोखराज थाना से दस किलोमीटर दूर जी.टी.रोड से उत्तर दिशा में गंगा के तट पर बसा हुआ है. दो एकड़ से अधिक भूमि पर बसा हुआ यह आश्रम कई प्राचीन मंदिरों से घिरा हुआ है. इन प्राचीन मंदिरों को कृष्ण धाम के नाम से जाना जाता है. द्वापर युग में भगवान कृष्ण तथा उनके सखा सुदामा ने इसी आश्रम में संदीपनी मुनि से शिक्षा ग्रहण की थी. राजा एवं रंक को समान रूप से निष्पक्ष भाव से एक समान शिक्षा देने के रूप में यह शिक्षा केंद्र अतीत से अनुपमेय बना हुआ है. विश्व में ऐसी कहीं व्यवस्था नहीं है और न ही ऐसा शिक्षण केन्द्र है, जहां अमीर-गरीब को साथ-साथ अध्ययन करने का सौभाग्य मिल सके. संदीपनी मुनि के आश्रम में रहकर कृष्ण-सुदामा न केवल गुरू से शिक्षा प्राप्त करते थे बल्कि गुरूमाता के आदेश पर गंगा पार करके जंगल से भोजन बनाने के लिए लकड़ी तोड़ कर लाने से लेकर आश्रम का सारा काम भी किया करते थे.

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