Knowledge Section: भारत में ट्रेन के डिब्बे आमतौर पर तीन रंग के होते हैं, जिसमें नीले, लाल और हरे रंग के डिब्बे देखने को मिलते हैं. डिब्बों के रंगों के अलग-अलग होने का अहम कारण है. तीनों रंग के डिब्बे अलग-अलग संकेत देते हैं.
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Knowledge Section: देश भर में लाखों लोग रोजाना ट्रेन से सफर करते हैं. यात्री ट्रेन से सफर करना बेहद पसंद करते हैं. इसका मुख्य कारण है कि इसमें सफर करना बेहद ही किफायती और सुविधाजनक होता है. बता दें भारतीय रेलवे एशिया में सबसे बड़ा और पूरी दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. भारत में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 1,15,000 किलोमीटर के करीब है, जिस पर हर दिन 12,617 पैसेंजर ट्रेनें और 7,349 मालगाड़ियां चलती हैं. इन पैसेंजर ट्रेनों में रोजाना करीब 2.3 करोड़ लोग यात्रा करते हैं. ऐसे में आपने भी कभी न कभी ट्रेन में सफर किया ही होगा. सफर के दौरान या कभी भी आपने इस बात पर गौर किया है कि क्यों ट्रेन के डिब्बों का रंग अलग-अलग क्यों होता है?
बता दें कि भारत में ट्रेन के डिब्बे आमतौर पर तीन रंग के होते हैं, जिसमें नीले, लाल और हरे रंग के डिब्बे देखने को मिलते हैं. डिब्बों के रंगों के अलग-अलग होने का अहम कारण है. तीनों रंग के डिब्बे अलग-अलग संकेत देते हैं. आइये आज हम आपको बताते हैं कि इन डिब्बों के रंग का क्या महत्व है.
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नीले रंग के डिब्बों का महत्व
आपने देखा होगा कि ज्यादातर ट्रेन के डिब्बे नीले रंग के होते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि ये कोच इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) कोच हैं. ICF कोच पारंपरिक यात्री कोच हैं, जिनका उपयोग भारत में ज्यादातर मेन लाइन ट्रेनों में किया जाता है. ऐसे कोच मेल एक्सप्रेस या सुपरफास्ट ट्रेनों में लगाए जाते हैं. इनकी रफ्तार 70 से 140 किलोमीटर प्रति घंटा के बीच होती है. ये कोच लोहे से बने होते हैं और एयर ब्रेक से लैस होते हैं.
इन कोचों का डिज़ाइन 1950 के दशक में स्विस कार एंड एलेवेटर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, श्लीरेन, स्विटजरलैंड (Swiss Car & Elevator Manufacturing Co, Schlieren, Switzerland) के सहयोग से इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, पेरम्बूर, चेन्नई, भारत द्वारा विकसित किया गया था. हालांकि, अब भारतीय रेलवे का इरादा ICF कोचों को चरणबद्ध तरीके से हटाने और उन सभी को नए LHB कोचों से बदलने का है.
क्यों होते हैं ट्रेनों में लाल रंग के डिब्बे
लाल रंग के कोच लिंक हॉफमेन बुश (LHB) के नाम से जाने जाते हैं. साल 2000 में ये कोच जर्मनी से भारत लाए गए थे. इन ट्रेनों को लिंक हॉफमेन बुश (Link Hofmann Busch) कहा जाता है क्योंकि पहले इन कोचों का निर्माण इसी कंपनी के द्वारा किया जाता था. हालांकि, अब यह पंजाब के कपूरथला में भी बनते हैं. ये डिब्बे स्टेनलेस स्टील के बने होते हैं और आंतरिक भाग एल्युमीनियम से बने होते हैं, जो पारंपरिक रेक की तुलना में इन्हें हल्का बनाते हैं. इन कोचों में डिस्क ब्रेक भी होती है. इसी कारण से ये 160 से 200 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार तक भाग सकते हैं. इन कोचों का इस्तेमाल राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों में किया जाता है, जो तेज गती से चलती हैं. भारतीय रेलवे अब सभी ट्रेनों में इन कोचों को लगाने की योजना तैयार कर रही है.
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किन ट्रेनों में होता है हरे रंग के डिब्बों का इस्तमाल
हरे रंग के डिब्बे अक्सर आपको गरीब रथ जैसी ट्रेनों में देखने को मिलेंगे. बता दें पहले नैरो-गेज पटरियों में चलने वाली ट्रेनों में हरे रंग के डिब्बों का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि, भारत में अब लगभग सभी रूट पर नैरो गेज को बंद कर दिया गया है. मीटर गेज पर कुछ ट्रेनों के डिब्बे हरे और भूरे रंग में दिखाई देते हैं.