Piyush Mishra Birthday Special: पीयूष मिश्रा का संगीत युथ के लिए मोटिवेशन है. उनके गाने और कविताएं जिंदगी की कड़वी सच्चाइयों को सामने लाने के साथ-साथ सोई उम्मीद जगाते हैं. यही वजह है कि उनका हर गीत और कविता लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाए हुए हैं.
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Piyush Mishra Famous Songs And Poems: पीयूष मिश्रा...नाम सुनते ही ख्याल आता है एक ऐसे कलाकार का, जिसने एक्टिंग, राइंटिंग, म्यूजिक और सिगिंग के जरिए कला की दुनिया को नई ऊंचाइयां दीं. ग्वालियर में जन्मे इस वर्सेटाइल एक्टर की लाइफ जर्नी काफी चैलेंजिंग और मुश्किलों भरी रही, लेकिन उनकी कविताएं और गाने लोगों खासतौर पर युवाओं के दिलों में गूंजते हैं. आज, 13 जनवरी को उनके 61वें जन्मदिन पर हम जानेंगे उनकी बेहतरीन रचनाओं के बारे में...
'ब्लैक फ्राइडे' में था उनका लिखा ये गीत
पीयूष मिश्रा को 2004 में आई फिल्म ब्लैक फ्राइडे में उनके गीत 'अरे ओ रुक जा रे बंदे' से पहचान मिली. उस समय इस गीत के बोल देश के हर नौजवान के मुंह पर चढ़ गए थे. इसके बाद पीयूष ने 'आरंभ है प्रचंड', 'एक बगल में चांद होगा' जैसे एक से बढ़कर एक गीत लिखे. आज उन्हें में लीग से हटकर गाने लिखने और बेहतरीन एक्टिंग के लिए जाना जाता है.
'आरंभ है प्रचंड' ने लिखी सफलता की नई इबारत
जब भी पीयूष मिश्रा के करियर का जिक्र होता है, तो फिल्म गुलाल का गीत 'आरंभ है प्रचंड' जरूर याद आता है. यह गीत उन्होंने न केवल लिखा, बल्कि खुद गाया और संगीतबद्ध भी किया. साल 2009 में रिलीज हुआ यह गीत आज भी युवाओं को जोश से भर देता है. इसके बोल, “आज जंग की घड़ी को तुम गुहार दो,” हर किसी को भीतर से प्रेरित करते हैं.
'इक बगल में चांद होगा' ने छुआ दिलों का कोना
गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म में पीयूष की नज्म 'इक बगल में चांद होगा, इक बगल में रोटियां' ने लोगों के दिलों को गहराई से छुआ. यह गीत नहीं, बल्कि एक भावनात्मक नज्म है, जो उनके गहरे सोच और शायरी की प्रतिभा को दर्शाती है. इस नज्म ने फिल्म को एक अलग पहचान दी और दर्शकों को भीतर तक झकझोर दिया.
'हुंकार' ने फिर से जगाया जोश
फिल्म शमशेरा में रणबीर कपूर के अभिनय के साथ पीयूष मिश्रा का लिखा गाना 'हुंकार' भी खूब चर्चा में रहा. ऋचा शर्मा, सुखविंदर सिंह और मिथून की आवाज में गाए इस गाने ने दर्शकों को काफी प्रभावित किया.
'आजा नचले' ने फिर मचाई धूम
माधुरी दीक्षित की कमबैक फिल्म आजा नचले का टाइटल ट्रैक भी पीयूष मिश्रा के लेखन का नतीजा है. सुनिधि चौहान की आवाज और माधुरी के शानदार डांस के साथ यह गाना हर उम्र के दर्शकों को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहा. इस गाने ने फिल्म के प्रचार में बड़ी भूमिका निभाई.
कविता: 'दिलों में बसे अल्फाज'
पीयूष मिश्रा न केवल गायक और अभिनेता हैं, बल्कि एक बेहतरीन कवि भी हैं. उनकी कविताएं जैसे ‘हर वक्त सोचता हूं, हर वक्त सोचता हूं’ और ‘जब शहर हमारा सो जाता है’ सुनने वालों को सोचने पर मजबूर कर देती हैं. उनकी कविताओं में जिंदगी का संघर्ष, समाज का सच और एक अलग ही गहराई नजर आती है.
युवाओं के दिलों में बसते हैं पीयूष
फिल्म 'ब्लैक फ्राइडे' का गीत
अरे रुक जा रे बंदे की कुदरत हंस पड़ेगी
अरे नींद है जख्मी, अरे सपने है भूखे, की करवट फट पड़ेगी हो
अरे रुक जा रे बंदे अरे थाम जा रे बंदे
अरे मंदिर ये चुप है, अरे मस्जिद ये गुमसुम
इबादत थक पड़ेगी हो, समय की लाल आंधी
कब्रिस्तान के रास्ते, अरे लतपत चलेगी हो
किसे काफिर कहेगा, किसे कायर कहेगा
तेरी कब तक चलेगी हो
अरे रुक जा रे बंदे की कुदरत हंस पड़ेगी हो
अरे मंदिर ये चुप है, अरे मस्जिद ये गुमसुम
इबादत ठीक पड़ेगी हो, समय की लाल आंधी
कब्रिस्तान के रास्ते, अरे लटपट चलेगी हो
अरे रुक जा रे बंदे
अर्रे नींद है जख्मी, अरे सपने है भूखे की करवट फट पड़ेगी हो
ये आंधी चोट तेरी, कभी की सुख जाति, मगर अब पाक चलेगी
फिल्म 'गुलाल' का गीत
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है,
विश्व की पुकार है ये भगवत का सार है की
युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!
कौरवों की भीड़ हो या पाण्डवों का नीर हो
जो लड़ सका है वही तो महान है !!!
जीत की हवस नहीं किसी पे कोई बस नहीं क्या
ज़िन्दगी है ठोकरों पर मार दो,
मौत अन्त हैं नहीं तो मौत से भी क्यों डरे
ये जाके आसमान में दहाड़ दो !
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार को वो घाव तुम ये सोच लो,
या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल,
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !!
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो
प्रेम गीत उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती नसों में आज फूलती रगों में
आज आग की लपट तुम बखार दो !!!
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
पीयूष मिश्रा की मशहूर 'कविता'
उन खोई रात की बाहों में
जब दर्द ठुमककर चलता है
तो मैं देखूं चुपचाप उसे
वो चीज भला है क्या कैसी...
जब लिये हाथ में लालटेन
वो हर घर में जा बसता है
तो मैं सोचूं इसकी नीयत है
आज खरी या कल जैसी...
झींगुर की बस्ती के पीछे
वो टक-टक करता लठिया को
झींगुर की बस्ती के पीछे
फिर मरघट वाले झाड़ को लांघे
कुंए पे जा टिकता है...
फिर इधर-उधर को आस-भरी
नजरों से यूं ही देख-देख
वो ऊंघ लगाता कुछ अलसाता
लिये उबासी उठता है...
जब जाऊं पीछे उसके तो
जब जाऊं पीछे उसके तो
पीछे मुड़-मुड़ के तकता है
फिर पुती राख़ के औघड़ -सा
कुछ मुंह-ही-मुंह में जपता है...
फिर धीमे-धीमे मुझ तक आकर
सधे तने कदमों से वो
यूं बीच निकल के पीछे को
इक धुत्त रीछ सा बढ़ता है...
उसकी भभकी से सराबोर
उसकी भभकी से सराबोर
मैं घर को वापस आता हूं
और ढेर पसीना चिपकाए बस
बैठा सा रह जाता हूं...
फिर चैन नहीं पड़ता मुझको मैं
उठकर फिर से खिड़की को
बस खोल अंधेरे को नजरों से
चीर फाड़कर जाता हूं...