यता सत्यनारायण की फिल्म Razakar रिलीज हो गई है. अगर आप इसे थियेटर में देखने जा रहे हैं तो एक बार रिव्यू जरूर पढ़ लीजिए.
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निर्देशक: यता सत्यनारायण
स्टार कास्ट: राज अर्जुन, तेज सप्रू, मकरंद देशपांडे, बॉबी सिम्हा, अनुश्रिया त्रिपाठी, वेदिका, अनुसुइया भारद्वाज, प्रेरणा, थलस्वल विजय, चंदू नाथ नायर आदि
कहां देख सकते हैं: थियेटर में
स्टार रेटिंग: 3.5
Razakar Movie Review: ये भारत की कई पीढ़ियों की समस्या रही है कि उनको सरकारों ने इतिहास की वीभत्स सच्चाइयां बताने से परहेज किया. जिसका नतीजा ये हुआ कि जब छुपी हुई सच्चाइयां सामने आने लगीं तो ना तो हिंदुओं की नई पीढ़ियों को उन पर आसानी से भरोसा हुआ और मुस्लिमों को तो ये अपने खिलाफ झूठा प्रोपगैंडा लगा. ‘कश्मीर फाइल्स’ की सारी कहानियां जगमोहन जैसे चश्मदीदों की किताबों, उस दौरान के अखबारों और रिपोर्ट्स में ना जाने कब से दर्ज थीं, लेकिन लोगों ने उसे प्रोपेगैंडा बताया और अब यही ‘रजाकार: द साइलेंट जीनोसाइड ऑफ हैदराबाद’ के साथ हो रहा है.
आज की पीढ़ी को ये कहा जाए कि जब ताजमहल बन रहा तो तब आधे से ज्यादा भारत अकाल से जूझ रहा था और शाहजहां ने ये पैसे उनपर खर्च करने के बजाय ताजमहल पर ख्रर्चे तो वो मानेगी नहीं? ये भी नहीं मानेगी कि शाहजहां ने एक ब्राह्मण को सनातन की तारीफ करने पर जिंदा जलवा दिया था. चांदनी चौक बसाने वाले औरंगजेब की बहन जहांआरा ने मथुरा से श्रीकृष्ण की मूर्ति आगरा की मोती मस्जिद की सीढ़ियों पर जड़वा दी थी, लेकिन करीना कपूर ‘तख्त’ में उसका रोल करने जा रही थीं. हम जोधा अकबर बनाते हैं, लेकिन चित्तौड़ किले में उसका कत्ले आम और फतहनामा छुपाते हैं. इसी तरह रजाकारों के बारे में एक दो लाइन में इतिहास खत्म कर देते हैं, आलम ये था कि मूवी रिव्यू करने वाले 90 प्रतिशत समीक्षकों ने कभी पहले कासिम रिजवी का नाम तक नहीं सुना था. ये मूवी वही छुपा हुआ वीभत्स सच दिखाती है, जो हिंदुओं ही नहीं मुस्लिमों को भी देखना चाहिए ताकि जान सकें कि बीजेपी जैसी पार्टियों को इतना जनसमर्थन क्यों मिलता है?
हैदराबाद रियासत की कहानी
कहानी है आजादी के बाद भी भारत में शामिल ना होने वाली उस हैदराबाद रियासत की, जो कोहिनूर जैसे विश्व प्रसिद्ध हीरों की खानें निकालने वाली गोलकुंडा खानों की काकतीय राजाओं की दौलत के चलते काफी अमीर थी, उस वक्त उस पर शासन था निजाम मीर अली उस्मान (मकरंद देशपांडे). निजाम चाहता था कि हैदराबाद रियासत एक अलग देश तुर्किस्तान बने, भारत से उसने एक साल का यथा स्थित समझौता कर लिया यानी स्टेंड स्टिल एग्रीमेंट. जाहिर है नेहरूजी कश्मीर की तरह यहां भी ढुल मुल रवैया अपना रहे थे. लेकिन यही 1 साल हैदराबाद रियासत की 85 फीसदी हिंदू आबादी पर भारी पड़ा. निजाम के सेनापति कासिम रिजवी (राज अर्जुन) ने एक बड़ी रजाकारों की सेना बना ली और धर्म परिवर्तन का मानो जेहाद ही छेड़ दिया.
राज्य में कोई पोर्ट नहीं था तो गोवा पुर्तगालियों से खरीदने की तैयारी कर ली, पाकिस्तान से सैन्य मदद के लिए 20 करोड़ रुपए भिजवा दिए गए, बहुत सारी दौलत लंदन आदि के बैंकों में जमा कर दी गई. साथ ही हैदराबाद राज्य में विद्रोह को दबाने के लिए बड़े पैमाने पर रजाकारों की भर्तियां शुरू हो गईं. हालांकि मूवी में दिखाया नहीं गया कि कैसे रिजवी अपनी सारी प्रॉपर्टी अपनी पार्टी मजलि ए इत्तिहादुल मुसलमीन को दान करके लोगों का दिल जीत लेता है और फिर अपनी निजी सेना रजाकार सेना खड़ी करता है. ये भी नहीं बताया गया कि कैसे वो अपनी पार्टी को बाद में पाकिस्तान जाने से पहले ओवैसी के दादा को दे जाता है और वही पार्टी आज AIMIM है.
सरदार पटेल (तेज सप्रू) को हैदराबाद में हो रहे अत्याचारों की खबरें मिल रही थीं, लेकिन नेहरूजी के चलते वो और के एन मुंशी मन मसोस कर रह जाते थे. इधर कासिम रिजवी ने हैदराबादी हिंदुओं पर कहर बरपा दिया. उस कहर के खिलाफ अलग अलग जगहों पर कुछ स्थानीय युवा उठे, उन सभी गुमनाम नायकों को निर्देशक यता सत्यनारायण ने बड़ी ही मेहनत के साथ इस मूवी के जरिए सम्मान दिलाया है और साथ ही एक एक सीन को आइकोनिक बनाने की कोशिश साफ दिखती है. एक एक किरदार को काफी सोच विचारकर चुना गया लगता है, एक एक सीन को एक एक सेट को करीने से प्लान किया गया है. स्पेशल इफैक्ट्स, सैट डिजाइनिंग, सिनमेटोग्राफी, एडीटिंग, म्यूजिक और शानदार डायरेक्शन इस मूवी को कश्मीर फाइल्स के मुकाबले कई गुना ऊपर ले जाते हैं. प्रोडक्शन का शानदार नमूना है ये मूवी और इसके लिए प्रोडयूसर गुदूर नारायणा रेड्डी की तारीफ करनी होगी, जिन्होंने खुली छूट निर्देशक को दी है. ऑपरेशन पोलो होने तक एक एक घटना को इस मूवी में पिरोया गया है.
हिंदुओं पर अत्याचार की इंतेहा की एक एक घटना को रिसर्च के साथ इस मूवी में शामिल किया गया है, चाहे वो मुस्लिम पत्रकार के हाथ काटकर हत्या करना हो या फिर बच्चों को गड़्ढे में छुपे बच्चों को पत्थरों से मारने की घटना हो, नंगी औरतों को फूस के घेरे में जलाकर मार देने की घटना हो या फिर ब्राह्मण परिवार को जलाकर मार देने
राज अर्जुन ने किया कमाल
फिल्म चूंकि ऐसे विषय पर थी कि बड़े कलाकारों ने फिल्म में काम करने से मना कर दिया, वरना फिल्म और भी चर्चा में आती. बावजूद इसके राज अर्जुन ने मुख्य खलनायक कासिम रिजवी के रोल में कमाल कर दिया है, ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ के बाद हालिया फिल्म ‘धारा 370’ में खाबर के रोल में आपने उनको देखा था. लेकिन कासिम रिजवी के रोल में वो कई पायदान ऊपर चले गए हैं, आपको ऐसी खूंखारी गब्बर सिंह, डॉक्टर डैंग और शाकाल के किरदारों में दिखाई दी थी. तेज सप्रू खलनायकी चोला उतार कर सरदार पटेल के रोल में आए हैं, और हिस्से में कम डायलॉग होते हुए भी बेहतरीन लगे हैं तो वहीं हमेशा की तरह मकरंद देशपांडे निजाम के रोल में पूरी तरह फिट हो गए हैं. अनुश्रिया त्रिपाठी की संवाद अदायगी सभी के नोटिस में आती है.
लेकिन तारीफ करनी होगी साउथ के उस सभी कलाकारों की जो कासिम रिजवी के अत्याचारों के खिलाफ विद्रोहियों के तौर पर रोल कर रहे थे, छोटे छोटे रोल में उन्होंने फिल्म के सेकंड हाफ को इतना जबदरस्त बना दिया कि आपको मूवी परदे से ना आंख हटाने देगी और ना पलक झपकने. कई सीन आइकोनिक ही रच दिए गए हैं. वेदिका, अनुसूया, प्रेमा, बॉबी सिम्हा, तारक पोनप्पा के छोटे छोटे रोल पूरी फिल्म पर भारी पड़ गए हैं.
बिना म्यूजिक की चर्चा के भी समीक्षा अधूरी है, कैलाश खेर की आवाज में जिंदा है तू.. गीत उसी तरह इमोशनल करता है, जैसे बाहुबली में स्वामी देना साथ हमारा, भारती भारती वाले गीत में भी काफी एनर्जी है और वंदेमातरम वाले में भी. इसके लिए संगीतकार भीम्स सेसिरोलियो की तारीफ करनी होगी. हिंदी में ये मूवी 26 अप्रैल को रिलीज होगी, लेकिन 15 मार्च को ही तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज हो चुकी है.
इतिहास की दी गई जानकारी
हालांकि जो लोग इतिहास नहीं जानते उनके लिए मूवी में बैकग्राउंडर के तौर पर शुरूआत में बतौर सूत्रधार महेश मांजरेकर की आवाज में निजाम और हैदराबाद का इतिहास बताया गया है, लेकिन कासिम की राजनीतिक गतिविधियां और ऊपर चढ़ने व बाद में कैसे वो पाकिस्तान चला जाता है, वो सब नहीं दिखाया गया है. लेकिन ये भी सच है कि भारत की 99 फीसदी जनता देश के इतने बड़े खलनायक को जानती भी नहीं क्योंकि ये सब छुपाया गया और ये मूवी देखकर आपको लगेगा कि आपको पहले ही उसके बारे में जानना चाहिए था. मूवी देखते वक्त दर्शकों को उस वक्त की हैदराबाद रियासत के क्षेत्रफल के बारे में भी पता होना चाहिए, जो आज के साउथ के कई राज्यों को मिलाकर थी.
इस मूवी को साउथ की ‘कश्मीर फाइल्स’ बताया जा रहा है. हालांकि प्रोडक्शन के स्तर पर ये मूवी उससे काफी बेहतरीन है, दूसरे कश्मीर फाइल्स में तो सीन थे कि कैसे पड़ोसी की नजर भी आपके खाली पड़े मकान पर है या आपके बारे में आतंकियों को सूचनाएं दे रहे हैं, लेकिन रजाकार में आपको ऐसे मुसलमान भी दिखेंगे जो इस नरसंहार का धीमा ही सही विरोध तो करते हैं.