Delhi News: आतिशी के सामने पहली बड़ी चुनौती तो वही होगी जो चुनौती केजरीवाल के सामने बनी रही. पिछले लंबे समय से दिल्ली के सीएम और उपराज्यपाल के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रही. इनमें प्रशासनिक अधिकारों की सीमाएं और राजनीतिक असहमतियां मुख्य कारण हैं.
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Atishi As Delhi CM: आखिरकार दिल्ली को एक नया सीएम मिल गया है. इस बार की सीएम हैं मैडम चीफ मिनिस्टर आतिशी. असल में आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी ने शनिवार को दिल्ली की आठवीं मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण की. आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री हैं. राजनिवास में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आतिशी को शपथ दिलाई. एलजी ने आतिशी के अलावा पांच मंत्रियों सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, कैलाश गहलोत, इमरान हुसैन और मुकेश अहलावत को मंत्री पद की शपथ दिलाई. अब सवाल यह है कि CM नई लेकिन LG वही, सरकार वही, ऐसे में दिल्ली में कितना कुछ बदल जाएगा.
यह बात सही है कि आतिशी की सरकार कुछ ही महीनों की मेहमान है क्योंकि चुनाव बाद फिर सरकार बदल जाएगी. इसका ऐलान खुद आतिशी ने ही किया है. इधर आतिशी के सामने जो पहली बड़ी चुनौती तो वही होगी, जो चुनौती केजरीवाल के सामने बनी रही. पिछले लंबे समय से दिल्ली के सीएम और उपराज्यपाल के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रही. तो आतिशी के सीएम बनने से क्या दिल्ली की तकदीर बदल जाएगी, ये बड़ा सवाल होगा.
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सीएम केजरीवाल और एलजी के बीच लगातार टकराव की खबरें सामने आती रही हैं. यह बात भी सही है कि आतिशी बहुत ही नजदीक से दिल्ली के प्राशसनिक मामलों को देखती आई हैं लेकिन अब उनके सामने नई चुनौती है. वैसे भी केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच लगातार तकरार की प्रमुख वजहें राज्य के अधिकारों और संवैधानिक जिम्मेदारियों के विभाजन से जुड़ी हुई थीं. क्या आगे भी वही होने वाला है, इस पर सभी की निगाहें होंगी.
दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका विशेष दर्जा है, और इसके प्रशासन में मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल दोनों की भूमिकाएं महत्वपूर्ण हैं. लेकिन इनकी शक्तियों को लेकर कई बार संघर्ष की स्थिति बनती रहती है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.
आतिशी सरकार के पास भी अब पहले की ही तरह कई विभागों पर अधिकार रहेंगे, लेकिन पुलिस, जमीन, और लोक सेवा आयोग जैसे महत्वपूर्ण विभाग केंद्र सरकार के अधीन आते हैं, जिनका प्रशासन उपराज्यपाल वीके सक्सेना के माध्यम से होता आया है. अक्सर, केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच इन क्षेत्रों पर अधिकारों और फैसलों को लेकर मतभेद बना रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल चाहते थे कि इन मुद्दों पर उनका भी नियंत्रण हो. जबकि नियम के मुताबिक ऐसा नहीं हो सकता था.
दूसरी तरफ यह बात भी सही है कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना केंद्र की बीजेपी सरकार के प्रतिनिधि हैं और कई मामलों में उनकी भूमिका निर्णायक होती है. कई बार उपराज्यपाल, केंद्र सरकार के निर्देशों के तहत काम करते हैं, जिससे राज्य सरकार की स्वायत्तता पर सवाल खड़े होते रहे हैं. वैसे भी संवैधानिक रूप से, उपराज्यपाल के पास विशेष शक्तियां होती हैं, खासकर प्रशासनिक फैसलों पर अंतिम मुहर लगाने की. इस वजह से सीएम और एलजी के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रही है. शायद इसलिए बीजेपी लोगों से दिल्ली में और केंद्र भी एक जैसी सरकार बनाने की बात करती रही है.
अगर केजरीवाल सरकार पर नजर दौड़ाएं तो इसा कई बार हुआ कि केजरीवाल सरकार को कई फैसलों के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी की जरूरत रही, जैसे कि कुछ कानून लागू करना, फंड्स का आवंटन, या नियुक्तियों के मुद्दे. इस प्रक्रिया में देरी या असहमति की वजह से बार-बार प्रशासनिक बाधाएं उत्पन्न होती रहीं, जिससे केजरीवाल और वीके सक्सेना के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी सामने आए. इन्हीं कारणों की वजह से केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच अक्सर टकराव की स्थिति बनी रही. अब आतिशी पर निगाहें रहेंगी कि क्या वे ऐसी स्थिति बदल पाएंगी.