Bihar Politics: ‘कमंडल’ के साथ ‘मंडल’ का डबल डोज, पीएम मोदी ने बिहार में कैसे लालू को लपेटा-नीतीश को लुभाया
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Bihar Politics: ‘कमंडल’ के साथ ‘मंडल’ का डबल डोज, पीएम मोदी ने बिहार में कैसे लालू को लपेटा-नीतीश को लुभाया

Karpoori Thakur Bharat Ratna: समाजवादी नेता जननायक कर्पूरी ठाकुर की जन्मशताब्दी पर भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबको चौंका दिया. अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के अगले दिन इस कदम को लोकसभा चुनाव 2024 के लिहाज से 'कमंडल' और 'मंडल' डबल डोज बताया जा रहा है.

Bihar Politics: ‘कमंडल’ के साथ ‘मंडल’ का डबल डोज, पीएम मोदी ने बिहार में कैसे लालू को लपेटा-नीतीश को लुभाया

Loksabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अयोध्या में भव्य राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) के उद्घाटन के अगले दिन ही बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न (Karpoori Thakur Bharat Ratna) से सम्मानित करने का निर्णय ने सबका ध्यान खींचा है. जननायक कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर मोदी की जयंती के सौ साल पूरा होने के एक दिन पहले मोदी सरकार के इस फैसले को बिहार में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों का जवाब माना जा रहा है.

लालू-नीतीश की जातीय जगनणना और आरक्षण बढ़ाने के नहले पर मोदी सरकार का दहला

बिहार में लोकसभा के चुनाव से पहले महागठबंधन सरकार ने पहले जातिवार जगनणना (Cast Census) और बाद में आरक्षण (Reservation) के दायरे को बढ़ाकर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और एनडीए के राम मंदिर वाले दांव की काट बताया था. वहीं, मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड (JDU) प्रमुख सीएम नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरू कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला कर विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन को परेशानी में डाल दिया है.

राष्ट्रवाद के साथ समाजवाद का कॉम्बिनेशन, बिहार में इंडिया गठबंधन को भाजपा का जवाब

राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पीएम मोदी के इस बड़े फैसले को लोकसभा चुनाव 2024 में खासकर बिहार के लिए 'कमंडल' के साथ 'मंडल' यानी राष्ट्रवाद के साथ समाजवाद का कॉम्बिनेशन माना जा रहा है. बिहार की राजनीति में कई दशकों से माय, लवकुश, चूड़ा-दही, पंचफोड़ना, खीर, खिचड़ी, अगड़ा पिछड़ा जैसे जातीय समीकरणों के बीच ही चुनावी रणनीति बनती और बिगड़ती रही है. जाति के मकड़जाल में उलझी बिहार की राजनीति में अब मोदी सरकार ने बड़ा कदम बढ़ा दिया है.

हिंदी भाषी राज्यों में बिहार इकलौता, जहां अब तक अकेले सरकार नहीं बना सकी भाजपा

एनडीए से नीतीश कुमार के अलग होने के बाद से बिहार में भारतीय जनता पार्टी लगातार बड़ी ताकत बनने की कोशिश में लगी है. हिंदी भाषी राज्यों में बिहार ऐसा अकेला राज्य है जहां भाजपा कभी खुद के दम पर सरकार नहीं बना सकी है. भाजपा आलाकमान को यह भी पता है कि जाति की राजनीति में फंसे बिहार में सिर्फ हिंदुत्व या राष्ट्रवाद के नाम पर वह सबसे बड़ी ताकत नहीं बन सकती. इसलिए राष्ट्रवाद के साथ समाजवाद का तड़का यानी कमंडल के साथ मंडल का कॉम्बो पैक भी देना ही पड़ेगा. राम मंदिर के बावजूद भाजपा को बिहार की राजनीति में जातीय एंगल को नजरअंदाज करने से बचना होगा.

बिहार में किंगमेकर ही नहीं, अब किंग बनना चाहती है भाजपा, कर रही कई जतन

लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के लिए भाजपा को बिहार में भी फतह हासिल करना होगा. बिहार में राजद के मुस्लिम-यादव समीकरण और जदयू के अगड़े-पिछड़े-अतिपिछड़े समीकरणों को जवाब देने के लिए भाजपा ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया. इसके पहले तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री बनवाया था. नित्यानंद राय को केंद्र में बड़ी हैसियत दी. यादव महासभा जैसे आयोजन किए. इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिकरत की. फिर भी बड़ी जीत को लेकर भाजपा नेताओं की शंका बनी हुई है. बिहार में भाजपा कई बार किंगमेकर बनी है, अब वह किंग बनना चाहती है. इससे पहले लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार की अधिकतर सीटों को जीतना बड़ी चुनौती है.

लालू और नीतीश के सियासी गुरु और गार्जियन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न का फैसला

भाजपा के भव्य राम मंदिर निर्माण के हिंदुत्व कार्ड के मुकाबले के लिए बिहार में लालू-नीतीश ने जाति का ट्रंप कार्ड निकाला. महागठबंधन सरकार ने जाति जनगणना के आंकड़े जारी किए और विधानसभा में प्रस्ताव पास कर दलित-पिछड़ों के लिए आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया. ऐसे में नीतीश कुमार को लुभाने और लालू यादव को लपेटने के लिए मोदी सरकार ने अब बड़ा कदम चलते हुए उन दोनों ही नेताओं के सियासी गुरु और गार्जियन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला कर लिया. लालू और नीतीश दोनों ही लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे. 

जन्मशताब्दी पर कर्पूरी ठाकुर को याद करते हुए पीएम मोदी ने लिखा इमोशनल लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत रत्न सम्मान की घोषणा के बाद कर्पूरी ठाकुर को याद करते हुए लिखा है कि मुझे इस बात की बहुत प्रसन्नता हो रही है कि भारत सरकार ने समाजिक न्याय के पुरोधा महान जननायक कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न से सम्मानित करने का निर्णय लिया है. उनकी जन्म-शताब्दी के अवसर पर यह निर्णय देशवासियों को गौरवान्वित करने वाला है. पिछड़ों और वंचितों के उत्थान के लिए कर्पूरी ठाकुर जी की अटूट प्रतिबद्धता और दूरदर्शी नेतृत्व ने भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर अमिट छाप छोड़ी है. यह भारत रत्न न केवल उनके अतुलनीय योगदान का विनम्र सम्मान है, बल्कि इससे समाज में समरसता को और बढ़ावा मिलेगा.

नीतीश के अलग होने के बाद पीएम मोदी के पहले बिहार दौरे के लिए बना सियासी माहौल

जानकारी के मुताबिक पीएम मोदी जल्द ही बिहार के दौरे पर जाने वाले हैं. एनडीए से नीतीश कुमार के अलग होने के बाद पीएम मोदी का बिहार में यह संभवत: पहला दौरा हो सकता है. उनके बिहार दोरे से पहले सियासी माहौल तैयार कर दी गई है. क्योंकि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के मोदी सरकार के फैसले से नीतीश कुमार काफी खुश हो गए. पीएम मोदी को धन्यवाद देने के लिए उन्होंने अपना पहला ट्वीट डिलीट कर दोबारा ट्वीट किया. बिहार में नीतीश कुमार की राजनीति पूरी तरह से कर्पूरी ठाकुर के नक्शेकदम पर है. कर्पूरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर नीतीश की पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं. पीएम मोदी ने उनसे फोन पर बात भी की है.

बिहार में पिछड़ा, अतिपिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा जातियों को कर्पूरी ठाकुर ने दिया आरक्षण

कर्पूरी ठाकुर को बिहार में पिछड़ा और अतिपिछड़ा समेत अनुसूचित जातियों के लिए मसीहा बताया जाता है. देश में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होने से पहले ही कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में ओबीसी समुदाय को आरक्षण देने का कदम उठाया था. उन्होंने आरक्षण को पिछड़ा, अतिपछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग तीन कैटेगिरी में रखा था. उनकी समाजवादी विरासत पर ही लालू प्रसाद यादव ने माय समीकरण बनाकर लंबे समय तक बिहार में राज किया. वहीं नीतीश कुमार पिछड़ा-अतिपिछड़ा के सहारे दो दशक स बिहार में सत्ता का चेहरा बने हुए हैं. बिहार में कांग्रेस के बाद भाजपा को अगड़े या सवर्ण वोटों की पार्टी बताया जाता है. 

बिहार में जातिगत जनगणना के सरकारी आंकड़े क्या कहते हैं, अतिपिछड़े वर्ग पर सबकी नजर

बिहार में जातिगत जनगणना के सरकारी आंकड़े के मुताबिक 63 फीसदी ओबीसी हैं. इसमें 27 फीसदी पिछड़ा वर्ग और 36 फीसदी अति पिछड़ी जातियां हैं. दलित 19.65 फीसदी और आदिवासी 1.68 फीसदी हैं. वहीं, सवर्ण जातियां 15.65 फीसदी हैं. इस लिहाज से बिहार की राजनीतिक में सबसे अहम भूमिका अति पिछड़ी जातियों की है. बिहार में करीब 114 जातियों वाले अति पिछड़े वर्ग को सत्ता की चाबी माना जा रहा है. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के माने जाने वाले इस वोट बैंक पर राजद और भाजपा तक की नजर है. बिहार में अभी तक अतिपिछड़े वर्ग का 85 फीसदी से ज्यादा वोट एनडीए के पास जाता रहा है. नीतीश कुमार के अलग होने के बाद भाजपा के लिए इसे वापस हासिल कर चुनौती बन गई है.

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