फिर से 1 फरवरी आ गया, एक बार फिर से केंद्र सरकार बजट पेश करने वाली है. एक बार फिर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सरकार का बहीखाता देश के सामने रखेंगी. 6 महीने में बनकर तैयार हुआ बजट देश के सामने आने वाला है.
Trending Photos
Budget 2025: फिर से 1 फरवरी आ गया, एक बार फिर से केंद्र सरकार बजट पेश करने वाली है. एक बार फिर से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सरकार का बहीखाता देश के सामने रखेंगी. 6 महीने में बनकर तैयार हुआ बजट देश के सामने आने वाला है. सरकार के खर्चे से लेकर कमाई कर का पूरा हिसाब-किताब होगा, लेकिन कई बार लोग इस बजट के समझ नहीं पाते हैं. आइए इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं.आपके घर के बजट से देश के बजट को समझने की कोशिश करते हैं. किस विभाग को बजट में कितनी रकम मिलेगी, इसके पीछे कौन सा लॉजिक होता है इसे समझने की कोशिश करते हैं. बजट के लिए सरकार के पास कहां से पैसा आता है और कहां जता जाता है ? ये तमाम बातें समझते हैं.
आपके घर जैसा ही होता है देश का बजट
जिस तरह से आप अपने घर के लिए बजट बनाते हैं उसी तरह से सरकार भी देश के लिए बजट तैयार करती है. अंतर बस इतना होता है कि आप अपने घर के बजट में महीने भर की आमदनी और खर्चों का हिसाब-किताब रखते हैं, लेकिन सरकार बजट में सालभर के आमदनी और खर्चों का हिसाब रखती है. जैसे आप घर में तय करते हैं कि कहां से पैसा आएगा और कहां आप उसे खर्च करेंगे, ठीक उसी तरह से सरकार भी पूरे साल के आमदनी और खर्च का लेखा-जोखा करती है. सरकार अपनी सालाना जमा और खर्च का पूरा ब्यौरा बजट के जरिए संसद के सामने पेश करती है. बजट बनाने के लिए सरकार को अपनी दो जेबों का सबसे ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है. उसकी दोनों जेबों में कितना पैसा आएगा, कैसे आएजा और कहां जाएंगे इसका पूरा लेखा-जोखा वो बजट में रखती हैं. सरकार की पहली जेब रेवेन्यू और दूसरी कैपिटल है. रेवेन्यू यानी बार-बार दोने वाली कमाई या खर्च और कैपिटल मतलब कभी कभार होने वाली कमाई और खर्च.
कमाई-खर्च का हिसाब-किताब
बिजली बिल, मोबाइल बिल जैसे बार-बार होने वाले खर्च को आप हमेशा कोशिश करते हैं कि वो कम से कम हो, उसी तरह सरकार भी यहीं कोशिश करती है, वहीं खर्च से ठीक उलट बार-बार होने वाली कमाई ज्यादा से ज्यादा हो यही आप की भी कोशिश होती है और सरकार की भी. यानी अगर सैलरी मंथली आने के बजाए हर हफ्ते आने लगे तो कितना अच्छा होगा. उसी तरह सरकार की भी कोशिश होती है कि रिपीट इनकम यानी रेव्यू जितना ज्यादा हो वो उतना अच्छा. सरकार का रेवेन्यू टैक्स आदि से बार-बार आने वाली कमाई जितनी अधिक हो उतना अच्छा, लेकिन वहीं सैलरी, पेंशन आदि में जाने वाले रेवेन्यू खर्च जितने कम हो उतना बेहतर. जैसे कैपिटल एक्सपेंस, जो आप कभी-कभार करते हैं ( जैसे फ्लैट और प्लॉट खरीदना) उसे बढ़ाकर आप लॉग टर्म गेन करते हैं, ठीक हमारी तरह ही सरकार भी कैपिटल खर्च ( जैसे हाईवे, एयरपोर्ट आदि) , जो बाद में चलकर कमाई का अच्छा सोर्स बनेंगे उनपर ज्यादा से ज्यादा खर्च करती है . सरकार भले ही कैपिटल खर्च को बढ़ाती है, लेकिन कैपिटल इनकम पर वो कम निर्भर रहना चाहती है. बजट के जरिए सरकार रेवेव्यू खर्च और कैपिटल खर्च के बीच बैलेंस बनाती है.
संसद में ही क्यों पेश होता है बजट
जिस तरह से आप अपने घर में इनकम के अवलग-अलग सोर्स को एक अकाउंट में जमा करते हैं , उसी तरह से सरकार भी टैक्स, राजस्व, कर्ज समेत अलग-अलग कमाई के सोर्स को एक साझा कोष यानी 'कंसोलिडेटेड फंड्स' में रखती है. जैसे ज्वाइंट अकाउंट से खर्च के लिए एक रुपया भी निकालने के लिए अकाउंट से सभी मालिकों की इजाजत लगती है, उसी तरह से देश के संचित निधि या 'कंसोलिडेटेड फंड्स' के लिए पैसा निकालने के लिए लोकसभा की मंजूरी जरूरी होती है. चूंकि वो पैसा जनता का है और लोकसभा में जनता के चुने प्रतिनिधि होते हैं इसलिए संसद को लोकसभा में ही पेश किया जाता है.
कैसे बनता है बजट
बजट बनने में 6 महीने का वक्त लगता है. सितंबर में मंत्रालयों, विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सर्कुलर जारी कर उन्हें अगले एक साल के लिए जरूरी फंड का डेटा देने को कहा जाता है. बता दें कि इसी डेटा के आधार पर मंत्रालयों, राज्यों और विभागों को बजट का आवंटन किया जाता है. वित्त मंत्रालय दूसरे मंत्रालयों-विभागों के साथ मिलकर तय करते हैं कि किस मंत्रालय या विभाग को कितना फंड दिया जाए. बजट बनाने वाली टीम को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और नीति आयोग के इनपुट लगातार मिलते रहते हैं. इसे बनाने के लिए इंडस्ट्री, ऑर्गनाइजेशन और इंडस्ट्री के जानकारों से वित्त मंत्री कई दौर की चर्चा करती हैं.
किसे, कितनी रकम, कैसे तय होता है
हर विभाग की कोशिश होती है कि उन्हें अधित से अधिक फंड मिले, ताकि वो ज्यादा खर्च कर पाएं, लेकिन वित्त मंत्रालय और बजट टीम तय करती है कि किस विभाग को कितनी रकम का आवंटन होगा.