Swadeshi Movement: स्वदेशी आंदोलन से राष्ट्रीय हथकरघा दिवस तक का सफर...कैसे एक फैसले ने तोड़ी अंग्रेजी हुकूमत की कमर.
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Narendra Modi and National Handloom Day: 7 अगस्त की तारीख भारत के इतिहास में काफी मायने रखती है. आज ही के दिन 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था. जिसने भारत के स्वदेशी उद्योगों और खासकर हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित करने का काम किया. इस दिन के महत्व को लेकर देश में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त 2015 को देश में नेशनल हैंडलूम डे यानी राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की घोषणा की थी. इसे मनाने का उद्देश्य हथकरघा-बुनाई समुदाय का सम्मान करना और स्वदेशी आंदोलन के महत्व को बताना है.
स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत
भारत में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की जड़ें स्वदेशी आंदोलन से जुड़ी हुई हैं. 7 अगस्त, 1905 को भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया. इस स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल के विभाजन के निर्णय के बाद हुई, क्योंकि भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन ने धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन करने का फैसला किया. बंगाल का पश्चिमी हिस्सा मुख्य रूप से हिंदू बहुल आबादी वाला था और पूर्वी हिस्सा मुस्लिम बहुल था. ब्रिटिश सरकार की फूट डालो और राज करो नीति के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन ने जन्म लिया.
बंगाल के विभाजन का देशभर में विरोध हुआ और 7 अगस्त 1905 को कलकत्ता (कोलकाता) के टाउनहॉल में आयोजित एक जनसभा में स्वदेशी आंदोलन का ऐलान किया गया. इस जनसभा में लाखों लोगों ने शिरकत की और इस दौरान बहिष्कार प्रस्ताव पास किया गया. जिसमें विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की गई.
अंग्रेजों के खिलाफ हथियार
हथकरघा ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया. इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीय उत्पादों को बढ़ावा देना और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना था. स्वदेशी आंदोलन ने न सिर्फ स्वदेशी उद्योगों और विशेष रूप से हथकरघा बुनकरों को प्रोत्साहित किया. बल्कि ब्रिटिश सरकार को बड़ा झटका भी दिया.
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स्वदेशी आंदोलन के दौरान देशभर में विदेशी कपड़े जलाए जाने लगे. इसका असर विदेशी वस्तुओं पर पड़ा और देखते ही देखते भारत में विदेशी वस्तुओं की बिक्री कम हो गई. इस दौरान लोगों ने स्वदेशी सामान को अपनाना शुरू कर दिया.
दरअसल, हथकरघा क्षेत्र भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. भारत का हथकरघा क्षेत्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 35 लाख लोगों को रोजगार देता है, जो देश में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरे स्थान पर है.
हथकरघा बुनाई की कला में पारंपरिक मूल्य से जुड़े हुए हैं. बनारसी, जामदानी, बालूचरी, मधुबनी, कोसा, इक्कत, पटोला, टसर सिल्क, महेश्वरी, मोइरंग फी, बालूचरी, फुलकारी, लहरिया, खंडुआ और तंगालिया जैसे हाथों से बनाए गए प्रोडक्ट को दुनियाभर में पसंद किया जाता है.
(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस)