Education Power UGC: यूजीसी ने हाल ही में मसौदा नियम 2025 जारी किए हैं. पदों पर अब शिक्षाविदों के अलावा उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के व्यक्तियों को भी नियुक्ति की संभावना है. पहले शिक्षाविद ही नियुक्त किए जाते थे. इन सबके बीच टकराहट किस बात की है, इसे समझ लेना जरूरी है.
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UGC draft rules 2025: पिछले लंबे समय से एजुकेशन पॉलिसीज को लेकर कई तरह की बहसें सामने आई हैं. ऐसे में जब यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन UGC के 2025 के मसौदा नियम सामने आए हैं तो इस पर बहस लाजिमी है. यह मुद्दा राजनीतिक और शैक्षिक दोनों ही दृष्टिकोण से चर्चा का विषय बन गया. इन नियमों के तहत राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों Vice-Chancellors की नियुक्ति में चांसलर को अधिक शक्तियां दी जाएंगी. यह कदम राज्यों के अधिकार और संघवाद पर सवाल खड़े कर रहा है. इसका एक प्रमुख कारण है कि चांसलर अक्सर राज्यपाल होते हैं. राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं. शायद यही कारण है कि राज्य सरकारें आंख दिखा रही हैं. इसका प्रभाव क्या पड़ने वाला है इसे समझ लेते हैं.
असल में बीजेपी की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड ने इन मसौदा नियमों पर चिंता जताई है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि इन नियमों से राज्य सरकारों के उच्च शिक्षा में योगदान को हतोत्साहित किया जाएगा. आंध्र प्रदेश में टीडीपी और लोजपा रामविलास ने इस पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है. टीडीपी ने कहा कि पार्टी अपने आंतरिक विचार-विमर्श के बाद अपनी राय देगी. वहीं लोजपा ने इसे संसद में चर्चा का विषय बताया.
केरल और तमिलनाडु जैसे विपक्षी शासित राज्यों ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. केरल विधानसभा ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इन नियमों को वापस लेने की मांग की. मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इन नियमों को राज्यों के अधिकार खत्म करने और उच्च शिक्षा के केंद्रीकरण का प्रयास बताया. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इसे संघवाद के खिलाफ बताते हुए कानूनी कदम उठाने और जन आंदोलन करने की बात कही.
ड्राफ्ट में राज्यपालों को व्यापक अधिकार
यह पूरा बवाल तब हुआ है जब यूजीसी ने हाल ही में मसौदा नियम 2025 जारी किए हैं. जिनके तहत राज्यपालों को राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में अधिक शक्तियां दी गई हैं. इसके साथ ही इन पदों पर अब शिक्षाविदों के अलावा उद्योग विशेषज्ञों और सार्वजनिक क्षेत्र के व्यक्तियों को भी नियुक्ति की संभावना है. इससे पहले केवल शिक्षाविद ही इन पदों पर नियुक्त किए जाते थे.
संघवाद और उच्च शिक्षा.. सवाल तो गहरे हैं..
एक्सपर्ट्स का साफ मानना है कि मसौदा नियम संघवाद के सिद्धांत पर गहरा प्रहार करते दिख रहे हैं. राज्य सरकारें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अपनी नीतियों और प्राथमिकताओं के अनुसार काम करती हैं. लेकिन इन नियमों से केंद्र सरकार की भूमिका बढ़ाने की कोशिश हो रही है, जिससे राज्यों का स्वायत्तता पर सवाल खड़ा हो रहा है.
इसके राजनीतिक मायने क्या हैं..
एनडीए के अंदर इस मुद्दे पर मतभेद भाजपा के सामने एक चुनौती है. जहां उसके सहयोगी दल सतर्क प्रतिक्रिया दे रहे हैं. वहीं विपक्ष इस मुद्दे को संघवाद की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत कर रहा है. यह आगामी चुनावों में भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विषय बन सकता है.
तो फिर आगे की राह क्या?
वैसे भी शिक्षा तो समाज और पूरे देश की प्रगति का आधार है. UGC के मसौदा नियम केवल प्रशासनिक मुद्दा नहीं बल्कि यह राज्यों और केंद्र के बीच शक्ति संतुलन का विषय बन चुका है. एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि उच्च शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी बदलाव से पहले सभी हितधारकों का परामर्श और सहमति आवश्यक है. अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस विवाद को किस प्रकार हल करती है.