राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी मैदान में उतारे गए भाजपा के 21 सांसदों में से 11 ने जीत हासिल की है. इनको अब लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना होगा.
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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं. इनमें से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की है. भाजपा ने इस बार अपने कई सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया था. ऐसे कुल 21 सांसदों में से 11 चुनाव जीत चुके हैं. भाजपा ने अपने एक राज्यसभा सांसद को भी चुनाव मैदान में उतारा था. राजस्थान की सवाई माधोपुर सीट से राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने कांग्रेस के दानिश अबरार को 22 हज़ार से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी. अब इन सब जीते हुए सांसदों को दोनों सदनों में किसी एक से इस्तीफा देना पड़ सकता है. इसको लेकर लगभग तय माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव जीतने वाले सभी सांसद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देंगे. हालांकि इसके बाद भी मोदी सरकार के मंत्री अपने पद पर वह बने रहे सकते हैं. आइए जानते हैं कि ऐसा कैसे मुमकिन है.
जीतने वाले सांसदों को देना होगा लोकसभा से इस्तीफा, वर्ना...
भाजपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों में 7-7, छत्तीसगढ़ में 4 और तेलंगाना में 3 सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाया. इनमें से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल, रेणुका सिंह और फग्गन सिंह कुलस्ते का भी नाम शामिल है. संवैधानिक नियमों के मुताबिक चुनाव जीतने वाले सांसदों को अगले 14 दिनों के अंदर दोनों में से कोई एक सीट छोड़नी होगी. ऐसा नहीं करने पर उनकी संसद सदस्यता खत्म हो जाएगा, जबकि हारने वाले सांसदों की संसद सदस्यता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने संविधान के आर्टिकल 101 के तहत 1950 में राष्ट्रपति द्वारा जारी डुअल मेंबरशिप प्रिवेंशन रूल का हवाला देते हुए बताया कि विधानसभा में जीतने वाले लोकभा सांसदों के इस्तीफा नहीं देने पर भी 14 दिनों बाद उनकी संसद सदस्यता खत्म हो जाएगी, लेकिन वह विधानसभा के सदस्य बने रहेंगे.
तीन केंद्रीय और एक राज्य मंत्री ने जीता विधानसभा चुनाव, लोकसभा से इस्तीफा देंगे
चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने चार केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते और केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह समेत 21 सांसदों को टिकट दिया था. केंद्रीय मंत्रियों में फग्गन सिंह कुलस्ते को छोड़कर बाकी तीनों ने चुनाव में जीत हासिल की है. फायदे को लिहाज से देखें तो ऐसे सांसद जो केंद्रीय मंत्री नहीं हैं, वह लोकसभा चुनाव 2024 की दहलीज पर खड़े होने की वजह से सांसदी छोड़ने में उतना नहीं सोचेंगे, लेकिन जो केंद्रीय मंत्री हैं उनके लिए शायद यह उतना आसान नहीं होगा. क्योंकि सांसदी छोड़ने वाले विधायकों को राज्य में कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाए तो उनका फायदा है. वहीं केंद्रीय मंत्रियों के लिए विकल्प चुनने में मुश्किल होने की गुंजाइश है.
लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भी बने रह सकते हैं केंद्रीय मंत्री, ये है तरीका
ऐसे में यह भी एक तरीका हो सकता है कि वह लोकसभा से इस्तीफा भी दे दें और केंद्रीय मंत्री पद पर भी बने रहें. हालांकि, इसको लेकर नैतिकता से जुड़े सवाल सामने आ सकते हैं. इसमें कोई संवैधानिक अड़चन इसलिए सामने नहीं आ सकती है. क्योंकि मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों के तहत मंत्री पद पर बिना किसी सदन का सदस्य बने भी रहा जा सकता है. हालांकि, छह महीने की समय सीमा में उन्हें लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनना होता है. इस नियम के चलते मोदी सरकार के ये चारों मंत्री महफूज रह सकते हैं, क्योंकि अगले छह महीने से पहले ही लोकसभा चुनाव हो जाएगा और नए मंत्रिमंडल का गठन भी हो जाएगा. इसका मतलब कि मंत्री पद पर उनका कार्यकाल छह महीने से कम ही है.
रिप्रेजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट में और क्या है खास
रिप्रेजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट में साल 1996 में संशोधन किया गया था. इसकी धारा 151A के मुताबिक खाली हुई सीट पर चुनाव आयोग को 6 महीने के भीतर चुनाव कराने की कानूनी व्यवस्था निश्चित की गई है. वह चाहे विधानसभा की सीट हो या लोकसभा की. अब अगर किसी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो वहां उप चुनाव हो सकते हैं, लेकिन लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो शायद उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी. क्योंकि छह महीने से कम समय में ही लोकसभा चुनाव 2024 पूरा हो जाएगा. हालांकि, लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिए बगैर कोई सांसद विधायक पद के लिए शपथ ग्रहण नहीं कर सकता. अगर ऐसा करते हैं तो नियमों के मुताबिक उन्हें लोकसभा के स्पीकर को सूचना देनी होगी और बिना इस्तीफा दिए भी 14 दिनों में उनकी लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाएगी.